Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अलग झारखंड राज्य की मांग से लेकर झामुमो के गठन तक, शिबू सोरेन ने यह सब कैसे और किसके साथ मिलकर किया?

    By Jagran News Edited By: Rajesh Kumar
    Updated: Mon, 04 Aug 2025 02:52 PM (IST)

    बलवंत कुमार के अनुसार दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के साथ ही झारखंड आंदोलन के एक युग का अंत हो गया। बिनोद बिहारी महतो कामरेड एके राय और शिबू सोरेन की दोस्ती अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन झामुमो का गठन और झारखंड का निर्माण अब इतिहास हैं।

    Hero Image
    पूर्व सीएम शिबू सोरेन की पुरानी तस्वीर। जागरण

    बलवंत कुमार, धनबाद। दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद झारखंड आंदोलन की शुरुआत करने वाले का युग समाप्त हो गया है। इस आंदोलन के इतिहास का आखिरी पन्ना सोमवार को अपनी कहानियां समाप्त कर गया।

    जो रह गईं, वे उस आंदोलन से जुड़ी यादें। जिसमें बिनोद बिहारी महतो, कामरेड एके राय और शिबू सोरेन की दोस्ती, अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन, धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन, झारखंड का निर्माण और फिर राज्य में झामुमो के सत्ता में आने की कहानियां अब इतिहास बन चुकी हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बिनोद बिहारी महतो, कामरेड एके राय और शिबू सोरेन तीनों ने धनबाद की काली धरती से ही अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। यहीं पर उनकी जोड़ी बनी और तीनों इसी झारखंड की मिट्टी में समा गए। बिनोद बिहारी महतो एक वकील और राजनेता थे।

    वर्ष 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना के बाद वे अलग झारखंड राज्य आंदोलन के अगुआ बने। वे 1980, 1985 और 1990 में बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए और 1991 में भारतीय संसद में गिरिडीह लोकसभा का प्रतिनिधित्व भी किया। लोग उन्हें प्यार से बिनोद बाबू कहते थे।

    केमिकल इंजीनियर से राजनीति के संत तक एके राय

    1960 के दशक में एके राय ने धनबाद के सिंदरी में नव स्थापित प्रोजेक्ट्स एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड में रिसर्च इंजीनियर के रूप में योगदान दिया। उन्होंने 1966 में एक मजदूर आंदोलन में भाग लिया और फिर उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ।

    तीन बार सांसद और तीन बार विधायक रहे राय को झारखंड मुक्ति मोर्चा के सह-संस्थापक के रूप में भी जाना जाता है। राजनीति में रहने के बावजूद, उन्हें जीवन भर कभी किसी आरोप का सामना नहीं करना पड़ा। उन्होंने पेंशन भी नहीं ली और वे राजनीति के संत बन गए।

    जंगल के राजा दिशोम गुरु

    महाजनी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने वाले और आदिवासियों के कल्याण के लिए लड़ने वाले युवा शिबू सोरेन को यहां के लोगों ने दिशोम गुरु की उपाधि दी थी इस उपाधि के साथ राज्य के लोगों के सम्मान और विकास की एक ऐसी कहानी जुड़ी थी जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता।

    धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के पीछे प्रमुख लोगों में शामिल शिबू सोरेन का जीवन संघर्षों से भरा रहा। राज्य मिलने और मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वे आदिवासी समाज से हड़िया त्यागने और शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात करते रहे।