तीरंदाजी की द्रोणाचार्य है पूर्णिमा
द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित तीरंदाज पूर्णिमा महतो किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। बिरसानगर के गर
द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित तीरंदाज पूर्णिमा महतो किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। बिरसानगर के गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली पूर्णिमा ने अपनी जीवटता व जुनून से तीरंदाजी की दुनिया में अलग पहचान बनाई और दीपिका कुमारी, जयंत तालुकदार और डोला बनर्जी जैसे अनगिनत तीरंदाज देश के नाम समर्पित किए। 2008 ओलंपिक तीरंदाजी टीम की कोच रही पूर्णिमा ने लंदन ओलंपिक में भी भारतीय टीम के साथ रहीं। 29 अगस्त 2013 को उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें द्रोणाचार्य के पुरस्कार से सम्मानित किया।
शुरुआत से ही पूर्णिमा को तीरंदाजी से लगाव रहा। वह हर रोज बिरसानगर से आठ किलोमीटर दूर बर्मामाइंस जाकर तीरंदाजी का प्रशिक्षण लेती थी। 1992 में राज्य तीरंदाजी टीम में पहली बार उनका चयन हुआ। वह कई वर्षो तक राष्ट्रीय चैंपियन रहीं। 1993 में अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी की टीम स्पद्र्धा में पदक जीतने वाली पूर्णिमा ने 1994 में पुणे में आयोजित नेशनल गेम्स में छह स्वर्ण जीतकर तहलका मचा दिया। 1994 में आयोजित एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पूर्णिमा ने 1997 में सीनियर नेशनल में रिकार्ड के साथ दो स्वर्ण अपने नाम किए। 1998 कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत हासिल करने वाली बिरसानगर की इस बाला ने 1994 में टाटा तीरंदाजी अकादमी में प्रशिक्षण देना शुरू किया। 2005 में स्पेन में आयोजित भारतीय टीम ने रजत पदक जीता। 2007 में सीनियर एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप में पुरुष टीम ने स्वर्ण व महिला टीम ने कांस्य पर कब्जा जमाया।
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कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें महिलाओं के लिए अवसर नहीं है। चाहे वह खेल हो या फिर युद्ध का मैदान। 26 जनवरी को राजपथ पर परेड में जब सैन्य परेड की कमान एक महिला ने थामी तो पूरे देश का सिर गौरव से ऊंचा हो गया।
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