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आदिवासी लड़ाके करेंगे लाल आतंक का अंत

नौ माह के प्रशिक्षण में वर्दी के अनुशासन से लेकर आधुनिक हथियारों को चलाने तक का गुर सिखाया जाएगा।

By Babita KashyapEdited By: Published: Fri, 12 May 2017 10:05 AM (IST)Updated: Fri, 12 May 2017 10:05 AM (IST)
आदिवासी लड़ाके करेंगे लाल आतंक का अंत
आदिवासी लड़ाके करेंगे लाल आतंक का अंत

 बोकारो, अरविंद। प्रदेश की जनजातियों के युवक-युवतियों को भर्ती कर बनाई गई स्पेशल इंडियन रिजर्व बटालियन (एसआइआरबी) के 466 रंगरूट नौ माह के कठिन प्रशिक्षण के बाद वर्दी पहनकर लाल आतंक के खात्मे और  अपराधियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अलग-अलग जगहों पर तैनात होंगे। खूंटी स्थित बटालियन मुख्यालय से बोकारो जैप चार के मुख्यालय में प्रशिक्षण के लिए 466 रंगरूटों को भेजा गया है। उनमें 128 लड़कियों और 338 लड़के हैं। 

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आधुनिक हथियार चलाने की ट्रेनिंग

उन्हें नौ माह के प्रशिक्षण में वर्दी के अनुशासन से लेकर आधुनिक हथियारों को चलाने तक का गुर सिखाया जाएगा। नक्सलियों-अपराधियों से लोहा लेने की चुनौतियों से भी रूबरू कराया जाएगा। प्रशिक्षण के लिए युवक-युवतियों में से कई पहले दिहाड़ी मजदूरी करते थे। कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जो पति की मामूली आय से बच्चे के भविष्य को लेकर ङ्क्षचतित रहती थीं। इस नौकरी ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने का मौका दिया। उन्होंने सरकार के इस कदम को सराहा। कहा कि नक्सलियों का खात्मा होना चाहिए। इसके लिए वे लोग अपनी पूरी ताकत लगा देंगे। राज्य का विकास इन्हीं वजहों से रूका हुआ है। 

पूरे दिन दिहाड़ी मजदूरी करने पर मिलती थी डेढ़ सौ की हाजिरी

आठवीं पास दुमका के नीरज कुजहर के घर की माली हालात काफी खराब थी। वह दिहाड़ी मजदूरी कर प्रतिदिन डेढ़ सौ रुपये कमाता था। माता-पिता ने बुरे दिनों में कुछ कर्ज लिया था। पेट भरने लायक आमदनी ही हो पाती थी। कर्ज उतारने के लिए रुपये नहीं बचते थे। कहीं नौकरी खोजने जाते थे तो कम पढ़े-लिखे होने से नौकरी नहीं मिलती थी। अचानक एक दिन किसी ने कहा कि सरकार आदिम जनजाति के लिए स्पेशल बटालियन बनाने जा रही है। उसने और उनके छोटे भाई संजय ने एक साथ कोशिश की और नौकरी मिल गई। कुछ माह के वेतन के एवज में एक साथ पहली बार 40 हजार रुपये मिले। सबसे पहले माता-पिता को कर्ज उतारने को कहा। भाई ने भी रुपये भेजे। अब सब कुछ ठीक चल रहा है। राज्य और देश की सेवा का मौका बड़े भाग्य से मिलता है। नक्सलियों और अपराधियों का खात्मा होना चाहिए। 

शादी के बर्तन की मांग पूरी नहीं हुई तो पति ने छोड़ा 

गढ़वा की रेजिना समद बताती हैं कि गरीब मां-पिता ने किसी तरह से शादी की। शादी के बाद बच्चे हुए। इसके बाद भी ससुराल में बर्तन की मांग पूरी नहीं होने पर पति ने छोड़ दिया तो वह मायके में ही रहने लगी। बच्चे के साथ अपने भविष्य की ङ्क्षचता भी लगातार सताते रहती थी। एक दिन छोटे भाई लुकस ने आकर बताया कि नौकरी के लिए फॉर्म भरना है। भाई के साथ कोशिश की तो दोनों को कामयाबी मिल गई। अब बच्चे के साथ अपने भविष्य की ङ्क्षचता समाप्त हो गई। जहां भी ड्यूटी में उसे लगाया जाएगा, वहां वह बेहतर प्रदर्शन करेगी। 

पति-पत्नी चाहते थे सरकारी नौकरी 

गुमला की सुनीता कुमारी का कहना है कि उसकेपिता रांची समाहरणालय में चतुर्थवर्गीय कर्मी हैं। वह छह भाई-बहनों में वह सातवीं तक ही पढ़ाई कर सकी। शादी हुई और एक बच्चा हुआ। किसी तरह जीविका चलती थी। बटालियन बनने की सूचना पर उसने अपने पति के साथ फॉर्म भरा और दोनों का चयन कर लिया गया। 

पति अपहरण केस में फंसे तो पड़ गए खाने के लाले 

पाकुड़ की सोनामुनी कुमारी ने बताया कि उसने देवघर से दसवीं पास की। वर्ष 2008 में उसकी शादी हुई और तीन बच्चे हुए। किसी तरह मेहनत-मजदूरी कर परिवार चल रहा था। इसी बीच पति अपहरण के एक मामले में फंस गए। उन्हें जेल जाना पड़ा। पति के जेल जाने से घर में खाने तक के लाले पड़ गए। तीन बच्चों को पालना काफी मुश्किल को रहा था। यह नौकरी जीवन में बहुत बड़ी राहत लेकर आई। 

जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए 

गुमला की बसंती बृजिया कहती हैं कि उसकी शादी हुई और चार बच्चे हुए। पति मजदूरी कर घर का खर्च चलाते थे। बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का सपना साकार नहीं हो पा रहा था। किसी ने कहा जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए। सरकारी नौकरी की जानकारी मिलते ही कोशिश की और सफलता हाथ लग गई। अब बच्चों को पढ़ाने का सपना साकार हो जाएगा।

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