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    गृह मंत्रालय का फोन... और आंखों से छलके खुशियों के मोती, पद्मश्री विजेता पूर्णिमा महतो का कुछ ऐसा रहा सफर

    By Jitendra Singh Edited By: Shashank Shekhar
    Updated: Sat, 27 Jan 2024 08:49 AM (IST)

    कोल्हान के लिए गुरुवार का दिन दोहरी खुशी लेकर आया जब अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी कोच पूर्णिमा महतो व पर्यावरण संरक्षण चामी मुर्मू को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा हुई। तीरंदाजी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली पूर्णिमा को यह विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्हें यह सम्मान मिला। पूर्णिमा ने बताया कि सूची में नाम देखकर विश्वास हो गया कि मेरे नाम की चर्चा क्यों चल रही थी।

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    गृह मंत्रालय का फोन... और आंखों से छलके खुशियों के मोती, पद्मश्री विजेता पूर्णिमा महतो का कुछ ऐसा रहा सफर

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। कोल्हान के लिए गुरुवार का दिन दोहरी खुशी लेकर आया। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी कोच पूर्णिमा महतो व सरायकेला की पर्यावरण संरक्षण चामी मुर्मू को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की गई। तीरंदाजी के लिए अपना जीवन होम करने वाली पूर्णिमा महतो को सहसा यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उन्हें यह सम्मान मिला है।

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    गुरुवार दोपहर जब वह समाहरणालय में राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने उपायुक्त कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने पहुंची तभी मोबाइल की घंटी बजी। उनसे पूछा गया कि आपके घर का ठिकाना क्या है? उसे कंफर्म कीजिये, वह समझ नहीं पाई। कार्यक्रम खत्म होने के बाद दोबारा उस नंबर पर कॉल बैक की तो बताया गया कि गृह मंत्रालय से आपके आवास का पता लगाने को कहा गया है।

    पूर्णिमा ने बताया कि कार्यक्रम में शोरगुल होने के कारण वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर माजरा क्या है। इसके बाद घर लौटी, तो पता चला कि पद्मश्री अवार्ड के लिए नामों की घोषणा हो रही है। तब उनके मन में उत्सुकता बढ़ने लगी। देर रात तक उन्हें कोई सूची नहीं मिली थी। लेकिन, उनके नामों की चर्चा होने लगी।

    हालांकि, कहीं से यह पता नहीं चल पा रहा था कि सूची में उनका नाम है या नहीं। रात में जब उन्हें जानकारी मिली तो खुशी के मारे पैर जमीन पर टिक नहीं रहे थे। केंद्र सरकार द्वारा जारी सूची में 70वें नंबर पर अपना नाम देखते हुए वह भावुक हो गई और खुशी के आंसू बहने लगे।

    24 वर्षों से कोच के तौर पर काम कर रही पूर्णिमा

    पूर्णिमा ने बताया कि सूची में नाम देखकर यह विश्वास हो गया कि मेरे नाम की चर्चा क्यों चल रही थी। उन्होंने बताया कि 1987 से तीरंदाजी का अभ्यास कर रही हूं। 24 वर्षों से कोच के रूप में कार्य कर रही हूं।

    उन्होंने कहा कि बचपन में लेडी इंदर सिंह स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी, तब एक आर्चरी ग्राउंड से होकर स्कूल जाना पड़ता था। तब वह आर्चरी देखने के लिए रूक जाती थी। धीरे-घीरे आर्चरी में रुचि में जगने लगी तो अभ्यास भी करने लगी। कुछ दिनों बाद सफलता हासिल होने लगी और आगे बढ़ती चली गई। पूर्णिमा का पहली बार 1992 में राज्य तीरंदाजी टीम में पहली बार उनका चयन हुआ। वह कई सालों तक राष्ट्रीय चैंपियन रहीं।

    पुणे में आयोजित नेशनल गेम्स में 6 गोल्ड हासिल की

    1993 में अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी की टीम स्पर्धा में पदक जीतने वाली पूर्णिमा ने 1994 में पुणे में आयोजित नेशनल गेम्स में छह स्वर्ण जीतकर तहलका मचा दिया। 1994 में आयोजित एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पूर्णिमा ने 1997 में सीनियर नेशनल में रिकार्ड के साथ दो स्वर्ण अपने नाम किए।

    1998 कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत हासिल करने वाली बिरसानगर की इस बाला ने 1994 में टाटा तीरंदाजी अकादमी में प्रशिक्षण देना शुरू किया। 2005 में स्पेन में आयोजित भारतीय टीम ने रजत पदक जीता। 2007 में सीनियर एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप में पुरुष टीम ने स्वर्ण व महिला टीम ने कांस्य पर कब्जा जमाया।

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