Giridih News: एक तरफ उठी बेटी की डोली, दूसरी तरफ निकली बेटा की अर्थी; गमगीन हुआ माहौल
Giridih News उस वक्त खुशी का माहौल गम में बदल गया जब बहन की शादी के अगले सुबह ही भाई की सड़क हादसे में मौत हो गई। घर से एक तरफ बेटी की डोली निकली तो दूसरी तरफ बेटे की अर्थी। यह मंजर देख वहां मौजूद लोगों के रोंगटे खड़े हो गए। हर किसी की आंखें नम है। जहां कल तक खुशियों का माहौल था आज आंसुओं का सैलाब है।
संवाद सहयोगी, हीरोडीह (गिरिडीह)। Giridih News एक डोली उठी एक अर्थी… यह गीत सुनते ही हमारे आंसू गिरने लगते हैं, लेकिन जब ऐसे मामले सामने आते हैं तो उस जगह पर कैसा माहौल रहता होगा, यह सोचना ही दिल पर पत्थर रखने के समान होता है। पूरी रात खुशी और उमंग के बीच जहां गीत और संगीत के बीच एक परिजनों व रिश्तेदारों में खुशियां थी वहीं अगली सुबह शोक की लहर दौड़ गई।
एक ऐसी घटना घटी की हर किसी की आंख नम हो गई। पूरे गांव में मातम पसर गया। दरअसल, देवघर बाबा बैद्यनाथ धाम से बीते बुधवार देर रात विवाह संपन्न होने के बाद गुरुवार की सुबह एक तरफ बेटी की डोली उठी, दूसरी तरफ करिहारी गांव से बेटे की अर्थी।
ये मंजर देखकर सभी के आंखों से आंसू की धारा बह रही थी, जहां एक पिता को बेटे की अर्थी को कंधा देना पड़ा। जहां कल तक खुशियां थी, वहां आज गम और आंसुओं का सैलाब था। मामला खोरीमहुआ अनुमंडल क्षेत्र के करिहारी गांव का है, जहां एक युवक की सड़क दुघर्टना में मौत हो गई।
क्या है पूरा मामला
बताया जाता है गांव निवासी प्रदीप मंडल अपनी बेटी सुनीता कुमारी की देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर में विवाह संपन्न होने के बाद नमः आंखों से परिजन व रिश्तेदार विदाई की रस्म अदा कर सभी लोग वापस घर लौट रहे थे। इस दौरान प्रदीप के पुत्र शंभू भी अपने एक रिश्तेदार के साथ बाइक से लौट रहा था।
इस दौरान जसीडीह थाना क्षेत्र के महतोटांड गांव के समीप अनियंत्रित होकर बाइक सड़क किनारे पेड़ से जा टकराई, जिससे बाइक सवार दोनों लोग गंभीर रूप से घायल हो गया था। तब बेहतर उपचार कराने ले जाने के दौरान डुमरी के आस-पास 20 वर्षीय शंभू की मौत हो गई। इधर, गुरुवार शाम को हिन्दू रिति-रिवाज के साथ शंभू का अंतिम संस्कार किया गया।
पिता के कंधे पर पुत्र की अर्थी देख दहल गई जिंदगी
पिता के कंधे पर पुत्र की अर्थी को संसार का सबसे बड़ा बोझ माना जाता है। गुरुवार को ऐसा ही दारुण दृश्य तब दिखा जब हीरोडीह थाना क्षेत्र के करिहारी गांव निवासी प्रदीप मंडल अपने जवान बेटे की अर्थी लेकर श्मशान घाट पहुंचे। जिस पुत्र को न मालूम कितने प्यार-दुलार से पाला था, उसी को थरथराते बदन से मुखाग्नि देते देख मानो जिंदगी भी भयभीत होकर रो पड़ी।
कलपते हुए उनके मुख से निकल रहा था कि हे राम, यह कैसा विकराल समय आ गया। जिस जवान बेटे के कंधों पर मुझे श्मशान आना था, आज वही बेटा मेरे कंधों पर श्मशान पहुंचा है। आसपास खड़े लोगों की भी आखें नम थी। लोगों के पास शब्द ही नहीं थे इस पिता को समझाने के लिए। श्मशान के उस कोने में विधि के विधान के आगे आदमी बेबस था, जिंदगी भी बेबस थी।
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