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    हस्तशिल्प कला के दम पर लखपति बनी अर्जीना, पुरानी डोकरा कला को दिया नया जीवन

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 02:28 PM (IST)

    दुमका के जग्गूडीह गांव की अर्जीना जादोपटिया ने अपनी पुश्तैनी डोकरा कला को नया रूप देकर सफलता प्राप्त की है। स्वयं सहायता समूह से जुड़कर और ऋण लेकर उन्होंने अपने व्यवसाय को बढ़ाया। उनकी वार्षिक आय 3 लाख रुपये से अधिक हो गई है। अर्जीना अब इस कला को विदेशों तक ले जाना चाहती हैं।

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    हस्तशिल्प कला के दम पर लखपति बनी अर्जीना। फोटो जागरण

    राजीव, दुमका। झारखंड की उपराजधानी दुमका में एक गांव है जग्गूडीह। गांव की विशिष्ट पहचान यहां के जादोपटिया समुदाय की डोकरा कला से है। इसी गांव की अर्जीना जादोपटिया पुश्तैनी डोकरा आर्ट को नया टच देकर न सिर्फ स्वावलंबी बनी है बल्कि लखपति भी।

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    अपनी मेहनत, लगन और संघर्ष से अर्जीना ने डोकरा आर्ट के जरिए अपने परिवार की आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया है। अर्जीना कहती है कि डोकरा कला की मांग और मुरीदों की कोई कमी नहीं है, लेकिन सबसे बड़ी बाधा संसाधनों और बाजार की कमी है।

    इसकी वजह से डोकरा आर्ट से तैयार सामग्रियां सहजता से उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। अर्जीना बताती है कि उसके पति मकबूल जादोपटिया भी डोकरा शिल्प से जुड़े हैं, लेकिन हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी आमदनी सीमित थी।

    जीवन को रफ्तार देने की छटपटाहट और बेचैनी थी। काफी शिद्दत से कोई रास्ता ढूंढ रहे थे और फिर एक दिन रास्ता भी मिल गया। अर्जीना ने कहा कि वर्ष 2019 में वह मां लखी आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर इस विशिष्ट कला व इससे जुड़े व्यवसाय को नई दिशा देने का संकल्प लिया।

    समूह में जुड़ने के बाद आत्मविश्वास बढ़ा और नई-नई जानकारियों से अवगत होने लगी। इसके बाद ऋण लेकर अपने पुश्तैनी व्यवसाय को नए अंदाज में नया टच देकर आगे बढ़ने की पहल तेज कर दी।उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर बिल्कुल आसान नहीं था। पीतल धातु की शिल्पकारी में सबसे अधिक धैर्य और कौशल की जरूरत होती है।

    काफी संघर्ष और मेहनत के बाद आखिरकार डोकरा कला से हाथ की बाला, कान की बाली, मछली, कछुआ, हाथी, दीपक, घुंघरू, अंगूठी, घंटी, गले की चेन, पैला, हंसुआ और अन्य जनजातीय कलाकृतियों में बारीक कारीगरी का पुट समावेशित कर तैयार किया तो इस कला के मुरीदों की ख्वाहिशें भी बढ़ती गई।

    फिर क्या था बाजार की मांग के अनुरूप सामग्रियां तैयार कर इसकी पहुंच दुमका ही नहीं रांची व अन्य राज्यों के अलावा दिल्ली तक बनाने में सफलता मिलती चली गई। सरल मेला व विभिन्न प्रदर्शनियों से भी मांग आने लगी।

    पुश्तैनी धंधे ने दी आर्थिक व सामाजिक स्वावलंबन

    डोकरा कला में निपुणता हासिल करने के बाद अर्जीना ने 1,20,000 रुपये का ऋण लिया। इस धनराशि से अपने काम को आगे बढ़ाया। बाजार में डोकरा उत्पादों की डिमांड तेज हुई तो इसका सीधा असर आमदनी पर पड़ा।

    पूर्व में जो वार्षिक आय 90 हजार रुपये थी वह अब सालाना तीन लाख के पार पहुंच गई है। अर्जीना अब डोकरा कला को सात समंदर पार तक पहुंचाने की तैयारी में है।

    भविष्य की योजनाओं में न सिर्फ अपने व्यवसाय को विस्तार देने की मंशा है बल्कि आधुनिक मशीन भी खरीदने की है। इसके साथ ही वह गांव और समूह से जुड़ी महिलाओं को डोकरा कला सीखने के लिए प्रेरित कर रही है।

    डोकरा कला एक प्राचीन धातु हस्तशिल्प कला नहीं बल्कि झारखंड की अनमोल विरासत है। यह हमारी पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा और आत्मनिर्भरता की पहचान है। इसे संजोकर रखना व आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेवारी है। अपनी पुश्तैनी कला के दम पर ही तीनों बच्चे एक बेटा और दो बेटियों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। पहले घर की जरूरतों को पूरा करना मुश्किल था लेकिन अब जीवन स्तर में बदलाव आया है। समाज में मान-सम्मान बढ़ा है। - अर्जीना