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खेलकर जो गुजरा वो बचपन यहां अब भी जिंदा है,पढिए

बचपन के वो खूबसूरत खेल, जिन्हें खेलते- खेलते दिन कब बीत जाता था, कुछ पता ही नहीं चलता था। ये सभी खेल कहीं गुम होते जा रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 06 Feb 2019 11:58 AM (IST)Updated: Wed, 06 Feb 2019 11:58 AM (IST)
खेलकर जो गुजरा वो बचपन यहां अब भी जिंदा है,पढिए
खेलकर जो गुजरा वो बचपन यहां अब भी जिंदा है,पढिए

जमशेदपुर [दिलीप कुमार]। वो बचपन के खेल। बचपन का दौर बहुत ही सुनहरा होता है और अपने साथ ढेरों खूबसूरत लम्हों को समेटे होता है। बचपन के वो खूबसूरत खेल, जिन्हें खेलते खेलते दिन कब बीत जाता था, कुछ पता ही नहीं चलता था। स्कूल से आकर जल्दबाजी में खाना खाना, होमवर्क करना और उसके बाद मोहल्ले के दोस्तों की टोली के साथ खेलने के लिए निकल जाना। सुना जाता है कि ये सभी खेल कहीं गुम होते जा रहे हैं। लौहनगरी से सटे बाराबांकी इलाके में इसकी तलाश की गई तो आज भी ये खेल बच्चे खेलते मिले। आइए, आज हम आपको उस जमाने की याद ताजा कराने ले चलते हैं..

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बचपन की वो ढेर सारी शैतानियां, मुट्ठियों में दुनिया जीत लेने के सपने, वो नटखट अठखेलियां, कभी बेमतलब हंसना तो कभी छोटी सी बात पर आंसू बहाना, कभी मम्मी से लाड़ लड़ाना तो कभी पापा से अपनी फरमाइशें पूरी करने के लिए जिद पर अड़ जाना। ये सब बचपन की वो यादें हैं, वो बातें है जो सभी के जेहन में हैं और बचपन से जुड़ी इन्ही खूबसूरत यादों में शुमार है, वो बचपन के खेल।

इसके बगैर बचपन अधूरा

याद कीजिए, कभी गली में दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलना, कभी कैरम खेलते हुए खाने-पीने का मजा लेना, तो कभी लूडो में एक-दूसरे की गोटी काटने पर ऐसी खुशी जैसे जग जीत लिया हो। बिजनेस में ढेर सारे शहर खरीद कर करोड़पति बन जाना, तो कभी पकड़म पकड़ाई खेलते हुए ऊधम मचाना, कभी अन्त्याक्षरी खेलते हुए वक्त बिताना, एक टांग पर चलते हुए एक-दूसरे को पकडऩे की कोशिश करना ये कुछ ऐसी बातें थी जिनके बिना बचपन पूरा ही नहीं हुआ करता था लेकिन अब ये सब बातें कहीं सिमट सी गईं हैं।डिब्बा, आइस-पाइस, याद कीजिए कभी सुनी है ये आवाज, जो अभी के दौर के बच्चे हैं उन्होनें तो ये शब्द शायद ही सुना हो लेकिन हम जब बच्चे रहे थे तब ये शब्द हमारे बहुत करीब था और हमसे अच्छी दोस्ती भी रखा करता था। 

रस्सी कूद

आज शहरी व खास तौर से धनाढ्य वर्ग में वजन घटाने के लिए रस्सी कूद की जाती है। गांव के लिए यह परंपरागत खेल के रूप में आज भी जीवित है। वहां मजे लेकर इसे खेला जाता है। दो लड़कियां एक रस्सी को दोनों सिरों से पकड़ लेती हैं और उसे घुमाना शुरू करती हैं. तीसरी लड़की बीच में कूदती है। जो सबसे ज्यादा बिना रुके कूदती है, वह जीतती है।

कित-कित

यह खेल मुख्यत: लड़कियां खेलती हैं। हालांकि लड़के भी इसका मजा लेने से नहीं चूकते। घर के आंगन, मैदान या कहीं और कई चाक या फिर ईंट के टुकड़े से लाइन खींच कर खाने बनाये जाते हैं। फिर चपटे पत्थर को एक टांग पर खड़े रहकर बिना लाइन छुए सरकाना पड़ता है। अंत में एक टांग पर खड़े रहकर इसे एक हाथ से बिना लाइन को छुए उठाना पड़ता है। इस खेल के लिए कम से कम दो खिलाडिय़ों की जरूरत होती है। 

गिल्ली-डंडा

ग्रामीण क्षेत्रों में गिल्ली-डंडा सबसे लोकप्रिय खेल है। इस खेल में गिल्ली एक स्पिंडल के आकार की होती है। साथ में होता है एक छोटा सा डंडा। गिल्ली के एक सिरे को डंडे से मारा जाता और जितनी दूर तक हो सके गिल्ली को उछालकर फेंका जाता है। जो जितनी दूर तक फेंक सके, उसी के आधार पर निर्णय होता है। इस खेल के अपने-अपने स्थानीय नियम होते हैं।

सतगोटिया

इसे लड़कियां गोल-गोल छोटे-छोटे पत्थरों से खेलती हैं। दायें हाथ से गुटका उछाला जाता है और बायें हाथ को घर या कुत्ते के आकार में रखकर उनके नीचे से पुश करते हुए गुटके निकाले जाते हैं। फिर सबको एक साथ एक हाथ से एक गुटका ऊपर उछालते हुए उठाना होता है। देखने में तो यह गेम बहुत आसान मालूम पड़ता है, पर असल में यह इतना आसान होता नहीं है। इसको खेलने में हाथों की अच्छी खासी कसरत हो जाती है। 

छुपन-छुपाई

छुपन-छुपाई बच्चों का एक लोकप्रिय खेल है। इसे हाइड एंड सिक भी कहा जाता है। इस खेल में एक व्यक्ति को कुछ दूर तक जाकर 100 तक गिनती गिननी होती है, ताकि इस समय में खेलने वाले खिलाडिय़ों को छिपने का समय मिल सके। गिनती पूरी करने के बाद सभी खिलाडिय़ों को एक-एक करके ढूंढऩा होता है और जो सबसे पहले पकड़ा जाता है, उसे फिर इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।

गोलीजीत

कंचा (गोली) एक परम्परागत खेल है। गांव की गलियों में इसे आज भी बच्चे खेलते हुए मिल जाते हैं। इस खेल में मार्बल्स की गोलियां बच्चों के पास होती हैं। इसमें एक गोली से दूसरी गोली को निशाना लगाना होता है और निशाना लग गया तो वह गोली आपकी हो जाती है। इसके अलावा एक गड्ढा बनाकर उसमें कुछ दूरी से कंचे फेंके जाते हैं। जिसके कंचे सबसे ज्यादा गिनती में गड्ढे में जाते हैं वह जीतता है।

चोर-सिपाही

यह खेल बड़ा मजेदार होता है। इसमें दो टीमें खेलती हैं। एक पुलिस की भूमिका में होती है और दूसरी चोर की भूमिका में। यह खेल बिलकुल सच वाले चोर-पुलिस की तरह होता है। इसमें पुलिस बने बच्चे चोरों की तलाश में रहते हैं। एक-एक जब वह सभी को पकडऩे में सफल हो जाते हैं, तो गेम पलट जाता है। चोर अब सिपाही बन जाते हैं और सिपाही चोर की भूमिका निभाते हैं।

आंख-मिचौली

इसमें एक प्रतिभागी की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और उसे अनुमान से दूसरे को पकडऩा होता है। पकड़े जाने पर दूसरे खिलाड़ी को इसी प्रक्रिया से गुजरना होता है। इस गेम को एक और तरीके से खेला जाता है। दूसरे तरीके में एक खिलाड़ी की आंखों को बंद कर दिया जाता है और बाकी खिलाड़ी उसके सिर पर एक-एक कर थपकी मारते हैं। सबसे पहले थपकी मारने वाले की पहचान हो जाने पर उसे आंखे बंद करनी होती है। 

पिट्ठू

कभी पिट्ठू का खेल बच्चों में बहुत लोकप्रिय हुआ करता था। इस खेल में दो टीमें होती हैं, एक बॉल होती है और सात चपटे पत्थर, जिन्हें एक के ऊपर एक रख दिया जाता है। एक खिलाड़ी बॉल से पत्थरों को गिराता है। अब एक टीम इन पत्थरों को फिर से एक दूसरे के ऊपर रखती है और दूसरी टीम को बॉल मारकर इन्हें रोकना होता है। अगर पत्थर रखते समय खिलाड़ी को बॉल छू जाती है, तो वो खिलाड़ी खेल से आउट हो जाता है।

लट्टू (स्पिनिंग टॉप)

कभी लट्टू (स्पिनिंग टॉप) भारत का सबसे लोकप्रिय सड़क खेल था। यह अभी भी उत्तर भारत के शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में खेला जाता है। लट्टू भारतीय गांवों में बच्चों के लिए जीवन का एक हिस्सा है। लट्टू एक ठोस शलजम आकार वाला लकड़ी का खिलौना है जिसके निचले भाग में एक कील निकली होती है और ऊपर से नीचे की और खांचे बने होते हैं। एक रस्सी को लट्टु के निचले आधे भाग के आसपास लपेटा जाता है जिससे यह स्पिन बना सकता है।

पहिया गाड़ी

जिन बच्चों को साइकिल नहीं मिलती थी वे बेकार पहिया को गाड़ी बनाकर खेलते थे और कम्पटीशन में चलाते थे और उनमें एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ रहती थी। पहिया को हाथ या किसी लकड़ी के फट्टे से लुढ़काते-लुढ़काते न जाने कितनी दूरी तय हो जाती थी, पता ही नहीं चलता था। खेल-खेल में शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है।

चोर-सिपाही-राजा-मंत्री

ये भी अनोखा गेम रहा है। जीत ने पर दोस्तों से पार्टी लेने का अपना अलग ही मजा था। साथ ही जो चोर होता था उसमें एक अलग ही डर होता था और बिना बात के तब तक हंसते थे, जब तक चोर पकड़ा ना जाए। इसमें कागज के चार टुकड़े करके उसपर चोर, सिपाही, राजा और मंत्री  होते थे। सबको फोल्ड करके फेंका जाता था फिर खेल शुरू होता था। जिसके पास चोर लिखा कागज आया वह चोर, इसी तरह अन्य को उपाधियों से नवाजा जाता था।

चिडिय़ा उड़

चिडिय़ा उड़ खेल के लिए छह-सात बच्चों के झुंड एक साथ बैठकर खेलते हैं। खिलाड़ी निर्धारित जगह पर तर्जनी अंगुली रखते हैं। एक खिलाड़ी चिडिय़ा उड़ समेत पक्षियों के उडऩे की बात करता है। हर उडऩे वाले पक्षी के नाम पर अंगुली को उठाया जाता है। इसी बीच वह किसी जानवर या बिना उडऩे वाले सामान का नाम लेता है। इस पर जो अंगुली उठा देता है वह खेल से बाहर हो जाता है। यह खेल अब भी कहीं-कहीं देखने को मिल जाता है। 

बोरा रेस

बोरा रेस खेल को लेकर बच्चे काफी उत्साहित रहते हैं। इस खेल में कमर तक बारे के अंदर बच्चा खड़ा रहता है। एक तय दूरी तक उछलते हुए जाना पड़ता है। जो रास्ते में गिर जाता है वह रेस से बाहर हो जाता है। यह अक्सर बचपन में स्कूलों में वार्षिकोत्सव के दौरान आयोजित किया जाता है।

इत्ता बित्ता

इत्ता-बित्ता लड़कियों का पसंदीदा खेल रहा है। इस खेल में दो बच्चे आमने-सामने बैठकर अपना पैर रखते हैं, जिसे बाकि बच्चे कूदकर पार करते है। एक-एक दौर के बाद पैर के बाद हथेली से उसकी ऊंचाई बढ़ाई जाती है। कूदने के दौरान जो बच्चा पैर या हाथ को छूता है वह खेल से बाहर हो जाता है। यह खेल वर्तमान समय में कम ही देखने को मिल रहा है। 

रुमाल चोरी

इस खेल का आनंद ही कुछ और होता है। पहले स्कूलों में भी यह खेल खिलाया जाता था। इसमें बच्चों का एक समूह गोल घेरा बनाकर बैठ जाता है। सभी बच्चों का रुख गोल घेरे की ओर रहता है। एक बच्चा हाथ में रुमाल या रुमाल के आकार का कपड़ा लेकर उनके चारों ओर चक्कर लगाता है। चक्कर लगाते-लगाते किसी एक बच्चे के पीछे रुमाल छोड़ देता है। इसके बाद चक्कर पूरा होने तक यदि बच्चा जान गया कि रुमाल उसके पीछे रखा है तो ठीक, नहीं तो चक्कर पूरा होने पर उसे हल्का धक्का देकर हार जाने का अहसास कराया जाता है।


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