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    Maha Shivratri 2022: चाैंका देगा बाबा बैद्यनाथ मंदिर के पंचशूल का रहस्य, लंकाधीश से जुड़ा इसका इतिहास

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Mon, 28 Feb 2022 06:11 PM (IST)

    Maha Shivratri 2022 महा शिवरात्रि पर बाबा बैद्यनाथ मंदिर देवघर में एक खास परंपरा के तहत मंदिरों के शिखर पर स्थापित पंचशूल को उतारा जाता है। इसकी पूजा कर फिर से पुनर्स्थापित किया जाता है। यह पंचशूल रहस्यों से भरा है। इसका इतिहास लंका नरेश रावण से जुड़ा है।

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    बाबा बैद्यथान मंदिर देवघर के शिखर का पंचशूल ( फाइल फोटो)।

    जागरण डिजिटल डेस्क, देवघर। इस साल एक मार्च, 2022 को महाशिवरात्रि है। देशभर के शिव मंदिरों में उत्साह का माहाैल है। शिवरात्रि की तैयारी चल रही है। हर जगह की अपनी-अपनी खास ऐतिहासिक परंपरा होती है। झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ की मंदिर है। यह देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां पर भी महाशिवरात्रि की धूम है। इस खास माैके पर एक खास परंपरा का निर्वहन होता है। बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल को उतारा जाता है। विधि-विधान से पूजा की जाती है। इसके बाद फिर से शिखर पर पंचशूल को स्थापित किया जाता है। यह पंचशूल रहस्यो से भरा पड़ा है। इसे लेकर धर्माचार्यों में अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक बात पर सब सहमत हैं-पंचशूल का इतिहास और महत्व त्रेत्रा युग में लंका के राजा रावण से जुड़ा हुआ है।

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    देश में सिर्फ देवघर में ही पंचशूल

    झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम का शिव मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में एक है। लेकिन यह सबसे अलग है। यही कारण है कि यहां के ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करने वालों की सालों भीड़ लगी रहती है। वैसे सावन में प्रतिदिन एक लाख से ज्यादा भक्तों का जुटाना होता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके सिर पर त्रिशूल नहीं पंचशूल है जिसे सुरक्षा कवच माना गया है। देश में सिर्फ देवघर में ही पंचशूल होने का दावा किया जाता है। धर्माचार्यों का कहना है कि शिव पुराण में ज्योतिर्लिंग की पूजा का महत्व बताया गया है। कहा गया है कि अगर कोई 6 महीने तक लगातार शिव ज्योतिर्लिंग की पूजा करता है तो उसे पुनर्जन्म का कष्ट नहीं उठाना पड़ता। 

    रावण ने सुरक्षा के लिए शिखर पर  स्थापित किया पंचशूल

    बैजनाथ मंदिर के शिखर पर लगे पंचशूल के विषय में धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है। एक मत त्रेता युग में लंका के राजा के राजा रावण द्वारा देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर निर्माण का है। रावण ने लंका की सुरक्षा के लिए लंका के चारों द्वार पर पंचशूल का सुरक्षा कवच स्थापित किया था। अखिल भारतीय तीर्थपुरोहित महासभा के पूर्व महासचिव दुर्लभ मिश्रा बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था। जबकि भगवान राम के बस में यह नहीं था। विभीषण ने जब यह बात बताई तभी राम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर सकी। राणव ने ही बाबा बैद्यनाथ मंदिर की सुरक्षा के लिए शिखर पर पंचशूल का सुरक्षा कवच लगाया था। यही कारण है कि आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का बाबा बैद्यनाथ मंदिर पर असर नहीं हुआ है। पंडितों का कहना है कि पंचशूल का मानव शरीर में मौजूद पांच विकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या का नाश करता है। पंचशूल को पंचतत्व-क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर से बने मानव शरीर का द्योतक बताया है।

    मुख्य मंदिर समेत 22 मंदिरों के शिखर पर पंचशूल

    मंदिर के पंडों के मुताबिक मुख्य मंदिर में स्वर्ण कलश के ऊपर लगे पंचशूल सहित यहां के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार महा शिवरात्रि के दिन नीचे उतार लिया जाता है। सभी को एक निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा कर फिर से वही स्थापित कर दिया जाता हैष इस दौरान शिव और पार्वती के मंदिरों के गठबंधन को भी हटा दिया जाता है। लाल कपड़े के दो टुकड़ों में दी गई गांठ खोल दी जाती है और महाशिवरात्रि के दिन फिर से नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन वाले पुराने लाल कपड़े के दो टुकड़ों को पाने के लिए हजारों भक्त यहां एकत्रित होते हैं। पंचशूल को मंदिर के शिखर से नीचे लाने और फिर ऊपर स्थापित करने का अधिकार एक ही परिवार को प्राप्त है। इस साल भी पंचशूल को नीचे उतारने और फिर पूजा कर स्थापित करने की परंपरा का विधि-विधान से निर्वहन किया गया। 

    पंचशूल और त्रिशूल का फर्क

    देवघर के पंडित दुर्लभ मिश्रा पंचशूल और त्रिशूल का अंतर बताते हुए कहते हैं-पंचशूल सिर्फ देवघर में है। पंचशूल पांच तत्व से बना है- पृथ्वी (क्षिति), जल ( पानी), पावक ( आग) , गगन ( आकाश) तथा समीर (वायु)। जबकि त्रिशूल में तीन तत्व होते हैं-वायु, जल और अग्नि।