Dhanbad News: बांस से बनी चीजों के उत्पादन से मालामाल हो रहे हैं आदिवासी, देशभर में हो रही है डिमांड
धनबाद अब आदिवासियों की बांस कारीगरी के लिए पहचान बना रहा है। आदिवासी समुदाय अपनी हस्त कला से देशभर में छा रहे हैं। बांस से बने बैग लैंप कुर्सी टेबल आदि शहरों में घरों की सुंदरता बढ़ा रहे हैं। टिंकर हाट फाउंडेशन इन सामग्रियों को आकर्षक बनाकर बाजार में बेचता है। सरकार भी आदिवासियों को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रही है।

राकेश कुमार महतो, धनबाद। कोयला नगरी धनबाद अब आदिवासीयों की बांस कारीगरी के लिए पहचान बना रही है। पहले खेती-बाड़ी व मजदूरी करने के लिए फेमस आदिवासी समुदाय अब अपनी हस्त कला से देशभर में छा रहे हैं। बांस से बने बैग, लाइट लैंप के अलावा कुर्सी, टेबल आदि बेंगलुरु, मुंबई, कोलकाता, बिहार आदि राज्यों में छा रहे हैं और लोगों के घरों की सुंदरता बढ़ा रही।
ऐसे तो आदिवासी लोग सिर्फ बांस से सूप व डलिया बनाते थे। लेकिन अब पढ़ाई-लिखाई के साथ आकर्षक कारीगिरी के लिए भी जाने जा रहे है।
कोयला नगरी में अब दिखेगा आदिवासियों के हाथों की कला
बांस से बनी सामग्री को टिंकर हाट फाउंडेशन के सदस्य उस सामग्री को रंग कर विद्युत लाइट की मदद से आकर्षक तरीके से डेवलप कर बाजार में उपलब्ध कराते है। बांस की बनी समाग्री को हस्त शिल्प मैला, स्वदेशी मेला के अलावा बाजार आदि जगहों में बिक्री किया जाता है।
इसके अलावा कई दुकानदार उनके घर से ले जाकर बेचते हैं। फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य है कि धनबाद को देश भर में लोग कोयला के लिए जाना जाता था। लेकिन अब आदिवासियों के हाथ से बने सामग्री के लिए जाना जाएगा। सभी सामान ऑनलाइन फ्लिपकार्ट या अमेजॉन के माध्यम से भी देश भर में जल्द उपलब्ध कराएं जाएंगे।
देशभर में खोले गए 69 फील्ड ऑफिस
आदिवासियों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार हर एक स्तर से कार्य कर रही है। इन दिनों वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार की ओर से देशभर में 69 फील्ड ऑफिस खोले गए हैं। झारखंड में दो ऑफिस रांची व देवघर में है। देवघर ऑफिस से धनबाद के बेलगाड़िया, सेरसाकुड़ी, घोंघाबाद, बेदियाटोला में देखरेख किया जाता है।
विकास आयुक्त हस्तशिल्प के सहायक निर्देशक भुवन भास्कर ने बताया कि घोंघाबाद गांव को मॉडल गांव बनाने का भी निर्णय लिया गया हैं। इससे आदिवासियों को और अधिक सुविधाएं मिलेगी।
घोंघाबाद में 40 ग्रामीण कर रहे कार्य
टिंकर हाट फाउंडेशन के सदस्य सुंदर लाल कुमार ने बताया कि भारत सरकार की सामर्थ्य योजना से प्रशिक्षण प्राप्त कर इन दिनों घोंघाबाद
में 40 ग्रामीण बांस से विभिन्न प्रकार के आकर्षक सामान बना रहे है। इस वक्त प्रत्येक सात से दस 15 हजार रुपया प्रतिमाह कमा रहे है।
बताया गया कि पूर्व में आदिवासियों के द्वारा बनाई गई सामग्री का उचित दर उन्हें नहीं मिल पाता है। जिस कारण उन्हें जीवन यापन करने में कठिनाई होती है और आदिवासी पुरुष पलायन होने को मजबूर हो जाते हैं। यहां तक कि महिलाएं भी मजदूरी के लिए विवश हो जाती है।
इसी को रोकने के लिए और आदिवासियों की कला को निखारने के लिए उनके द्वारा बनाई गई सामग्री को बाजार में उचित मूल्य पर बेचने के लिए आदिवासियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इस समय प्रत्येक व्यक्ति प्रति माह पांच हजार रुपया या उससे अधिक की कमाई कर रहे हैं।
आईएसएम में आदिवासियों को किया गया सम्मानित
धनबाद के आईआईटी आईएसएम में हस्त शिल्प प्रतियोगिता का आयोजन कर बेहतर बनाने वाले को सम्मानित किया गया था। इसमें झारखंड, बिहार, उड़ीसा, बंगाल आदि राज्यों के आदिवासी शामिल हुए थे।
ऑनलाइन बेचने की तैयारी
टिंकर हाट के को-फाउंडर कुणाल भास्कर ने बताया कि जल्द ही आदिवासियों के बने बांस की सामग्री को ऑनलाइन के माध्यम से देश भर में बेचे जाएंगे। जल्द ही फ्लिपकार्ट व अमेजॉन में भी दिखेंगे। बांस के बने बैग, लाइट लैंप के अलावा कुर्सी, टेबल आदि भी बनाएंगे।
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