Jamshedpur News : जमशेदपुर में नए जंगल बनाने के लिए रोप दिए 10 हजार पौधे, दिखाई दे रही उम्मीद की हरी किरण
जमशेदपुर में जंगलों के संरक्षण के लिए ग्रामीणों ने कमर कस ली है। इको विकास समितियों के प्रयासों से जमशेदपुर से लेकर दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी तक हरियाली लौट रही है। चाकुलिया इको विकास समिति के अध्यक्ष जगदीश चंद्र महतो और उनकी टीम ने अब तक 10 हजार पौधे रोपे हैं। समिति जंगल की रक्षा के साथ ही पौधों के लिए जल प्रबंधन का भी काम कर रही है।

मनोज सिंह, जमशेदपुर। झारखंड के जंगलों को संरक्षित करने के लिए यहां के ग्रामीण अब प्रकृति के प्रहरी बन कर काम कर रहे हैं।
यहां इको विकास समितियों का संगठित प्रयास, धरती मां के श्रृंगार में हरियाली के रंग भर रहा है। जमशेदपुर से लेकर दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी तक, पर्यावरण संरक्षण की अलौकिक ज्योति प्रज्वलित हो रही है, जिसकी रोशनी में जंगल मुस्कुरा रहे हैं, पंछी चहचहा रहे हैं, और वन्यजीव निर्भय विचरण कर रहे हैं।
चाकुलिया इको विकास समिति के अध्यक्ष जगदीश चंद्र महतो और उनकी टीम, पर्यावरण संरक्षण के महायज्ञ में अपनी आहुति समर्पित कर रहे हैं।
टीम अब तक 10 हजार पौधे रोपित कर चुकी है और इसे जंगल का मूर्त रूप देने में जुटी है। समिति के अध्यक्ष एवं पूरी टीम जंगल की रक्षा करती है तथा साथ ही इन पौधों के लिए जल प्रबंध से लेकर हर तरह का कार्य करती है।
जंगल और वन्यजीवों की रक्षा हेतु उनके अनुपम प्रयासों को दलमा के डीएफओ सबा आलम अंसारी ने सम्मानित किया है। यह टीम जंगल की आग बुझाने के साथ-साथ, जागरूकता का अमृत भी बिखेर रही है।
वे स्कूलों में जाकर, छात्रों के मन में पर्यावरण प्रेम के बीज रोपते हैं और रैलियों के माध्यम से समाज में चेतना की ज्योति जलाते हैं।
कुप्रथा के खिलाफ अभियान
- जगदीश चंद्र महतो की टीम, सूखे पत्तों में आग लगाने की कुप्रथा के विरुद्ध अभियान चला रहे हैं। सहरबेड़ा और काठजोड़ में हजारों पौधे लगाकर, उन्होंने हरित क्रांति का शंखनाद किया है।
- ये पौधे अब विशाल वृक्ष बनकर, धरती मां को हरी चुनरी ओढ़ा रहे हैं। जमशेदपुर से लेकर दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी तक, पर्यावरण संरक्षण की अलौकिक ज्योति प्रज्वलित हो रही है, जिसकी रोशनी में जंगल मुस्कुरा रहे हैं, पंछी चहचहा रहे हैं, और वन्यजीव निर्भय विचरण कर रहे हैं।
- जमशेदपुर वन प्रमंडल और दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी, आज प्रकृति प्रेमियों के लिए एक प्रकाश स्तंभ बन गए हैं।
वन्यजीव भी हो रहे संरक्षित
यहां 274 ग्राम वन प्रबंधन समितियां और 150 इको विकास समितियां, हरियाली की अमर गाथा बुन रही हैं। दलमा के हृदय में धड़कती 85 इको विकास समितियां, वनकर्मियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, जंगल की रक्षा का अभेद्य कवच बन गई हैं।
ये समितियां शिकार करने से भी लोगों को रोकती है। पहले जहां 10-12 जंगली जानवरों का शिकार हो जाता था, अब एक शिकार करने के लिए लोगों को सोचना पड़ता है।
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