खड़गपुर झील की पहाड़ी पर बनती थी रणनीति, अंग्रेजों को चकमा देने के लिए जंगल का लिया जाता था सहारा
मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने खड़गपुर झील की पहाड़ियों पर रणनीति बनाई। सुरेश्वर पाठक देवश्री पाठक समेत कई सेनानियों ने यहां गुप्त बैठकें कीं। अंग्रेजों को भनक लगने पर वे पहाड़ों और जंगलों में छिप जाते थे। अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा पूरे देश में गूंज रहा था और ब्रिटिश सरकार आंदोलन से घबराई हुई थी।

राम प्रवेश सिंह, हवेली खड़गपुर (मुंगेर)। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों भारत छोड़ो, करो या मरो हर भारतीयों का नारा बन गया। आजादी के संग्राम के इस एलान के बाद पूरा देश आंदोलन की आग में जल उठा था। आंदोलन को देख ब्रिटिश हुकूमत के हाथ-पांव फूल रहे थे।
ब्रिटिश हुकूमत ने नौ अगस्त 1942 को ऑपरेशन जीरो आवर चलाकर महात्मा गांधी सहित आजादी की संग्राम के कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया। इधर जिले के हवेली खड़गपुर झील की पहाड़ पर आजादी के दीवाने रणनीति बना रहे थे।
रणनीति बनाने में जुटे थे आजादी के दीवाने
सुरेश्वर पाठक, देवश्री पाठक, सत्येंद्र पाठक, भागीरथ धरे पाठक, रामेश्वर प्रसाद सिंह, बलदेव कोयरी, सहदेव मंडल, हरिमोहन कोयरी, युगल किशोर शास्त्री, आध्या प्रसाद सिंह, दामोदर सिंह, राम किशन सिंह, महेंद्र प्रसाद सिंह, रामकिशन भगत, परमेश्वर प्रसाद सिंह, अधिक लाल सिंह, हृदय नारायण सिंह, कृत नारायण सिंह, चंद्रदेव मिश्र, मोहनलाल साह, भुवनेश्वर तिवारी, रामचरण साहू, मेवालाल चौधरी, नारायण लाल पासवान, गिरिजा प्रसाद सिंह, काली झा, मथुरा मिश्र, बाबूलाल चौधरी, जोगा मंडल, राजेंद्र प्रसाद सिंह, भुवनेश्वर प्रसाद सिंह, नरेंद्र सिंह सहित अन्य आजादी के दीवाने रणनीति बनाने खड़गपुर झील की पहाड़ियों पर जमा हुए थे।
पहाड़ और जंगलों का आजादी के दीवानों को मिलता था लाभ
वैसे तो आजादी के दीवाने की टोली का जमावड़ा प्रखंड के पंचबदन महादेव मंदिर, खंडबिहारी, राजकीय उच्च विद्यालय, घोषपुर सहित अन्य जगहों पर लगता था, लेकिन सबसे अधिक सुरक्षित जगह खड़गपुर झील को ही माना जाता था।
यहां एक बार नही बल्कि अनेकों बार बैठक कर अंग्रेजी सरकार के छक्के छुड़ाने की रणनीति तैयार की गई। इसकी भनक लगने पर जब अंग्रेज सिपाही इन्हें पकड़ने पहुंचते थे तो बैठक में शामिल लोग जंगल और पहाड़ का फायदा उठाकर चकमा देने में कामयाब हो जाते थे।
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