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झारखंड के पर्यटन मंत्री हफीजुल अंसारी को बड़ी राहत, दस साल पुराने मामले में हुए बरी; महिला संग मारपीट का था आरोप

झारखंड के पर्यटन मंत्री हफीजुल अंसारी समेत आठ आरोपित आज दस साल पुराने एक मामले में बरी हो गए। ये सभी आज एसडीजेएम जितेंद्र राम की अदालत में पेश हुए थे। अदालत ने समझौता के आधार पर सभी को बरी कर दिया। बता दें कि एक महिला ने 24 नवंबर 2013 को मंत्री पर मारपीट करने घर खाली करने का प्रयास और रंगदारी मांगने का मामला दर्ज कराया था।

By Jagran News Edited By: Arijita Sen Thu, 25 Jan 2024 03:53 PM (IST)
झारखंड के पर्यटन मंत्री हफीजुल अंसारी को बड़ी राहत, दस साल पुराने मामले में हुए बरी; महिला संग मारपीट का था आरोप
रिहा होने के बाद गुरुवार को दुमका की अदालत से बाहर निकलते राज्य के पर्यटन मंत्री हफीजुल अंसारी।

जागरण संवाददाता, दुमका। दस साल पुराने मारपीट के मामले में गुरुवार को राज्य के पर्यटन मंत्री हफीजुल अंसारी समेत आठ आरोपित एसडीजेएम जितेंद्र राम की अदालत में पेश हुए। अदालत ने समझौता के आधार पर सभी को बरी कर दिया।

महिला संग मारपीट व रंगदारी मांगने का है आरोप

मंत्री के अधिवक्ता अखलाख उर्फ पप्पू खां ने बताया कि मधुपुर की शांति देवी नामक महिला ने 24 नवंबर 13 को मंत्री पर मारपीट करने, घर खाली करने का प्रयास और रंगदारी मांगने का मामला दर्ज कराया था। केस को एमपी एमएलए की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया।

गवाही के बाद महिला ने मंत्री पर मारपीट कर मोबाइल छीन लेने की बात कही। बयान होने के बाद दोनों पक्ष में आपस में बात समझौता कर लिया। चूंकि मामला अदालत में पहुंच चुका था, इसलिए अदालत ने पहले 12 जनवरी को आरोपित पक्ष को बुलाकर बयान दर्ज किया। अदालत ने पूर्व में हुए समझौता के आधार पर मंत्री समेत सभी आरोपितों को बरी कर दिया।

सरकार को डिस्टर्ब करने का प्रयास : मंत्री

बरी होने के बाद मंत्री ने कहा कि यह सिर्फ सरकार को डिस्टर्ब करने की मंशा है। हम लोग ईडी के आगे डरने- झुकने वाले नहीं हैं। दिशोम गुरू शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सरकार राज्य के मुख्यमंत्री हैं। शेर का बेटा है, न डरेगा और न झुकेगा। ईडी से पूछताछ के दौरान मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कर दिया था कि जो कुछ पूछना है, पूछ लीजिए। फिर समय नहीं दे सकेंगे। राजनीतिक दबाव में ऐसा हो रहा है। सभी हेमंत के साथ हैं।

सीआरपीएफ पर केस के जवाब में कहा कि सीआरपीएफ को वहां जाने की जरूरत नहीं थी। कुछ होता तो जाना चाहिए थे। सीआरपीएफ को पुलिस के अधिकारियों को बताकर जाना चाहिए था। एक थाना से दूसरे थाना में जाने के लिए थानेदार को अनुमति लेनी होती है। बिना कुछ बताए सीआरपीएफ पूरी फोर्स लेकर घुस गई। सीआरपीएफ की मंशा थी कि किसी तरह की उलझन हो और वह तांडव मचाए।

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