परिवार की दीक्षा ने दी समाज को शिक्षा
संवाद सहयोगी डुमरी (गिरिडीह) रविवार का दिन जैन समाज के लिए बेहद खास रहा। जैन समाज के इतिह

संवाद सहयोगी, डुमरी (गिरिडीह): रविवार का दिन जैन समाज के लिए बेहद खास रहा। जैन समाज के इतिहास में पहली बार एक परिवार के चार सदस्यों ने इस दिन जैनेश्वरी दीक्षा ली। राजस्थान निवासी एक परिवार के भरत मैयावत, उनके छोटे भाई राधवेश मैयावत, जेठानी सरोज मैयावत और देवरानी राजमनी मैयावत ने जब दीक्षा ली तो सोशल मीडिया पर दीक्षा समारोह देख रहे जैन धर्म से जुड़े लाखों लोग भावविह्वल हो गए। धर्मपथ पर चलने का एक परिवार का कठोर संकल्प समाज को कई सीख दे गया। इनके अलावा बेंगलुरु के पर्वसाग और पश्चिम बंगाल की भंवरी देवी ने भी दीक्षा ली। सभी श्रद्धालुओं ने प्रसन्न सागर के सानिध्य में निमियाघाट में चल रहे जैनेश्वरी दीक्षा समारोह में दीक्षा ली।
ऑनलाइन प्रवचन में दीक्षार्थियों व भक्तों को संबोधित करते हुए पुष्पगिरि तीर्थ प्रणेता पुष्पदंत सागर ने कहा कि प्रसन्न सागर के तपवृक्ष के ऊपर उनकी साधना के फल आएंगे। वह अब दीक्षा देंगे, मैंने उन्हें अनुमति दे दी है। मैं भी बहुत आनंदित हूं। भक्त दीक्षा जीवन की परीक्षा है। दीक्षा बड़ा से बड़ा विद्रोह है। जो संस्कार आदिकाल के हैं, वे उदय में तो आएंगे। यह मार्ग सरल नहीं है। दीक्षा एक शहद लगी तलवार है जिसे चाटने जैसा है संन्यास लेना।
उन्होंने कहा कि वे सीता रानी की तरह अग्नि परीक्षा में सफल हो गए तो सब का कल्याण होगा। पियूष सागर ने कहा कि न राज है जिदगी न नाराज है। जिदगी याद रखना बस जो है आज है। दीक्षा अर्थात स्वयं को स्वयं से जोड़ने की शिक्षा, सिद्धालय तक पहुंचने वाली दीक्षा और समाधि की साधना सिखाने वाली शिक्षा है।
प्रवक्ता रोमिल जैन, पियुष कासलीवाल और नरेंद्र अजमेरा ने बताया कि सर्वप्रथम बहन खुशी, मुक्ति, आरु, किट्स और जैनिशस जैन ने मंगलाचरण किया। अमित बड़जात्या ने ध्वजारोहण तो राजेश नवडिया ने दीप प्रज्वलित किया। वर्षा सेठी की टीम ने स्वागत नृत्य नाटिका प्रस्तुत किया। संचालन तरुण भैया ने किया।
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