मिटने के करीब हैं इस राज परिवार की निशानियां, जानिए
राज परिवार के लोग अपने परिवार की निशानी बचाने के लिए गुहार लगा रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं।
भारतीय बसंत कुमार, धनबाद। करीब 250 साल पहले अस्तित्व में आया शहर झरिया यहां जमीन के अंदर लगी आग के कारण मृत्युशैय्या पर पड़ा है। मौत की तारीख तय नहीं है, पर शहर सशंकित है कि वह धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों का हिस्सा बनने वाला है। पूरे देश में कोकिंग कोल की अपनी पहचान बचाने को वह व्यग्र है।
झरिया के चार नंबर चौक पर बात करते हुए वकील हरीश जोशी और अरुण जायसवाल, दोनों आपस में वाद-विवाद में उलझ जाते हैं। हरीश झरिया के पुराने वकील हैं। यहां की कई प्रॉपर्टी को डील भी करते हैं। कहते हैं कि आग का दायरा कम हो रहा है। यह फिजूल की बातें हैं कि झरिया खाली हो जाएगा। सुना नहीं आपने कि सिंदरी कारखाना शुरू होने वाला है। सिंदरी जैसे चालू होगा, झरिया की रौनक लौट आएगी। इसके उलट कपड़ा कारोबारी अरुण जायसवाल अपनी बात रखते हैं।
कहते हैं कि दिन ब दिन बिक्री बैठ रही है। भला हो यहां के उन लड़कों का जो सऊदी में हैं। वहां से कमा कर भेजते हैं तो यहां का बाजार जिंदा है। वरना आसपास के लोगों के पलायन का सर्वाधिक असर तो यहां के कारोबार पर ही पड़ा है। झरिया की रग-रग में उसका इतिहास बसा है। राजपरिवार की निशानी के बंगले तो आज भी हैं ही। यहां की गलियों में इतिहास के किस्से अपने नामकरण के साथ दर्ज हैं। 1767 में यहां बियाबान जंगल था। डोमराजा कबीलों के साथ यहां राज करते थे। तब रीवा राजपरिवार के संग्राम सिंह अपने तीन भाइयों के साथ झरिया आए।
उस समय यहां गिनी-चुनी आबादी थी। संग्राम सिंह और उनके भाइयों की डोमराजा से जंग हुई। संग्राम सिंह ने डोमराजा की सेना को मार गिराया। डोमराजा बचकर भागे तो झरिया के एक इलाके में चार वार में मार गिराए गए। आज भी इस क्षेत्र का नाम इसी कारण चौथाईकुल्ही है। झरिया कोयलांचल में कोयला खनन की शुरुआत 1890 में हुई। ब्रिटिश कंपनियों ने कोयला निकालने के लिए यहां रेल पटरी बिछाई। डोमराजा की पराजय के बाद संग्राम सिंह झरिया के राजा बने। इनके अन्य भाई बाद में पड़ोस के नवागढ़, कतरास व पालगंज के राजा बने। झरिया में राजा संग्राम सिंह के बाद में इनके वंशज उदित नारायण सिंह, रासबिहारी सिंह, जयमंगल सिंह, दुर्गा प्रसाद सिंह झरिया के राजा बने।
1914-15 में शिवप्रसाद सिंह झरिया के राजा बने। इस राजपरिवार यानी शिवप्रसाद सिंह की संतति के काली प्रसाद सिंह, कुंवर तारा प्रसाद, ठाकुर श्यामा प्रसाद, उमा प्रसाद व नुनू रामा प्रसाद सिंह का परिवार इस समय झरिया में है। इनमें से कुछ लोग विदेश में हैं। राजबाड़ी के राजमहल में झरिया राजपरिवार के वंशज रह रहे हैं। राजा शिवप्रसाद सिंह के निधन के दस साल बाद 1956 में जमींदारी प्रथा खत्म हुई। राजा काली प्रसाद के निधन के बाद उनके बड़े पुत्र महेश्वर प्रसाद सिंह को राजपरिवार की पगड़ी सौंपी गई। राज परिवार का कोयले के कारोबार से कोई वास्ता नहीं दिखता है।
शिव प्रसाद सिंह ने जिस कॉलेज-स्कूल को बनाया-बसाया, उसको खाली कराया जा रहा है। उनके परिवार की पुत्रवधू माधवी सिंह कहती हैं कि झरिया की जनता की सेवा में उनके परिवार जितना बड़ा योगदान किसी का नहीं है। किस्मत का खेल देखिए। राज परिवार के लोग अपने परिवार की निशानी बचाने के लिए गुहार लगा रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं। उनकी तैयारी है कि निशानी बचाने के लिए कोर्ट तक जाएं।
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