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    Year ender 2025 : संघर्ष की भट्ठी में तपकर जमशेदपुर के युवाओं ने लिखी सफलता की मिसाल

    Updated: Wed, 31 Dec 2025 09:57 PM (IST)

    जमशेदपुर के युवाओं ने 2025 में संघर्षों को अपनी ताकत बनाकर सफलता की नई मिसालें कायम कीं। कोमलिका बारी ने 18 किमी साइकिल चलाकर विश्व चैंपियन बनीं, अंकि ...और पढ़ें

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    जमशेदपुर के युवाओं की फाइल फोटो।

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। जीवन जब कठिन इम्तिहान लेता है, तब कुछ लोग हालात से हार मान लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो संघर्ष को ही अपनी ताकत बना लेते हैं। जमशेदपुर की धरती ने ऐसे ही युवाओं को गढ़ा है, जिन्होंने अभाव, असफलता और विपरीत परिस्थितियों के बीच अपनी तकदीर खुद लिखी। 
     
    साल 2025 की विदाई और 2026 के आगमन की बेला पर, इन युवाओं की कहानियां सिर्फ उपलब्धियों का ब्योरा नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए संजीवनी हैं जो अपने सपनों को सच करना चाहता है।

    किसी ने रोज 18 किमी साइकिल चलाकर विश्व चैंपियन बनने का सफर तय किया, किसी ने लॉकडाउन की तबाही को अवसर में बदला, तो किसी ने शारीरिक अक्षमता को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। इन कहानियों का संदेश साफ है- सफलता सुविधाओं की मोहताज नहीं होती, वह संकल्प, अनुशासन और निरंतर प्रयास से जन्म लेती है। 


    कोमलिका बारी: 18 किमी की साइकिल और विश्व विजय 

    बिरसानगर की संकरी गलियों से निकलकर दुनिया के मंच तक पहुंचने वाली कोमलिका बारी की कहानी अदम्य साहस का प्रतीक है। पिता घनश्याम बारी एलआइसी एजेंट हैं और मां लक्ष्मी आंगनबाड़ी सेविका। 
     
    सीमित संसाधनों के बावजूद कोमलिका ने तीरंदाजी में बड़ा सपना देखा। उसे पूरा करने के लिए वह रोज 18 किलोमीटर साइकिल चलाकर टाटा आर्चरी एकेडमी जाती थीं।

    यह तपस्या रंग लाई और कोमलिका ने अंडर-18 और अंडर-21 दोनों वर्गों में विश्व चैंपियन बनकर इतिहास रच दिया। दीपिका कुमारी के बाद ऐसा करने वाली वह दूसरी भारतीय बनीं।


    अंकिता भकत: दूध बेचने वाले पिता की गोल्डन गर्ल 

    टाटा आर्चरी एकेडमी की ही अंकिता भकत ने गरीबी को कभी अपने रास्ते की दीवार नहीं बनने दिया। पिता शांतनु भकत दूध बेचकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। आर्थिक हालात ऐसे थे कि धनुष खरीदना भी मुश्किल था।

    लेकिन अंकिता की जिद और टाटा स्टील के सहयोग ने उन्हें पेरिस ओलंपिक तक पहुंचाया। एशियाई खेलों में पदक जीतकर उन्होंने साबित कर दिया कि हालात चाहे जैसे हों, हौसले अगर बुलंद हों तो मंजिल दूर नहीं।


    उमेश विक्रम कुमार: व्हीलचेयर नहीं, हौसलों की उड़ान 

    पोलियो ने उनके पैरों को कमजोर किया, लेकिन इरादों को नहीं। उमेश विक्रम कुमार, जो टाटा स्टील के कर्मी हैं, आज दुनिया के नंबर-1 पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी हैं।

    बिहार के एक छोटे से गांव से निकलकर जमशेदपुर को कर्मभूमि बनाने वाले उमेश ने 2025 में स्पेन, मिस्र समेत कई देशों में जीत का परचम लहराया। उनकी कहानी बताती है कि शारीरिक सीमाएं कभी सपनों की उड़ान नहीं रोक सकतीं।


    प्रशांत अग्रवाल: आपदा को अवसर में बदला 

    आदित्यपुर के प्रशांत अग्रवाल की कहानी हर युवा उद्यमी के लिए प्रेरणा है। लॉकडाउन में उनका व्यवसाय पूरी तरह ठप हो गया। लेकिन निराश होने के बजाय उन्होंने घर से ऑनलाइन फूड बिजनेस शुरू किया।

    आज सोशल मीडिया पर उनके 50 हजार से अधिक फॉलोअर्स हैं और ऑनलाइन ऑर्डर की लंबी कतार उनकी मेहनत की गवाही देती है।


    स्वाति शर्मा: दो असफलताएं, फिर टॉप रैंक 

    यूपीएससी में ऑल इंडिया रैंक 17 हासिल करने वाली स्वाति शर्मा की कहानी हार न मानने का सबक है। पहले दो प्रयासों में प्रीलिम्स तक नहीं निकाल सकीं, सीसैट में भी असफल रहीं।

    लेकिन तीसरे प्रयास में उन्होंने सफलता हासिल की। उनका मंत्र- गलतियों का विश्लेषण, अनुशासन और धैर्य है।


    आदर्श गौरव और शिल्पा राव: जमशेदपुर से ग्लोबल पहचान 

    आदर्श गौरव ने टेल्को की गलियों से निकलकर बाफ्टा नामिनेशन तक का सफर तय किया, जबकि शिल्पा राव ने जिंगल्स से शुरुआत कर राष्ट्रीय पुरस्कार और बॉलीवुड की शीर्ष गायिका बनने तक का सफर पूरा किया। दोनों की कहानियां बताती हैं कि टैलेंट को बस सही मौके और धैर्य की जरूरत होती है।
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