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    Swatantrata Ke Sarthi: महावीर शामी कला से बिखेर रहे संस्कृति में रंग, दीवारों पर दिख रही है महापुरुषों की झलक

    Updated: Thu, 14 Aug 2025 04:21 PM (IST)

    धनबाद के महावीर शामी सोहराय कला को सहेज रहे हैं। नौकरी छोड़कर उन्होंने खुद को इस मिशन के लिए समर्पित कर दिया। तीन साल में राज्य के नौ जिलों के लगभग 200 गांवों में 55 हजार वर्ग फीट दीवारों पर चित्रकारी की है। पंचायत भवन स्कूल और सार्वजनिक स्थलों पर महापुरुषों और त्योहारों के चित्र बनाए हैं।

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    महावीर शामी नौ जिलों के गांवों में अपनी कला छाप रहे संस्कृति का चित्र। जागरण फोटो

    आशीष सिंह, धनबाद। झारखंड की संस्कृति दीवारों पर उकेर सदियों पुरानी सोहराय कला धनबाद के बाघमारा में रहने वाले कलाकार महावीर शामी सहेज रहे हैं। इनकी ख्याति माटी चित्रकार के रूप में हो चुकी है। कला के प्रति जुनून ऐसा कि नौकरी छोड़ दी। खुद को इस मिशन के लिए समर्पित कर दिया है।

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    गांव-गांव जाकर बिना पारिश्रमिक लिए सांस्कृतिक चित्रकारी कर रहे हैं। तीन साल में राज्य के नौ जिलों के करीब 200 गांवों में 55 हजार वर्ग फीट दीवारों में रंग भरे हैं।

    इनमें धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग, रांची, खूंटी, रामगढ़, सरायकेला-खरसावां आदि शामिल है।

    महावीर ने पंचायत भवन, स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, सार्वजनिक स्थल के अलावा जहां भी जगह मिली, वहां देश व प्रदेश के महापुरुषों, त्योहारों, जनजातीय नृत्य, लोककथाओं को अपने ब्रश से जीवंत किया। महावीर का लक्ष्य झारखंड के 32,640 गांवों में इस सांस्कृतिक अभियान को पहुंचाना है।

    सीमेंट पर उकेरते परिकल्पनाएं

    अपनी कला सीमेंट पर भी वे उकेर रहे। आखिर सोहराय कला को अमर करने का संकल्प जो लिया है। दीवारों पर सीमेंट की कटिंग कर महापुरुषों की भी छवि उकेरते हैं। महावीर ने बताया अभी तक सीमेंट पर सोहराय चित्रकारी नहीं हुई है। तीन दिन में लगभग 100 फीट दीवार की कटिंग कर लेते हैं। इसके बाद रंग भरते हैं।

    जहां पुरखों ने माटी की दीवारों पर इतिहास रचा। वहीं, हम सीमेंट और ईंटों की पक्की दीवारों पर सहेज रहे हैं, ताकि 20 पीढ़ियां भी इसे भूल न पाएं। हम कौन थे, कहां से आए थे और कितनी मजबूत थीं हमारी सांस्कृतिक जड़ें, यह आने वाली पीढ़ियों को बताना आवश्यक है।

    सोहराय कला सिर्फ चित्र नहीं, आदिवासियों की आत्मा, स्त्री की भावनाएं और प्रकृति के साथ संवाद है। जब यह पानी से मिट जाती है, तो लगता है जैसे हमारी पहचान बह गई। अब यह नहीं मिटेगी। पक्की दीवारों, स्कूलों, सार्वजनिक भवनों, संग्रहालयों और सांस्कृतिक स्थलों पर उकेरी जा रही है।

    दीवारें हमारी संस्कृति की बोलती किताबें होंगी। सीमेंट के माध्यम से सोहराय चित्रकारी की शुरुआत गिरिडीह के तिरला मोड़ से की है। झारखंड के साथ अन्य राज्यों में भी जा कला का प्रसार करेंगे।

    कभी पंचायत भवन तो कभी खुले आसमान के नीचे बीतती रात

    महावीर कहते हैं कि राज्य गठन के बाद भी हमारी भाषा, परंपरा और संस्कृति का ह्रास हो रहा है। इसे रोकने को जनजागरण जरूरी है। इस सोच के तहत कई-कई हफ्तों तक घर से दूर रहते हैं। कभी पंचायत भवन में, तो कभी खुले आसमान के नीचे रात बिताते हैं।

    ठंड में अलाव जलाकर देर रात तक चित्रकारी करना हमारे लिए सामान्य बात है। स्थानीय लोग और सामाजिक कार्यकर्ता कई जगहों पर रंग और सामग्री मुहैया कराकर मदद भी करते हैं।

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