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    Rabindranath Tagore Jayanti 2020: कविगुरु को भाता था गिरिडीह के जादुई कुएं का पानी, अब यादों में सिर्फ कहानी

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Thu, 07 May 2020 10:14 AM (IST)

    Magical well of Giridih गिरिडीह जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर इस कुएं का अनूठा इतिहास है। एक समय इसकी ख्याति बिहार एवं बंगाल तक थी। लोगों का कहना था कि इस कुएं का जल औषधीय है।

    Rabindranath Tagore Jayanti 2020: कविगुरु को भाता था गिरिडीह के जादुई कुएं का पानी, अब यादों में सिर्फ कहानी

    गिरिडीह [ दिलीप सिन्हा ]। नोबल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर। देश इन्हेंं कविगुरु के नाम से भी जानता है। ख्यातिप्राप्त शिक्षण संस्थान शांति निकेतन के संस्थापक। गुरुदेव की झारखंड के गिरिडीह से भी कई यादें जुड़ी हैं। गिरिडीह महेशमुंडा रेलवे स्टेशन परिसर के एक कुएं का पानी उनको व उनके परिवार के सदस्यों को बेहद भाता था। आलम ये था कि उस कुएं के पानी को जब वे कोलकाता में रहते तो ट्रेन से मंगाते थे।  

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    अपने जीवनकाल में उनका कई बार गिरिडीह आना हुआ। बेटी रेणुका जब बीमार हुई तो बेहतर आबोहवा के लिए उसे गिरिडीह लेकर आए थे। यहां जब तक रहे तब तक महेशमुंडा के कुएं का ही पानी पीया। आरके महिला कॉलेज गिरिडीह की प्रोफेसर डॉ. मधुश्री सान्याल कहती हैं कि गुरुदेव के दादा  द्वारिकानाथ टैगोर बड़े उद्योगपति थे। उनके समय से ही इस कुएं का पानी टैगोर हाउस कोलकाता ट्रेन से जाता था। टैगोर के मित्र सिरिसचंद्र मजूमदार गिरिडीह में रहते थे। गुरुदेव बीमार बेटी को लेकर उनके यहां आए थे। 1905 में बंगभंग आंदोलन के दौरान भी आए। देशभक्ति गीत एवं कविताएं यहां उन्होंने लिखी थीं। उस समय आरके महिला कॉलेज भी गए थे।

    बिहार और बंगाल तक थी इस कुएं की ख्याति

    गिरिडीह जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर इस कुएं का अनूठा इतिहास है। एक समय इसकी ख्याति बिहार एवं बंगाल तक थी। लोगों का कहना था कि इस  कुएं का जल औषधीय है। स्टीम इंजन के दौर में कुएं के पानी को जार में भरकर बंगाली परिवार कोलकाता ले जाते थे।

    मकान में बन गया था फैक्ट्री इंस्पेक्टर कार्यालय 

    गिरिडीह के पूर्व विधायक व बुजुर्ग नेता ज्योतिंद्र प्रसाद ने बताया कि रवींद्रनाथ टैगोर गिरिडीह के बरगंडा के एक मकान में रहे थे। उस मकान में बाद में फैक्ट्री इंस्पेक्टर कार्यालय बन गया था। यह कार्यालय काफी समय रहा। फैक्ट्री इंस्पेक्टर समेत विभाग के कर्मचारी रवींद्रनाथ की यादें इस मकान से जुड़ी होने के कारण इसे काफी पवित्र मानते थे।

    इलाके के लोगों को भी भाता है कुएं का पानी 

    बंधाबाद गांव के राजकुमार राणा एवं बलदेव महतो ने बताया कि तीन दशक पूर्व तक यह कुआं यात्रियों व ग्रामीणों की प्यास बुझाने का एकमात्र साधन था। तब ना तो चापाकल थे, ना बोङ्क्षरग। ट्रेन आने पर वाटर मैन यात्रियों को इसी कुएं का पानी देते थे। रघईडीह के कमलेश यादव एवं भुनेश्वर राणा ने बताया कि आज भी इलाके के लोगों को यहां का पानी खूब भाता है। कई गांवों के लोग इसे ले जाते हैं। इस पानी के सेवन से पाचन शक्ति मजबूत होती है। हालांकि देखरेख न होने से कुएं की हालत खराब हो चुकी थी। हाल में आसनसोल रेल मंडल ने इसका सुंदरीकरण किया है।