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रणकौशल में निपुण थे भूमिज विद्रोह के मुख्य सेनापति जीरपा

जीरपा लाया से आजिज ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकडऩे के लिए एक हजार रुपये का इनाम तय कर दिया।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 02:38 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 02:38 PM (IST)
रणकौशल में निपुण थे भूमिज विद्रोह के मुख्य सेनापति जीरपा
रणकौशल में निपुण थे भूमिज विद्रोह के मुख्य सेनापति जीरपा

रघुनाथपुर,जेएनएन। आजादी के पहले जब अंग्रेज हिंदुस्तानी किसानों से जबरन नील की खेती कराने लगे, पारंपरिक व्यवस्था को तोड़ असीमित कर, नमक कर की वसूली की जाने लगी, नीलामी प्रथा, दारोगा प्रथा शुरू हो गई, उत्तराधिकारी नियम का उल्लंघन, के साथ जल, जंगल, जमीन पर अंग्रेज अपना अधिकार जमाने लगे थे। ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत से आजिज होकर 'भूमिज विद्रोह' शुरू हुआ। भारतीय इतिहास में यह आंदोलन 'चुहाड़ आंदोलन' के नाम से भी जाना जाता है। विद्रोह के महानायक गंगानारायण सिंह के मुख्य सेनापति जीरपा लाया (जीलपा लाया) थे। 

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स्वाधीनता सेनानी जीरपा लाया का जन्म तत्कालीन जंगल महल व वर्तमान के नीमडीह प्रखंड के बाड़ेदा गांव में तीन जून 1774 को हुआ था। इनकी मां का नाम तरुलता सिंह व पिता का नाम पेंड़ाई सिंह लाया था। जो बाड़ेदा मौजा के पारंपरिक पुजारी थे। जीरपा बचपन से ही साहसी के साथ पारंपरिक हथियार चलाने में निपुण थे। ब्रिटिश हुकूमत के अन्यायपूर्ण शासन प्रथा के विरोध में भूमिज विद्रोह का आरंभ नीमडीह प्रखंड स्थित बांधडीह गांव से शुरू हुआ। गंगा नारायण सिंह ने जंगल महल में पांच हजार लोगों का सेनावाहिनी गठन किया था। यह 1832-33 की बात है, गंगानारायण सिंह की पहचान भारतीय इतिहास में भूमिज विद्रोह के नेतृत्वकर्ता के रूप में दर्ज है। उन्होंने ने अपने सेनावाहिनी के मुख्य सेनापति के रूप में जीरपा लाया को नियुक्त किया। 

बांधडीह से शुरू हुआ था विद्रोह

विद्रोह बांधडीह के वीर माटी से शुरू होकर जंगल महल क्षेत्र में फैल गया। इस संग्राम में जीरपा लाया के युद्व कौशल व सैन्य संचालन से अंग्रेजी फौज भयभीत थे। सेनावाहिनी दल एक रणनीति के तहत ब्रिटिश फौज पर बरसात के मौसम हमला करते थे। कारण कि, वे विपरीत मौसम में मोटर वाहन का इस्तेमाल नहीं कर पाते थे। ऐसे में जीरपा लाया के नेतृत्व में सेनावाहिनी के सदस्य पहाड़, नदी, जंगल में लांघते हुए अंग्रेजी सेना को मार गिराते थे। इस दौरान वे छावनी से बंदूक, राशन सामग्री समेत अन्य सामान लूटकर ले आते थे। जीरपा लाया से आजिज ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें जिंदा या मुर्दा पकडऩे के लिए एक हजार रुपये का इनाम तय कर दिया। 13 अपै्रल 1833 ई. को ब्रिटिश सेना ने कुटनीति के तहत पश्चिम बंगाल के बेड़ादा गांव में बरगद पेड़ पर जीरपा लाया को गिरफ्तार कर लिया, और उनसे भयभीत ब्रिटिश अफसरों ने उसी दिन उन्हें फांसी दे दी। 


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