क्रिसमस पर मतांतरण के खिलाफ सरना समाज का सांस्कृतिक संदेश, जाहेर गढ़ में जुटे श्रद्धालु
Sarna Society Protests Conversions: झारखंड में मतांतरण को लेकर सरना आदिवासी समाज और ईसाई समुदाय के बीच तनाव बढ़ रहा है। सरना समाज ने छल-प्रपंच से मतां ...और पढ़ें

बोकारो में जाहेर गढ़ में पूजा करते सरना आदिवासी।
जागरण संवाददाता, बोकारो। झारखंड में मतांतरण को लेकर सरना आदिवासी समाज और ईसाई समुदाय के बीच तनातनी लगातार बढ़ती जा रही है। सरना समाज का आरोप है कि छल-प्रपंच और प्रलोभन के जरिए आदिवासियों व दलितों का मतांतरण कराया जा रहा है। इससे एक ओर सरना आदिवासियों की संख्या घट रही है, वहीं दूसरी ओर अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सरकारी नौकरियों में निर्धारित आरक्षण अधिकारों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
इन्हीं आशंकाओं के बीच मतांतरण और आरक्षण अधिकारों को प्रभावित करने की कथित साजिश के विरोध में सरना आदिवासी समाज संगठित होकर अपनी सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के लिए आगे आया है। क्रिसमस के अवसर पर बोकारो सरना विकास समिति की ओर से सरना समाज के लोगों से चर्च न जाने की अपील की गई थी। इसका असर बुधवार, 25 दिसंबर को स्पष्ट रूप से देखने को मिला।
बोकारो सरना विकास समिति के आह्वान पर गुरुवार को बड़ी संख्या में सरना आदिवासी परिवार चर्च जाने के बजाय अपने-अपने सरना स्थलों और जाहेर गढ़ पहुंचे। यहां उन्होंने पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा-अर्चना की और सामूहिक प्रार्थना के माध्यम से अपनी आस्था प्रकट की। सेक्टर-12 स्थित सरना स्थल में भी सुबह से ही श्रद्धालुओं का जुटान रहा।
समिति के अध्यक्ष महेश सिंह मुंडा ने इससे पहले 25 दिसंबर को सरना समाज से चर्च न जाने, बच्चों को वहां न भेजने तथा किसी भी बाहरी धार्मिक आयोजन से जुड़े भोजन या प्रसाद को ग्रहण न करने की अपील की थी। उन्होंने कहा कि सरना समाज अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक पहचान की रक्षा के लिए पूरी तरह सजग है।
पूजा के दौरान लोग पूरे परिवार के साथ पहुंचे। पारंपरिक पूजा-पाठ, धूप-दीप और सामूहिक प्रार्थना के माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि सरना समाज अपनी जड़ों से जुड़ा रहकर ही आगे बढ़ेगा। महेश मुंडा ने स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार के दबाव या प्रलोभन के जरिए आदिवासी समाज को विभाजित करने की कोशिश स्वीकार नहीं की जाएगी।
उन्होंने यह भी कहा कि इस पहल का उद्देश्य किसी समुदाय के प्रति द्वेष फैलाना नहीं है, बल्कि सरना आदिवासी समाज को अपनी परंपराओं और पारंपरिक विश्वासों के प्रति जागरूक करना है। समाज के लोगों ने एकजुटता के साथ अपनी सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करने का संकल्प दोहराया।

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