दुमका में 300 साल पुरानी जमींदारी दुर्गा पूजा की परंपरा बरकरार, पांच वंशजों पर जिम्मेदारी
दुमका के रसिकपुर में दुर्गा स्थान मंदिर में जमींदारी दुर्गा पूजा की 300 साल पुरानी परंपरा है। जमींदार दे खानदान के वंशज हर साल पूजा करते हैं जिसकी शुरुआत मानिक चंद्र दे और अनूप चंद्र दे ने की थी। घटवाल समुदाय बलि प्रदान करता है। पांच वंशज बारी-बारी से पूजा का आयोजन करते हैं और परिवार के सदस्य देश भर से इसमें भाग लेते हैं।

राजीव, दुमका। झारखंड की उपराजधानी दुमका के रसिकपुर-एसपी कॉलेज रोड पर स्थित है पुराना दुर्गा स्थान मंदिर। इस मंदिर में जमींदारी दुर्गा पूजन की परंपरा आज भी कायम है। यहां ब्रिटिश हुकूमत के दौर में जमींदार रहे दे खानदान के वंशज हर साल पूजा-अर्चना कराते हैं।
हालांकि जमींदार दे परिवार के वंशजों को ठीक से इसकी जानकारी नहीं है कि उनके किस पूर्वज ने रसिकपुर में जमींदारी या खानदानी पूजा की शुरुआत की थी। पुराने लोग बताते हैं कि जमींदार दे खानदान के पूर्वज मानिक चंद्र दे और उनका भतीजा अनूप चंद्र दे तकरीबन 300 साल पूर्व यहां दुर्गा पूजा की शुरुआत कराई थी।
ये दोनों काका-भतीजा के नाम से प्रसिद्ध थे। दे परिवार के लोगों का कहना है कि उनके पूर्वज संभवत: ब्रिटिश काल से पूर्व मुगलों के शासन में ही वर्धमान से आकर यहां बसे थे। इनके मुताबिक वर्द्धमान में आज भी एक दे पोखर जिंदा है। वर्तमान में काका-भतीजा के पांच वंशज ही पारी बनाकर एक-एक साल यहां दुर्गा मां की पूजा करते हैं।
घटवाल समुदाय ने की थी यहां काली पूजा की शुरुआत
जानकार बताते हैं कि संभवत: यहां घटवाल समुदाय ने घटवाली काली पूजा की शुरुआत की थी। इसके निशान वर्तमान मंदिर के पीछे मां काली की वेदी अब भी यहां मौजूद है। अभी भी यहां दुर्गा पूजा के दौरान अष्टमी व नवमी के दिन बलि घटवाल समुदाय के लोगों के द्वारा ही दिलवाने की परंपरा कायम है।
पांच वंशज साल दर साल कराते हैं पूजा
रसिकपुर दुर्गा मंदिर में प्रत्येक वर्ष दे खानदान के पांच वंशज साल दर साल बारी आने पर दुर्गा पूजा पूरे उत्साह से मनाते हैं। इस वर्ष पारी के हिसाब से अमित दे, देवशंकर दे, सुशांत कुमार दे, प्रशांत दे व मनोज दे पूजा करा रहे हैं।
जबकि दे खानदान के वंशजों में दूसरे ई.स्वपन कुमार दे, तीसरे डा.एसएन दे, सोमनाथ दे, चौथे वंशज स्व.दुलाल चंद्र दे, निमेंद्रनाथ दे, गोरानाथ दे और पांचवें वंशज आशीष कुमार दे एवं उज्ज्वल कुमार दे हैं।
ई.स्वपन कुमार दे कहते हैं कि दे परिवार यहां अपने वंशजों की विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। अब तो नई पीढ़ी ही पूरी जिम्मेवारी संभाल रही है। कहते हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में रहने के बाद भी दुर्गा पूजा में दे परिवार के सदस्य यहां आकर पूजा में शामिल होते हैं।
दुर्गा पूजा हम सभी के लिए खास है। हमारे पूर्वजों ने यहां दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। उस परंपरा का निर्वहन हम पांच वंशज हर साल बारी-बारी से करते हैं।- अमित दे, रसिकपुर
पूजा की बारी आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। पांच साल में एक बार अवसर मिलता है। काफी उत्साह व उल्लास से दुर्गा पूजा करते हैं। किसी तरह की कमी नहीं रहने देते हैं।- देवशंकर दे, रसिकपुर
दे परिवार के लोगों को एक साथ मिलने का अवसर दुर्गा पूजा में ही मिलता है। परिवार के हरेक सदस्य पूजा के दौरान दुमका हरहाल में आने की कोशिश करते हैं। इससे हमारी पीढ़ियां मजबूती का एहसास करती हैं।- प्रशांत दे, रसिकपुर
पूर्वजों की थाती को संभाल कर रखना और आगे बढ़ाना यही हमारी संस्कृति रही है। हम दे परिवार के लोग पूरे विधि-विधान व पारंपरिक तरीके से पूजा-अर्चना करते हैं। काफी आनंद की अनुभूति होती है।- सुशांत दे, रसिकपुर
हमारे पूर्वज मानिक चंद्र दे और उनका भतीजा अनूप चंद्र दे ने यहां दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी। पांचों वंशज एक-एक साल पूजा कराते हैं। हमारी पारी वर्ष 2027 में आएगी।- आशीष कुमार दे, रसिकपुर
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