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गुरु पूर्णिमा आजः सनातन संस्था के परात्पर गुरु डा. जयंत आठवले का ये है संदेश

Guru Purnima 2021 सनातन संस्था के परात्पर गुरु डा. जयंत आठवले ने गुरु पूर्णिमा पर संदेश दिया है। डा. आठवले कहते हैं कि गुरुपूर्णिमा गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। इस दिन प्रत्येक श्रद्धावान हिंदू आध्यात्मिक गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 24 Jul 2021 10:39 AM (IST)Updated: Sat, 24 Jul 2021 10:39 AM (IST)
गुरु पूर्णिमा आजः सनातन संस्था के परात्पर गुरु डा. जयंत आठवले का ये है संदेश
सर्वस्व का त्याग किए बिना मोक्ष प्राप्ति नहीं होती है।

जमशेदपुर, जासं। आज 24 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। इस मौके पर हम सभी अपने गुरुओं को याद करते हैं। खासकर उन्हें, जिनके मार्गदर्शन से हमारा जीवन सार्थक बना। उनके बताए रास्तों पर चलकर हमारे जीवन को नई दिशा मिली।  इस अवसर पर सनातन संस्था के परात्पर गुरु डा. जयंत आठवले ने एक संदेश दिया है। जमशेदपुर के सुदामा शर्मा बताते हैं कि डा. आठवले कहते हैं कि गुरुपूर्णिमा गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है।

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इस दिन प्रत्येक श्रद्धावान हिंदू आध्यात्मिक गुरु के प्रति कृतज्ञता के रूप में अपनी क्षमता के अनुसार तन-मन-धन समर्पित करता है। अध्यात्म में तन, मन व धन के त्याग का असाधारण महत्त्व है, परंतु गुरुतत्त्व को शिष्य के एक दिन के तन-मन-धन का त्याग नहीं, अपितु सर्वस्व का त्याग चाहिए होता है। सर्वस्व का त्याग किए बिना मोक्ष प्राप्ति नहीं होती है, इसीलिए आध्यात्मिक प्रगति करने की इच्छा रखनेवालों को सर्वस्व का त्याग करना चाहिए। व्यक्तिगत जीवन में धर्मपरायण जीवनयापन करनेवाले श्रद्धावान हिंदू हों अथवा समाजसेवी, देशभक्त एवं हिंदुत्वनिष्ठ जैसे समष्टि जीवन के कर्मशील हिंदू हों, उन्हें साधना के लिए सर्वस्व का त्याग कठिन लग सकता है। इसकी तुलना में उन्हें राष्ट्र-धर्म कार्य के लिए सर्वस्व का त्याग करना सुलभ लगता है। वर्तमान काल में धर्मसंस्थापना का कार्य करना ही सर्वोत्तम समष्टि साधना है। धर्मसंस्थापना अर्थात समाजव्यवस्था एवं राष्ट्ररचना आदर्श करने का प्रयत्न करना। यह कार्य कलियुग में करने के लिए समाज को धर्माचरण सिखाना एवं आदर्श राज्यव्यवस्था के लिए वैधानिक संघर्ष करना अपरिहार्य है।

चाणक्य ने किया था सर्वस्व का त्याग

आर्य चाणक्य व छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी धर्मसंस्थापना के कार्य के लिए सर्वस्व का त्याग किया था। उनके त्याग के कारण ही धर्मसंस्थापना का कार्य सफल हुआ था। यह इतिहास ध्यान में रखें। इसीलिए धर्मनिष्ठ हिंदुओं, इस गुरुपूर्णिमा से धर्मसंस्थापना के लिए अर्थात धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए सर्वस्व का त्याग करने की तैयारी करें और ऐसा त्याग करने से गुरुतत्त्व को अपेक्षित आध्यात्मिक उन्नति होगी, इसकी निश्‍चिति रखें।


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