जानिए, झारखंड में क्यों ढूंढ़े नहीं मिल रहे डॉक्टर
स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के नहीं मिलने से जिला स्तर के अस्पतालों में सर्जरी नहीं हो पाते।
नीरज अम्बष्ठ, रांची। झारखंड में धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर ढूंढ़े नहीं मिल रहे हैं। एक तो राज्य सरकार को अपने अस्पतालों में आवश्यकता के अनुसार डॉक्टर नहीं मिल रहे हैं, दूसरे जो उपलब्ध हैं उनमें से भी कई ड्यूटी से लगातार गायब रहकर मरीज के साथ सरकार की परेशानी बढ़ा रहे हैं।
खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह समस्या और भी विकराल बनी हुई है। पिछले दिनों 28 दिसंबर को सरकार के तीन साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री रघुवर दास से डॉक्टरों की कमी पर सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब दिया कि सरकार अब डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए दूसरे राज्यों का रुख करेगी।
नियुक्ति में कई रियायतें देने तथा डॉक्टरों को अतिरिक्त इंशेंटिव देकर उन्हें सरकारी सेवा में आने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया गया। इसके बावजूद चिकित्सों की कमी सरकार के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। सबसे पहले नियुक्ति प्रक्रिया में लिखित परीक्षा का प्रावधान हटाया गया। इसके बाद स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को नियुक्ति के साथ ही एकमुश्त तीन से चार इंक्रीमेंट देने का निर्णय लिया गया। इसका भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला।
जब इस संबंध में कुछ चिकित्सकों से बात की गई तो नाम नहीं छापने की शर्त पर उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा दी जाने वाली सैलरी बहुत ही कम है। दूसरी तरफ, कोई डॉक्टर पाकुड़ और गोड्डा जाकर नौकरी नहीं करना चाहेगा। एक-दो का यह भी कहना था कि कोई डॉक्टर बाबुओं और अफसरों की चिरौरी करने के लिए सरकारी सेवा में क्यों आना चाहेगा।
396 पदों के विरुद्ध मिले मात्र 80
खासकर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के रिक्त पद भरने के लिए राज्य सरकार बार-बार वैकेंसी निकाल रही है, लेकिन सरकारी सेवा के लिए डॉक्टर मिल नहीं रहे। सरकार ने हाल ही में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 396 पदों पर जेपीएससी से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कराई। लेकिन मात्र 116 डॉक्टर ही जेपीएससी को मिल पाए। इनमें से भी मात्र 80 डॉक्टरों ने ही योगदान दिया।
बताया जाता है कि इनमें से कुछ योगदान देने के बाद अवकाश पर चले गए हैं। इससे पहले वर्ष 2016 में भी लगभग 600 पदों पर शुरू हुई नियुक्ति प्रक्रिया में मात्र 100 डॉक्टर मिले। स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के नहीं मिलने से जिला स्तर के अस्पतालों में सर्जरी नहीं हो पाते। झारखंड में मातृ व शिशु मृत्यु के लिए यह सबसे बड़ा कारण है।
करना पड़ रहा है टेंडर
अब आवश्यक संख्या में स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं मिलने के कारण राज्य सरकार को टेंडर की प्रक्रिया अपनानी पड़ रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के तहत 167 पदों पर नियुक्ति के लिए बिड जारी कर दिया गया है। इसके तहत, टेंडर में सबसे कम सैलरी की मांग करनेवाले डॉक्टरों की नियुक्ति की जाएगी। झारखंड में यह मॉडल सफल रहा तो स्वास्थ्य विभाग के अधीन होनेवाली नियुक्ति में भी इसे लागू किया जा सकेगा।
डॉक्टर लगातार रहते हैं गायब
यहां डॉक्टरों की लगातार अनधिकृत अनुपस्थिति भी सबसे बड़ी समस्या है। अस्पतालों से एक-एक माह डॉक्टर गायब रहते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो कई माह से गायब हैं। राज्य सरकार ने दिसंबर में सिविल सर्जनों से रिपोर्ट मंगाई तो पता चला कि सिर्फ 11 जिलों में ऐसे डॉक्टरों की संख्या 117 है। कमोबेश यही स्थिति अन्य जिलों में भी है। इनमें से कुछ ऐसे हैं जो योगदान देने के बाद गायब हो गए तो कुछ बीच-बीच में गायब रहते हैं।
तेजी से ले रहे हैं वीआरएस
ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि जब किसी डॉक्टर पर नियमित उपस्थिति के लिए दबाव डाला जाता है तो वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दे देते हैं। पिछले दो सालों में लगभग एक सौ डॉक्टरों ने वीआरएस ले लिया।
केस-1
जयनगर एपीएचसी, कोडरमा में पदस्थापित अनादि कुमार मांझी 14 मार्च 2014 से 25 जून 2014 तक अवकाश बढ़ाने के आवेदन के बाद से आजतक अनधिकृत रूप से अनुपस्थित हैं। इन्होंने वीआरएस के लिए भी आवेदन दे दिया है।
केस-2
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, लिट्टीपाड़ा में पदस्थापित डा. रेहान 26 नवंबर 2015 को योगदान देने के बाद 27 नवंबर 2015 तक आकस्मिक अवकाश का आवेदन देकर आजतक अपने ड्यूटी से गायब हैं।
केस-3
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, इचाक-हजारीबाग में पदस्थापित डा. दिव्या रानी 21 फरवरी 2016 से 30 जून 2016 तक का अवकाश का आवेदन देकर आज तक गायब हैं।
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