झारखंड में युवती के हल चलाने पर विवाद, ग्रामीण बोले- ये अपशकुन है; सुनाया सामाजिक बहिष्कार का फरमान
झारखंड का गुमला जिला अशिक्षा के चलते आज भी रुढ़ीवादी विचारों से ग्रसित है। विशेषकर आदिवासी समाज में इस तरह की बातें ज्यादा देखने को मिलती है। हालांकि समय-समय पर इन रूढ़िवादी विचारधाराओं को दरकिनार कर आगे बढ़ने वाले लोग भी पैदा लिए हैं। उन्हीं में एक 22 साल की मंजू है। मंजू ने एक हल चलाया तो उसका गांववालों ने जमकर विरोध किया। पढ़िए क्या है पूरी कहानी
संतोष कुमार, गुमला। आदिवासी और पिछड़ा बहुल गुमला जिले के लोगों में आज भी अशिक्षा के कारण अंधविश्वास और रूढ़ीवादी सोच प्रबलता के साथ कूट-कूट कर भरा हुआ है। विशेषकर आदिवासी समाज दकियानूसी के कारण पिछड़ता जा रहा है।
इन सब के बीच कुछ गिने चुने लोग ऐसे लोगों को आइना दिखाने का काम समय-समय पर करते रहे हैं। इनमें सिसई प्रखंड के शिवनाथपुर पंचायत के डहुटोली गांव की कॉलेज में पढ़ने वाली छात्रा मंजू उरांव चर्चा में रही है। अगस्त 2022 में जब मंजू ने ट्रैक्टर से हल चलाया तब सारे गांव के लोग इसके विरोध में खड़े हो गए।
आदिवासी समाज में ऐसी क्या है मान्यताएं
आदिवासी समाज में ऐसी मान्यता है कि यदि कोई स्त्री हल चलाती है तो इससे अपशकुन होता है। गांवों में महामारी, अकाल या दैवीय प्रकोप का सामना लोगों को करना पड़ता है। बस इसी बात को लेकर ग्रामीणों ने गांव में पंचायत बुला लिया।
मंजू और मंजू के परिजनों पर जुर्माना लगाया गया। दोबारा हल नहीं चलाने और माफी मांगने के अलावा गांव में पूजा-पाठ कराने के लिए दबाव बनाया गया।
इतना ही नहीं, गांव से मंजू के परिवार का बहिष्कार करने का भी पंचायत ने फरमान सुना दिया, लेकिन मंजू को इन सब बातों से लेना देना नहीं था। उसे तो दकियानूसी से बाहर निकलने और स्वच्छंद उड़ने की उत्कंठा थी।
ग्रामीणों के समक्ष उसने भी अपनी दलील पेश की, लेकिन उसकी एक न चली, क्योंकि पूरा गांव एक तरफ और मंजू व उसका परिवार एक तरफ था।
मीडिया में मामला आया तो जिला प्रशासन हुए एक्टिव
जब मीडिया में यह मामला प्रकाश में आया तब जिला प्रशासन भी हरकत में आया। पंचायत के प्रतिनिधियों के अलावा प्रशासनिक अधिकारियों का लगातार दौरा और बैठकों का दौर शुरू हो गया। अधिकारियों के समझाने-बुझाने और दबाव के बाद ग्रामीण शांत हो गए।
मंजू विजय हुई औरे वह अब और अधिक लगन-मेहनत से खेती के कार्य में जुट गई। कार्तिक उरांव महाविद्यालय में स्नातक कर रही 22 वर्षीय मंजू को खेती का जुनून आगे बढ़ाता चला गया। धीरे-धीरे मंजू ने खेती का विस्तार करना भी शुरू किया।
इस घटना के बाद विभाग द्वारा कैंप लगाया गया था। उसे खाद-बीज आदि दिए गए थे। उसे प्रोत्साहित भी किया गया था। सरकार की योजनाओं से आच्छादित करने के लिए विभाग द्वारा पहल किया गया, लेकिन विभागीय कार्यों में विलंब और कागजी प्रक्रिया से इतर मंजू ने अपने ही बलबूते खेती करने का निश्चय किया।
लीज पर जमीन लेकर करती है खेती
मंजू गांव वालों के खाली जमीन को लीज में लेती है। बेकार पड़े जमीन का ग्रामीणों को पैसा मिल जाता है, जबकि मंजू इस जमीन से सोना निकाल लेती है। पहले खेतों को खेती योग्य बनाती है। ट्रैक्टर और अन्य उपकरणों की मदद से खेत तैयार करती है। इसके उपरांत इसमें खेती करती है।
समय प्रबंधन में माहिर मंजू बाजार को पकड़ती है और बाजी मार लेती है। उसके उत्पादन का क्रय करने के लिए बाहर लोग आते हैं और एकमुश्त ले जाते हैं। मंजू से गांव के अन्य लोग भी खेती के गुर सीखते हैं। कई लोग उसे प्रेरणा स्रोत मानते हैं। वर्तमान में उसने दस एकड़ लीज पर ली गई और जमीन पर मटर की खेती की है।
खुद से बनी दक्ष
मंजू ने कभी न तो खेती का प्रशिक्षण प्राप्त किया और न कभी किसी ने खेती के गुर सीखाए। उसने अपने गांवों में जो देखा उसी से सीखा और व्यवहार में लाया और धीरे धीरे खुद खेती के मामले में दक्ष बन गई। कुछ यू ट्यूब से मदद जरुर ली है।
क्या कहती हैं मंजू
जब महिलाएं कदम से कदम मिलाकर पुरुषों के साथ चल रही है तब भला खेती-किसानी का काम महिलाएं क्यों नहीं कर सकती है। महिलाएं तो पुरुषों से अच्छा हर कार्य को कर सकती है। बस उसे करने का मौका तो दिया जाए। उसे खेती करने में रुचि है, इसलिए वह खेती करती है।
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