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    कैंसर को मात देकर बनाया स्वयं सहायता समूह, गांव की महिलाओं को बना रही हैं आत्मनिर्भर; प्रेरणास्त्रोत है वाहिदा की कहानी

    कैंसर को मात देने वाली वाहिदा अख्तर की कहानी बेहद प्रेरणादायक है। स्तन कैंसर से जंग जीतने के बाद उन्होंने न सिर्फ खुद को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया बल्कि 15 स्वयं सहायता समूहों का नेतृत्व कर रही हैं। खुद के साथ गांव की महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रही हैं। जानिए कैसे उन्होंने हार नहीं मानी और दूसरों के लिए मिसाल बन गईं।

    By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Mon, 03 Feb 2025 06:55 PM (IST)
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    वाहिदा अख्तर की कहानी, कैसे नहीं मानी हार और दूसरों के लिए बनीं मिसाल। जागरण फोटो

    रोहित जंडियाल, जम्मू। कैंसर का नाम सुनते ही कई लोग जिंदगी से हार मान जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जो अपनी जिंदादिली और समय पर इलाज करवाकर न सिर्फ इसे मात देते हैं, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा बनकर उभरते हैं।

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    विश्व कैंसर जागरूकता दिवस के अवसर पर कश्मीर के बडगाम जिले के छतरगाम कुठीपोरा की रहने वाली 33 वर्षीय वाहिदा अख्तर की कहानी कैंसर के रोगियों को हार न मानने के लिए प्रेरित करेगी।

    स्तन कैंसर से पीड़ित होने के बाद वाहिदा ने एक साल तक कीमोथेरेपी और फिर सर्जरी करवा कर बीमारी को मात दी है, लेकिन कैंसर के इलाज के दौरान आर्थिक हालत बिगड़ गए तो स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर पूरे परिवार को संभाला और अब पंद्रह समूहों का नेतृत्व कर रही हैं।

    एक साल तक चला इलाज, पति ने काफी की मदद

    वाहिदा का निकाह बीस वर्ष की उम्र में छतरगाम कुठीपोरा के बिलाल अहमद डार से हुआ था। बारहवीं कक्षा तक पढ़ीं वाहिदा वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ीं और उसने एक स्वयं सहायता समूह बनाया, लेकिन उसी समय उन्हें स्तन कैंसर होने का पता चला।

    यह सुन कर ही एक पल के लिए उनके पैरों से जमीन खिसक गई, लेकिन अगले ही पल उन्होंने खुद को संभाला और कैंसर का इलाज शुरू कराया। उसकी कुल छह कीमोथेरपी हुई और फिर सर्जरी हुई।

    करीब एक वर्ष तक इलाज चला। इलाज के दौरान उसके पति को अपनी टिंबर की मशीन को भी बेचना पड़ा और वह भी बेरोजगार हो गया। कैंसर का इलाज करवाने में परिवार आर्थिक तंगी की चपेट में आ गया।

    गांव की महिलाओं भी हुईं आत्मनिर्भर

    स्तन कैंसर को मात देने के बाद वाहिदा ने घर की खराब स्थिति की ओर देखा तो उससे रहा नहीं गया। वह फिर से स्वयं सहायता समूह में सक्रिय हुईं। इस दौरान बैंक से दो लाख रुपये का लोन लेकर गांव में ही कपड़ों, आर्टिफिशयल ज्वैलरी की दुकान खोली और काम करने लगी।

    इससे उसे कुछ कमाई होने लगी और परिवार को चलाने में मदद मिलने लगी। बीमारी से लड़ने के बाद काम करते देख गांव व आसपास की महिलाओं में भी कुछ करने का जज्बा आया। उन्होंने वाहिदा से संपर्क किया इसके बाद इन्होंने मिल कर टिंबर मशीन लगाई।

    इससे खिड़की, दरवाजे बनाने का काम शुरू किया। इसके लिए बैंक से लोन भी लिया। इसके बाद समूह की कुछ महिलाओं ने एक सिलाई सेंटर खोले। इन सभी कामों के लिए बैंक से उन्होंने कई बार लोन लिया। अब समूह की महिलाएं मिल कर कई प्रकार के काम कर रही हैं।

    वह आर्थिक तौर पर स्वावलंबी बनी हैं। वाहिदा के साथ आसपास के क्षेत्र की महिलाओं के कुल 15 स्वयं सहायता समूह हैं, जिनमें डेढ़ सौ ग्रामीण महिलाएं जुड़ी हुई हैं।

    परिवार का मिला साथ, मुसीबतों को दी मात

    वाहिदा का कहना है कि अब उसने अपने पति को भी एक लोड कैरियर डाल कर दिया है। वाहिदा का कहना है कि उसके दो बच्चे हैं, जो कि स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। जब उसे कैंसर हुआ तो उसने जिंदगी की उम्मीद ही छोड़ दी थी।

    यह कभी नहीं सोचा था कि काम कर सकूंगी, लेकिन उसके पति और सास हाजरा बेगम ने पूरा सपोर्ट किया। जब ठीक हुई तो सास ने स्वयं सहायता समूह शुरू करने में भी पूरा साथ दिया। वाहिदा का कहना है कि कैंसर से ठीक होने के समय पर इलाज करवाना और सही जगह पर इलाज करवाना जरूरी है।

    मरीजों को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। मैं एक गांव की महिला हूं और अगर मैं हिम्मत रख सकती हूं तो सभी ऐसा कर सकते हैं। उसने जम्मू-कश्मीर ग्रामीण आजीविका मिशन की निदेशक और सरकार का भी आभार जताया जिनके सहयोग के बिना ऐसा संभव नहीं था।

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