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    Jammu Kashmir News: 18 साल पहले दिखी थी आतंकियों की क्रूरता, तीन साल की बच्ची समेत 22 लोगों का किया था नरसंहार

    Updated: Sun, 14 Apr 2024 02:09 PM (IST)

    उधमपुर-डोडा सीट पर 19 अप्रैल को पहले फेज में मतदान होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि आज से 18 साल पहले 30 अप्रैल 2006 को डोडा के कुल्हांड गांव में आतंकियों ने क्रूरता का नंगा नाच खेला। जहां पर उन्होंने एक तीन वर्षीय बच्ची समेत 22 लोगों का नरसंहार किया। हिंदू बहुल इस इलाके में नरसंहार के बाद बहुत कुछ बदला है।

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    Doda News: कभी आतंकियों ने खून से लथपथ कर दिया था कुल्हांड। फाइल फोटो

    रोहित जंडियाल/ राहुल शर्मा, कुल्हांड (डोडा)। (22 people were massacred in Kulhand) आज से 18 वर्ष पूर्व 30 अप्रैल 2006 को इस गांव में आतंकियों ने क्रूरता का नंगा नाच खेल कर एक तीन वर्षीय बच्ची समेत 22 लोगों का नरसंहार कर पूरे कुल्हांड़ को खून से लथपथ कर दिया था। तब से अब तक चिनाब में बहुत पानी बह गया है लेकिन गांव में आतंकियों द्वारा दिए गए जख्म आज भी ताजा है।

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    केंद्र व राज्य सरकार ने लोगों के दिलों पर मल्हम लगाने के लिए बहुत आश्वासन दिए मगर कोई लाभ नहीं हुआ। लेकिन इस गांव के लोगों की बहादुरी और जिंदादिली अभी भी देखने वाली है। न तो किसी ने पलायन किया और न ही लोकतंत्र में अपनी आस्था कम होने दी। सरकारों की तमाम उपेक्षाओं के बावजूद ग्रामीण राष्ट्रहित में मतदान के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

    कुल्हांड डोडा से करीब तीस किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। कहीं कच्ची तो कहीं पक्की ऊबड़-खाबड़ सड़क पर सफर करने के बाद जब आठ किलोमीटर पहले ही डाली गांव में पहुंचते हैं तो कुल्हाड़ में हुए नरसंहार का दर्द देखने को मिल जाता है। इस पूरे क्षेत्र में ढाई हजार से अधिक मतदाता है और छह हजार से अधिक जनसंख्या। हिंदू बहुल इस क्षेत्र में नरसंहार के बाद बहुत कुछ बदला है।

    जिस घर में लोगों को इकट्ठा कर उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया था। अब वहां पर छोटा सा पार्क है और साथ ही एक प्राथमिक चिकित्सा केंद्र जो कि इस समय दिए गए जख्मों का गवाह भी है। उस समय डाली तक ही सड़क थी और लोगों को वहां से पैदल चलकर कुल्हांड तक जाना पड़ता था।

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    लेकिन अब गांव के अंतिम छोर तक सड़क है। बहुत से ग्रामीणों को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत घर भी मिल चुके हैं। लेकिन गांव में स्कूल अभी भी लोअर हाई स्कूल तक ही है जिस कारण बहुत कम बच्चे ही आगे पढ़ पाते हैं। दसवीं पास करने के बाद ही बच्चे रोजगार की तलाश में लद्दाख में चले जाते हैं।

    गांव में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र है लेकिन डाक्टरों की कमी है। विशेषतौर पर अगर प्रसव करवाना हो तो गर्भवती महिला को डोडा मेडिकल कालेज में ही ले जाना पड़ता है। स्कूल की हालत भी ऐसी ही है। स्टाफ की कमी बनी हुई है। गांव में नल से जल तो आता है लेकिन स्वच्छ पानी की समस्या का समाधान नहीं हुआ है। अलवत्ता पूरी कुल्हांड पंचायत में बिजली की समस्या अधिक नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि कटौती होती है लेकिन अधिक समस्या नहीं है।

    न पक्ष और न ही विपक्ष

    गांव में नरसंहार के बाद कभी देश के रक्षामंत्री रहे प्रणव मुखर्जी और तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद भी हेलीकाप्टर से गांव में पहुंचे थे। पीड़ितों से मिलकर उनका हौंसला भी बढ़ाया और उन्हें बहुत कुछ देने का वादा किया। गांव के रहने वाले 75 वर्षीय शादी लाल का कहना है कि ग्रामीण सुरक्षा समितियों का गठन कर हर महीने इसके सदस्यों को 500 रुपये राज्य सरकार और 500 रुपये केंद्र सरकार से देने का वादा किया था।

    लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। अभी भी 104 राइफ्ले ग्रामीणों के पास हैं जो कि आत्मरक्षा के लिए ही हैं। ग्रामीणों की शिकायत है कि कोई जीते या हारे लेकिन उनका दर्द सुनने कोई नहीं आता। वर्तमान सांसद भी दस वर्ष में गांव में कभी नहीं आए। विपक्ष के नेताओं का भी यही हाल है। लेकिन राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को वे समझते हैं। कोई प्रचार करे या न करे। पूरी पंचायत के लोग पूरे उत्साह के साथ लोकतंत्र के इस यज्ञ में आहुति डालने के लिए आते हैं।

    वर्ष 2014 के बाद हुआ विकास-ग्रामीण

    ग्रामीणों का कहना है कि वर्ष 2014 के बाद यहां पर आया तो कोई नहीं लेकिन जो सड़क पहले सिर्फ डाली तक थी, अब वे कुल्हांड तक है।गांव के रहने वाले शीश राम का कहना है कि कुछ बदलाव तो आया लेकिन कुल्हांड तक पक्की सड़क होनी चाहिए।

    गांव में आजादी से पहले का एक प्राइमरी स्कूल था। आज भी हाई स्कूल से आगे नहीं बढ़ पाया है। सुविधाएं भी नहीं हैं। सरकार को कुछ कदम उठाने चाहिए। उनका कहना है कि चुनावों में यहां पर कोई उम्मीदवार वोट मांगने नहीं आता है। लेकिन चुनावों के प्रति उनका उत्साह कम नहीं होता।

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