यहां पुरोहित नहीं गुरु माता करती हैं दुर्गा पूजा, पश्चिम बंगाल से पहुंचते हैं साफा-होड़ समुदाय के श्रद्धालु
दुमका के कड़हलबिल गांव में स्थित साफा होड़ मंदिर में दुर्गा पूजा पुरोहित नहीं बल्कि गुरु माता कराती हैं। 1979 से यहां पारंपरिक सनातन रीति-रिवाज से दुर्गापूजा हो रही है। गुरु शोभान टुडू के बाद उनकी पत्नी लुखी देवी मुर्मू यह जिम्मेदारी निभा रही हैं। सप्तमी को कलश स्थापना होती है और नवमी को साफा होड़ समुदाय के लोग बड़ी संख्या में जुटते हैं।

राजीव, दुमका। झारखंड की उपराजधानी दुमका के शिव पहाड़ से सटे कड़हलबिल पंचायत के कड़हलबिल गांव में स्थापित साफा होड़ मंदिर में दुर्गा पूजा अनुष्ठान पुरोहित नहीं, बल्कि गुरु माता कराती हैं।
खास बात यह भी कि यहां साफा समुदाय के श्रद्धालु पूरे सनातन विधि-विधान से आडंबर रहित मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। साफा होड़ मंदिर आवासीय अनुसूचित जनजाति बालिका उच्च विद्यालय परिसर से बिल्कुल सटा हुआ है।
साफा होड़ संस्कृति समिति के सचिव मुंशी टुडू बताते हैं कि वर्ष 1979 से यहां पारंपरिक सनातन रीति-रिवाज से वैष्णवी दुर्गापूजा अनुष्ठान किया जा रहा है। इसकी शुरुआत साफा होड़ समुदाय के गुरु शोभान टुडू ने की थी।
यहां बिल्कुल सादगी, अनुशासित और आडंबर रहित तरीके से मां दुर्गा की पूजा होती है। पूजा अनुष्ठान का आयोजन साफा होड़ संस्कृति समिति की ओर से किया जाता है। वर्ष 2003 में शोभान टुडू के निधन के बाद परंपरा के तहत उनकी धर्मपत्नी लुखी देवी मुर्मू बतौर गुरुमाता पूजा की जिम्मेदारी संभाल रही हैं।
दुर्गा पूजन के दौरान गुरुमाता रोजाना कलश का जल बदल कर विधि-विधान से देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करती हैं। यहां सप्तमी के दिन पांच कलशों में तालाब से जल लाकर कलश स्थापित करने का विधान है। प्रतिमा भी सप्तमी को स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के दौरान समुदाय के लोग परंपरागत वेशभूषा में सफेद वस्त्र धारण कर ढोल-ढाक के साथ तालाब पहुंचते हैं और वहां से कलश में जल भरकर मंदिर लौटते हैं, जबकि परंपरा के मुताबिक गुरुमाता और इनके शिष्य जो पूजा अनुष्ठान में शामिल होते हैं, वे लोग षष्ठी से ही अन्न का ग्रहण नहीं करते हैं।
वह पांच दिनों तक फलाहार पर रहते हैं। दशमी को प्रतिमा विसर्जन के उपरांत ही अन्न का ग्रहण करते हैं। इस दौरान गुरुमाता लखी देवी मुर्मू प्रतिदिन तीन घंटे चंडी पाठ करती हैं। दुर्गा समेत अन्य देवी-देवताओं का आह्वान पूरे विधि-विधान से किया जाता है। प्रसाद के तौर पर फल व लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
नवमी के दिन बड़ी संख्या में जुटते हैं साफा होड़ समुदाय के लोग
यहां नवमी के दिन बड़ी संख्या में साफा होड़ समुदाय के लोगों का जुटान होता है। संताल परगना के गोड्डा, पाकुड़, साहिबगंज समेत विभिन्न हिस्सों के अलावा पश्चिम बंगाल से भी बड़ी संख्या में साफा होड़ समुदाय के लोग पहुंचेंगे और पूजा-अनुष्ठान में पूरे अनुशासित भाव से शामिल होंगे।
माता को बतौर प्रसाद खिचड़ी भोग लगाने की परंपरा है। यही खिचड़ी विभिन्न हिस्सों से आए साफा होड़ समुदाय के लोग ग्रहण करते हैं। इस दिन मां को प्रसन्न करने के लिए पारंपरिक अंदाज में भजन व कीर्तन भी किया जाता है।
गांव के लोग कहते हैं कि सनातन धर्म पर उन लोगों की गहरी आस्था है। मांझी थान में पूजा-अर्चना करना हम सभी के दिनचर्या में शामिल है। पूरे एक साल तक हम सभी ग्रामीणों को सनातन परंपरा से मनाया जाने वाला दुर्गाेत्सव का इंतजार रहता है।
दुर्गा पूजा का हमारे समाज में खास महत्व है। हम सभी शक्ति की अराधना करते हैं। तीन से चार घंटा चंडी पाठ करते हैं। दुर्गा पूजा अनुष्ठान के दौरान भजन व पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होता है।
-लुखी देवी मुर्मू, गुरुमाता
साफा होड़ समुदाय के लोग बिना किसी आडंबर के पूरे विधि-विधान में मां दुर्गा की अराधना करते हैं। यहां वैष्णवी तरीके से मां की पूजा होती है। नवमी के दिन संताल परगना ही नहीं पश्चिम बंगाल से भी लोगों का जुटान होता है। -मुंशी टुडू, सचिव, साफा होड़ संस्कृति समिति, कड़हलबिल
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