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    हरियाणा का एक ऐसा गांव, जिसके हर घर में कारोबार; स्वावलंबन की खुशबू बिखेर रहे मंगाली के मनके, विदेशों में भी बढ़ी मांग

    हरियाणा के हिसार जिले का मंगाली गांव सामूहिकता और स्वावलंबन की अनूठी मिसाल है। यहां की पांच पंचायतों में बनने वाली मनके की माला देश-विदेश में अपनी खुशबू बिखेर रही है। चंदन और अन्य लकड़ियों से बनी इन मालाओं की मांग लगातार बढ़ रही है। मंगाली के हर घर में मनका है जो नर-नारी के जीवन को मंगलमय कर रहा है।

    By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Mon, 27 Jan 2025 05:51 PM (IST)
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    मंगाली मोहब्बत गांव की सुमित्रा देवी अलग-अलग जगह पर स्टॉल लगाकर मनके बेचती हैं।

    अमित धवन, हिसार। सामूहिकता और स्वावलंबन के जरिए हरियाणा के हिसार जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर स्थित गांव मंगाली रोजगार के मामले में आत्मनिर्भर बन कर पूरे हरियाणा के लिए एक मिसाल बन कर उभरा है। गांव की पांच पंचायतों मंगाली मोहब्बत, मंगाली आकलान, मंगाली झारा, मंगाली सुरतिया और मंगाली ढाणी जाटान में बनने वाली मनके की माला स्वावलंबन को चहुंमुखी खुशबू दे रही है।

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    चंदन व अन्य कई प्रकार की लकड़ियों की माला बनाकर 15 हजार आबादी इसकी खुशबू को देश-विदेश में फैला रही है। यहां बनने वाले मनके की माला की मांग लगातार बढ़ रही है। मंगाली के हर मन में मनका है जो नर-नारी के जीवन को मंगलमय कर रहा है।

    मंगाली मोहब्बत से मनकों का काम करने वाली सुमित्रा बताती हैं कि वह मनकों की माला व अन्य सामान बनाकर बेचती हैं। उनके स्वयं सहायता समूह 'गायत्री में काफी महिलाएं हैं। आज अधिकतर परिवार यही काम कर रहे हैं। कोई मनके काटता है तो उनसे मनके लेकर माला बनाकर बेचता हैं।

    घर-घर में लगी हैं मशीनें

    वर्ष 1980 में लकड़ी काटकर मनके बनाने का कारोबार यहां शुरू हुआ था। उस समय मंगाली में चार-पांच परिवार ही इस कारोबार में थे। वर्ष 1990 के बाद महिलाओं के जीविका समूह इस काम से जुड़े तो काम में तेजी आई। एक के बाद एक कई परिवार इस कुटीर उद्योग से जुड़ने लगे। घर-घर में मशीनें लगीं। देश के कोने-कोने से लकड़ी मंगवाई जाने लगी।

    आज इस उद्योग में पांच पंचायतों से बने मंगाली गांव के करीब 12 हजार से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। 2005 के आसपास चंदन की लकड़ी से बनने वाले मनकों ने मंगाली को अंतरराष्ट्रीय पटल पर पहचान दी। मनके की माला तैयार करने में गांव में बने महिलाओं के सहायता समूह की अहम भूमिका है। वह बड़ी संख्या में इस काम से जुड़ी हैं। गांव में कोई मनके काटता है तो उसकी माला बनता है।

    ये बनते हैं

    चंदन, शीशम, जांटी, बेरी, खैर, कैल आदि की लकड़ी से मनकों को बनाया जाता है। मनके बनाने के साथ रंगाई, पुताई, माला बनाना आदि काम होते हैं। इन लकड़ी के मनकों से माला के अलावा सीट कवर, झुमर, बेल्ट, टेबल पर बिछाने, कप रखने के लिए सामान बनाया जाता है।

    हर घर रोजगार, विदेश तक व्यापार

    पांचों मंगाली पंचायत में लगभग हर घर मनकों के उद्योग से जुड़ा हुआ है। हर पंचायत के 100 से ज्यादा घरों में मशीनें लगी हुई हैं। उस मशीन पर 12 से 15 लोग काम करते हैं। इसके अलावा मोती की माला बनाने के लिए दूसरे घर से महिलाएं व पुरुष उनसे सामान ले जाते हैं। इसके अलावा आस पास के गांव के लोग भी काम करने के लिए मंगाली से मनके ले जाते हैं।

    मंगाली गांव के साथ इसमें बड़े उद्यमी का व्यापार भी बेहतर चल रहा है। दिल्ली से उद्यमी गांवों में अपना ऑर्डर देते हैं और माल लेकर चले जाते हैं। मंगाली से दिल्ली, वृंदावन, मथुरा, हैदराबाद, जयपुर, पंजाब आदि कई जगह पर मनकों की सप्लाई होती है। दिल्ली से उद्यमियों के जरिए यह मनके अमेरिका भी जाते हैं। मनके की माला का ज्यादातर का गृह एवं कुटीर उद्योग की तर्ज पर ही चलता है जिसे अब ई कामर्स से भी जोड़ा गया है।

    मंगाली गांव में हर घर के हाथ में कारोबार है। स्वयं सहायता समूह से महिलाएं अपने उद्योग को आगे बढ़ा रही है। सरकार की तरफ से भी उनको पूरी सहायता दी जाती है। मंगाली के मनके भारत ही नहीं विश्व के देशों में भी जाते हैं। बीपीएम अनु मलिक और बाकी प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से जानकारी भी समय-समय पर दी जाती है। -संगीता पायल, ब्लॉक कल्स्टर कॉर्डिनेटर, हिसार

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