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    इक्कट्ठा इबादत से इंसानियत की हिफाजत का आगाज

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 29 Apr 2021 07:18 PM (IST)

    जुलकर नैन चतरा कुदरत के कहर से दम तोड़ती इंसानियत की हिफाजत के लिए इबादत ही इकलौता

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    इक्कट्ठा इबादत से इंसानियत की हिफाजत का आगाज

    जुलकर नैन, चतरा: कुदरत के कहर से दम तोड़ती इंसानियत की हिफाजत के लिए इबादत ही इकलौता रास्ता बचता है। वैश्विक महामारी कोरोना से जंग में इस आध्यात्मिक सिद्धांत पर अमल का फैसला किया गया है। उसी के तहत जुमे-ए-रात से इक्कट्ठा इबादत का आगाज किया गया है। शहर की खानकाह मस्जिद में शारीरिक दूरी और मास्क जरूरी मंत्र पर अमल करते हुए सवा लाख दुआ-ए-यूनुस पढ़ी गई। यह सिलसिला जुमा को छोड़कर हर दिन बारी-बारी से शहर की सभी 25 मस्जिदों में चलेगा। सवा लाख दुआओं की गिनती चने के दानों से की जा रही है। इसके लिए 22.500 किलोग्राम चना खरीदा गया है। एक सौ ग्राम चना में कुल 560 दानों की गिनती हुई है। उसी को ध्यान में रखकर 22.500 किलो चना के दानों पर दुआ-ए-यूनुस की गिनती की जा रही है। दुआ का यह अमल एक से डेढ़ घंटा में पूरा हुआ। उसके बाद इकट्ठा दुआ किया गया। शहर-ए-काजी हजरत मौलाना मुफ्ती नजर-ए-तौहीद ने दुआ कराई। दुआ से पहले उन्होंने अपने खिताब में कहा कि कोरोना वैश्विक महामारी है। पूरा विश्व इसकी चपेट में है। अपना वतन हिन्दुस्तान में इसका असर ज्यादा है। यह महामारी हमारे गुनाहों का नतीजा है। हमें अपने गुनाहों से माफी मांगी चाहिए। उन्होंने कोरोना से निजात के लिए कसरत के साथ दुआ कराई। आयोजक हाजी मौलाना नसीमुद्दीन कासमी ने बताया कि जुमा को छोड़कर यह अमल शहर के सभी मस्जिदों में बारी-बारी से किया जाएगा। :::::::::::::::::::::::::::

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    क्या है दुआ और उसके मायने

    ला इलाहा इल्ला अंता सुभाना का इन्नी कुन्तू मिनंज्जालीमीन। अर्थ नहीं है कोई माअबुद सिवा अल्लाह के, बेशक मैं जुल्म करने वालों में हूं।

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    कैसे होती है दुआ की गणना मस्जिद में 40 से 50 लोग शारीरिक दूरी का पालन कर दुआ पढ़ते हैं। हर बार दुआ की गणना चने के दाने से की जाती है। मान लें अगर 50 लोग दुआ कर रहे हैं तो एक बार दुआ के बाद 50 चने के दाने अलग कर दिए जाते हैं। इस प्रकार सवा लाख बार दुआ कर चने के दाने के आधार पर उसकी गणना की जाती है। क्या है दुआ-ए-यूनुस

    हजरत यूनुस अलै. एक पैगंबर थे। एक दिन उन्होंने अपने गांव से बगैर किसी को जानकारी दिए हुए सफर पर निकल पड़े। कश्ती से सफर कर रहे थे। कश्ती बीच समुंदर में डूबने लगी। हजरत यूनुस अलै. को लोगों ने समुद्र में डाल दिया गया। अल्लाह ने मछली को हुकुम दिया कि यूनुस को निगल जाओ। एक मछली उन्हें निगल गया। दूसरी बड़ी मछली ने उस मछली को निगल गई। इस प्रकार वो चालीस दिनों तक मछली के पेट में रहे और ला इलाहा इल्ला अंता सुभाना का इन्नी कुन्तू मिनंज्जालीमीन आयत पढ़ते रहे। अल्लाह ने इस आयत की बरकत से उन्हें मछली के पेट से बाहर निकाल दिया। इसीलिए ऐसी मान्यता है कि मुसीबत के वक्त में इस दुआ को पढ़ी जाए।