'जस करनी, तस भोग विधाता'
नगर संवाददाता, जमशेदपुर : जस करनी तस, भोग विधाता। शहर के लोगों ने कसाब की फांसी पर कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दी। लौहनगरी के लोगों ने कसाब की फांसी को देश में दहशतगर्दी फैलाने वालों के लिए सबक बताया। साथ ही यह अफसोस भी जताया कि अब भी भारतीय जेलों में कसाब जैसे और आतंकी कैद हैं। इन्हें भी उनके अंजाम तक पहुंचाने की जरूरत है।
कोट
चार साल से हम देश में आतंक फैलाने वालों के अंजाम का इंतजार कर रहे थे। फांसी में देरी होना तकलीफदायक रहा। देश की कमजोरी थी कि अब तक कसाब जिंदा था।
राहुल, सोनारी
फांसी बहुत पहले होनी चाहिए थी। सरकार का काम सराहनीय है। देश की सुरक्षा के लिए इस ऑपरेशन को गुप्त रखा गया लेकिन ज्यादा खुश होने की बात नहीं है। अभी भी देश में अफजल गुरू जैसे आतंकी जिंदा हैं।
श्रीकांत, कदमा
जस करनी, तस भोग विधाता। सैकड़ों परिवारों का घर उजाड़ने वालों के साथ इससे भी बुरा होना चाहिए था। भारत के लोगों ने आतंक के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी जिसके बाद कसाब की सजा तय की गई।
मंजू वर्मा, आदित्यपुर
भारतीय संविधान के कारण ही कसाब को फांसी मिल सकी। अफजल गुरू को पहले फांसी हो जाती तो शायद कसाब मुंबई पर हमले की जुर्रत ही नहीं करता।
सुमिता बनर्जी, मानगो
45 करोड़ रूपए से ज्यादा खर्च करने के बाद कसाब को फांसी दी गई। उसे भारत के 40 प्रतिशत बेहद गरीब जनता के पैसे पर जिंदा रखा गया। मुझे डर है कि पाकिस्तान इसका बदला सरबजीत से लेगा।
सुधीर श्रीवास्तव, टेल्को
चार साल बाद फांसी होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। हमें अपने देश के दुश्मनों को तत्काल सजा देने का साहस जुटाना चाहिए था। हम आतंकियों के लिए मिसाल बनने के हर मौके छोड़ते जाते हैं।
मीनू शरण, सर्किट हाउस
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