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    Dumka: यहां आज भी जमींदार दे परिवार के वंशज कराते हैं खानदानी पूजा...अनोखा है इनका इत‍िहास

    By Atul SinghEdited By:
    Updated: Tue, 12 Oct 2021 05:30 PM (IST)

    वंशज दुलाल चंद्र दे अपनी यादों पर जोर डालने के बाद भी सिर्फ इतना ही बता पाते हैं कि उनके वंशज काका-भतीजा के नाम से प्रसिद्ध थे। दुलाल कहते हैं संभवत ब्रिटिश काल से पूर्व मुगलों के शासन में ही उनके वंशज वर्दमान से आकर यहां बसे थे।

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    ब्रिटिश काल से पूर्व मुगलों के शासन में ही उनके वंशज वर्दमान से आकर यहां बसे थे। (जागरण)

    राजीव, दुमका: दुमका के रसिकपुर के पुराना दुर्गास्थान मंदिर में जमींदारी दुर्गा पूजन की परंपरा अब भी कायम है। इस परंपरा का निर्वहन जमींदार दे परिवार के वंशजों के द्वारा बखूबी किया जा रहा है। हालांकि जमींदार दे परिवार के वंशजों को ठीक से इसकी जानकारी नहीं है कि उनके किस पूर्वज ने रसिकपुर में जमींदारी या फिर खानदानी पूजा की शुरुआत की थी। वंशज दुलाल चंद्र दे अपनी यादों पर जोर डालने के बाद भी सिर्फ इतना ही बता पाते हैं कि उनके वंशज काका-भतीजा के नाम से प्रसिद्ध थे। दुलाल कहते हैं संभवत: ब्रिटिश काल से पूर्व मुगलों के शासन में ही उनके वंशज बर्द्धमान से आकर यहां बसे थे। कहते हैं कि बर्द्धमान में आज भी एक दे पोखर जिंदा है। दुलाल कहते हैं कि वर्तमान में चाचा-भतीजा के वंशज ही रसिकपुर में दुर्गा पूजा करते हैं। कहा कि कभी यहां घटवाल समुदाय ने घटवाली काली पूजा की शुरुआत की थी। उसके निशान वर्तमान मंदिर के पीछे अब भी यहां मौजूद हैं। मां काली की वेदी अब भी यहां है। दुर्गा पूजा की दसवीं के बाद एकादशी के दिन अब भी यहां घटवाल समुदाय के लोग पूजा करने पहुंचते हैं।

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    पांच वंशज साल दर साल कराते हैं पूजा

    रसिकपुर दुर्गा मंदिर में प्रत्येक वर्ष दे परिवार के पांच वंशज साल दर साल बारी आने पर दुर्गा पूजा पूरे उत्साह से मनाते हैं। इस वर्ष पारी के हिसाब से सुकांत दे, स्वरूप कुमार दे, सदानंद दे एवं डा.एसएन दे पूजा का आयोजन कर रहे हैं। जबकि दूसरे वंशज ई.सपन कुमार दे, सोमनाथ दे तीसरे अमित कुमार दे, देवशंकर दे, मनोज कुमार दे, चौथे वंशज दुलाल चंद्र दे, निमेंद्रनाथ दे, गोरानाथ दे और पांचवें वंशज आशीष कुमार दे एवं उज्जवल कुमार दे हैं। ई.सपन कुमार दे कहते हैं कि तकरीबन तीन सौ साल पूर्व से दे परिवार यहां दुर्गा पूजा करते आ रहे हैं। अब तो नई पीढ़ी जिम्मेवारी संभाल रही है। कहते हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में रहने के बाद भी दुर्गा पूजा में दे परिवार के सदस्य यह कोशिश जरूर करते हैं कि वह दुमका आकर पूजा में शामिल हों। इस बार पूजा कराने वाले डाॅ.एसएन दे के पुत्र सुमित दे कहते हैं कि दुर्गा पूजा उनलोगों के लिए खास है।

    प्रत्येक वर्ष दुर्गापूजा के दौरान परिवार के सदस्यों का आगमन दुमका में जरूर होता है। इसी बहाने परिवार के सदस्यों का मेल-मिलाप भी हो जाता है। कहा कि दुर्गा पूजा में परंपरा का निर्वहन कर नई पीढ़ी भी अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

    वर्जन

    पुराना दुर्गास्थान रसिकपुर में हमारे पूर्वजों ने तकरीबन 300 साल पूर्व दुर्गा पूजा की परंपरा शुरू कराई थी। समय के साथ बदलाव जरूर हुआ है लेकिन उनके वंशज आज भी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। प्रत्येक वर्ष बारी के अनुसार उनके यहां वंशजों द्वारा दुर्गोत्सव काफी उत्साह से किया जाता है।

    ई.सपन कुमार दे, दुमका