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    झारखंड में 100 गुस्‍सैल हाथियों का तांडव, छीन रहे रहे हैं मासूम लोगों की जिंदगी; बाकी के 600 जंगल से नहीं निकलते बाहर

    By Jagran NewsEdited By: Arijita Sen
    Updated: Tue, 21 Nov 2023 01:22 PM (IST)

    झारखंड में इंसान और हाथियों के बीच संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। बेवजह लोग हाथी के गुस्‍से का शिकार हो रहे हैं और अपनी जान गंवा रहे हैं। इसे रोकने के लिए न प्रशासन और न ही वन विभाग कुछ कर पा रहा है। यहां के जंगलों में 700 के करीब हाथी हैं जिनमें से केवल 100 हाथी ही घुमंतूू हैं।

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    झारखंड में इंसान और हाथियों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है।

    दिलीप सिन्हा, धनबाद। झारखंड में इंसान और हाथियों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। सोमवार को गिरिडीह में रहने वाले दादा व उसकी पोती को हाथियों ने कुचकर मार डाला। हाल के एक सप्ताह में धनबाद और गिरिडीह के चार लोगों की जान हाथियों ने ले ली। न प्रशासन और न ही वन विभाग कुछ कर पा रहा है, लोग बदस्तूर मर रहे।

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    700 में से केवल 100 हाथी ही घुमंंतू

    हैरतंगेज स्थिति तब है जब झारखंड में जंगलों से करीब 100 हाथी निकलकर ही इंसान की जिंदगी छीनते हैं, लगभग 600 हाथी आज भी जंगल से बाहर नहीं निकलते क्योंकि जंगल घना होने से उनको वहीं भोजन व पानी मिल जाता है।

    सोच लीजिए कि यदि शत-प्रतिशत हाथी जंगलों से बाहर निकलने लगे तो स्थिति कितनी भयावह होगी। वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि 700 में से केवल 100 हाथी ही घुमंतू हैं, जो भोजन पानी की तलाश में बाहर निकलते हैं। इंसानी बस्तियों में जब किसी कारण गुस्सा होते हैं, तो आक्रामक हो जाते हैं।

    दलमा और बेतला जंगल से बाहर नहीं निकलते हाथी

    दलमा और बेतला जंगल बेहद घना है। यहां प्रचुर मात्रा में हरियाली व पानी है। हाथी यहां से इसीलिए बाहर नहीं निकलते कि सबकुछ उनको यहां आराम से मिलता है। उनको किसी काॅरिडोर की जरूरत नहीं पड़ती।

    समस्या सिर्फ 100 हाथियों की है। हाथी काॅरिडोर जब बनेगा तब बनेगा, फिलहाल बेतला और दलमा की तरह पारसनाथ, मसलिया और सारंडा के जंगलों में भी हाथियों को रोकने के लिए प्रबंध हो जाएं, तो हाथी और इंसान का संघर्ष बंद हो जाएगा।

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    जंगल का विस्तार जरूरी, ताकि हाथियों को मिले भोजन-पानी

    गिरिडीह के सहायक वन संरक्षक राजीव कुमार कहते हैं कि दलमा और बेतला की तरह अन्य जंगलों को घना और विस्तृत करना होगा। उनके लिए भोजन और पानी का प्रबंध जंगल में ही करना होगा। बेरिकेडिंग भी करनी होगी। तब हाथी जंगल से बाहर नहीं आएंगे, इससे संघर्ष रोका जा सकता है।

    एक बात और कि दलमा और बेतला में जंगल इंसानों की आबादी भी काफी दूर है। पारसनाथ से संथाल परगना तक के इलाके में जंगल सिकुड़ गए हैं। जंगल से सटी कई बस्तियां बस गईं हैं।

    उत्पात मचाने वाले 100 हाथियों में से कई के आने-जाने का रास्ता दुमका के मसलिया से जामताड़ा, धनबाद, गिरिडीह होते हुए हजारीबाग है। इसी रास्ते से वे लौटते भी हैं। सैकड़ों साल से वे इसी रास्ते से आते-जाते हैं। इनका संघर्ष इसी इलाके में अधिक होता है।

    मुख्यमंत्री ने लिया संज्ञान तो जागे डीएफओ

    वन विभाग मुख्यालय ने सभी संबंधित डीएफओ को हाथियों के आने-जाने का जो रूट है, उसका मैप मांगा था। राज्य के कई डीएफओ ने इसे नहीं दिया।

    हाथियों के हमले में लगातार इंसानों की हो रही मौत को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संज्ञान में लिया। इसके बाद सभी डीएफओ जागे और मैप बनाकर भेजा है।

    सभी डीएफओ की रिपोर्ट को कंपाइल कर राज्य केंद्र को भेजेगा। इसके बाद कारिडोर की बात आगे बढ़ेगी। कुल मिलाकर अभी कारिडोर बहुत दूर की कौड़ी है।

    हाथियों की गणना 2017 में अंतिम बार हुई थी। तब 555 हाथी थे। यह संख्या अब बढ़कर करीब 700 हो चुकी है। कारिडोर के लिए रिपोर्ट राज्य मुख्यालय को भेज दी गई है। जंगल में हाथी के लिए भोजन और पानी का प्रबंध किया गया है। लगातर हाथियों की मानिटरिंग कर रहे हैं। इंसान और हाथी को नुकसान न पहुंचे, इसके लिए निरंतर काम हो रहा है- संजीव पालीवाल, डीएफओ, धनबाद

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