Bokaro News: अकेलेपन के गम में गंगा का निकला दम, नेहरू जैविक उद्यान में 15 साल में 9 बाघों की मौत
स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संरक्षण संस्थान बाघिन की मृत्यु से न सिर्फ दुखी है बल्कि चिड़ियाघर में व्याप्त घोर कुव्यवस्था से चिंतित भी है। यह कहना है संस्थान के महासचिव शशिभूषण ओझा मुकुल का। कहा कि पिछले कई वर्षों से यह बाघिन अकेले ही अपने बाड़े में रहती थी।

जागरण संवाददाता, बोकारो। जवाहर लाल नेहरू जैविक उद्यान बोकारो में रह रही इकलौती बाघिन गंगा की शुक्रवार को मौत हो गई। वह लंबे समय से बीमार चल रही थी। बोकारो जैविक उद्यान में जान डालने वाली इस बाघिन का जन्म आठ अगस्त 2006 को छत्तीसगढ़ के भिलाई में हुआ था। वहां कुछ दिन रहने के बाद इसे बोकारो लाया गया था। इधर, बीमारी के बाद शुक्रवार की सुबह उसने अंतिम सांस ली।
गंगा की मौत के बाद अब इस चिड़ियाघर में न तो बाघ बचे हैं और न ही शेर। मौत के बाद इसकी सूचना स्थानीय प्रशासन को दे दी गई है। गंगा के शव का पोस्टमार्टम के बाद वन प्राणी संरक्षण अधिनियम के प्रविधान के तहत निस्तारण किया गया। बताया जा रहा है कि बीते चार वर्ष में यहां कई जानवरों की मौत हुई है। फिलहाल इस जैविक उद्यान की देखरेख पर्यावरण विभाग के अधिकारी कर रहे हैं, पर यहां पशु चिकित्सक के नहीं होने की वजह से लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। शुक्रवार को गंगा को देखने के लिए जैविक उद्यान पहुंचे लोगों में मायूसी दिखी। उनका कहना था कि जैविक उद्यान आते ही इस वजह से थे कि यहां बाघिन को देखा जा सके, लेकिन गंगा की मौत के बाद अब इस जैविक उद्यान का आकर्षण कम हो गया।
प्रबंधन ने हृदयाघात को बताया मौत की वजह: बताया जाता है कि गंगा की उम्र साढ़े 15 वर्ष से अधिक हो गई थी। आमतौर पर माना जाता है कि सफेद बाघों की औसत आयु 12 वर्ष होती है। प्रबंधन का कहना है कि बढ़ी उम्र की वजह से हृदयाघात से संभवत: गंगा की मौत हुई है।
15 वर्षों में नौ बाघों की हो चुकी है मौत: बोकारो के जैविक उद्यान में 15 वर्षों में आठ बाघों की मौत हो चुकी है। इनमें दो बाघिन, पांच नर बाघ और तीन शावक थे। 2012 और 2013 में पांच बाघ और शावकों की मौत हो गई थी। अधिकतर बाघों की मौत बीमारी से हुई थी। इसके बाद चिड़ियाघर के बाघों के रखरखाव पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा था। 25 अगस्त 2012 को अपने पुरुष साथी सतपुड़ा की मृत्यु के बाद बाघ परिवार में सिर्फ एक गंगा ही जीवित थी।
प्रबंधन की लापरवाही से बाघिन की मौत का आरोप
बीएसएल द्वारा संचालित जवाहर लाल नेहरू जैविक उद्यान पूरी तरह कुव्यवस्था का शिकार है। आज यही कारण है कि यहां की एकमात्र सफेद बाघिन उचित चिकित्सा के अभाव और प्रबंधकीय लापरवाही की शिकार होकर मर गई। स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संरक्षण संस्थान बाघिन की मृत्यु से न सिर्फ दुखी है, बल्कि चिड़ियाघर में व्याप्त घोर कुव्यवस्था से चिंतित भी है। यह कहना है संस्थान के महासचिव शशिभूषण ओझा मुकुल का। कहा कि पिछले कई वर्षों से यह बाघिन अकेले ही अपने बाड़े में रहती थी। बाघिन कुछ दिनों से बीमार थी, परंतु चिड़ियाघर में अभी पिछले कई महीनों से कोई पशु चिकित्सक नहीं रहने के कारण सही इलाज नहीं हो पाया। यही नहीं पशुओं की चिकित्सा के लिए बना अस्पताल भी वर्षों से खंडहर बन गया है। चिड़ियाघर में घूमने आनेवाले दर्शकों के लिए भी अब सारी सुविधाएं ध्वस्त हो गई हैं। उन्होंने बाघिन की मृत्यु की जांच कराने की मांग उपायुक्त से की।
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