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प्रदेश में 131 साल बाद उर्दू का एकछत्र राज समाप्त

भौगोलिक व सामाजिक रूप से विविधताओं वाले प्रदेश में उर्दू अंग्रेजी हिदी कश्मीरी और डोगरी भाषा को अब अधिकारिक भाषा का दर्जा मिल गया है। डोगरा शासक महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में उर्दू को जम्मू कश्मीर में अधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था।

By JagranEdited By: Published: Thu, 03 Sep 2020 08:06 AM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2020 08:06 AM (IST)
प्रदेश में 131 साल बाद उर्दू का एकछत्र राज समाप्त
प्रदेश में 131 साल बाद उर्दू का एकछत्र राज समाप्त

नवीन नवाज, श्रीनगर : केंद्र सरकार द्वारा बुधवार को जम्मू कश्मीर में पांच भाषाओं को अधिकारिक भाषा का दर्जा देने का एलान करते ही प्रदेश में 131 वर्ष बाद उदर्ृ का एकछत्र राज समाप्त हो गया। भौगोलिक व सामाजिक रूप से विविधताओं वाले प्रदेश में उर्दू, अंग्रेजी, हिदी, कश्मीरी और डोगरी भाषा को अब अधिकारिक भाषा का दर्जा मिल गया है। डोगरा शासक महाराजा प्रताप सिंह के शासनकाल में उर्दू को जम्मू कश्मीर में अधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था।

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पांच अगस्त 2019 को जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को लागू करते हुए इसे जम्मू कश्मीर व लद्दाख में पुनर्गठित किया था, उसी दिन से स्थानीय हल्कों में यह बात जोर पकड़ गई थी कि अब बतौर अधिकारिक भाषा उर्दू का वर्चस्व भी समाप्त होने वाला है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेडकर ने दिल्ली में जम्मू कश्मीर में हिदी, अंग्रेजी, उर्दू, कश्मीरी और डोगरी को अधिकारिक भाषा बनाए जाने का एलान करते हुए कहा कि यह स्थानीय लोगों की मांग पर लिया गया एक बड़ा फैसला है।

पीएमओ में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने ट्वीट किया कि पांच भाषाओ को अधिकारिक भाषा का दर्जा देकर न सिर्फ लोगों की वर्षो पुरानी मांग को पूरा किया गया है, बल्कि यह पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर में शुरू हुए समानता और विकास के एक नए दौर की भावना के अनुरूप भी है। प्रदेश में दस मातृभाषाएं हैं

जम्मू कश्मीर में कश्मीरी, पहाड़ी, गोजरी, लद्दाखी, बौद्धी, बाल्ति, शीना, सिराजी, मीरपुरी, पंजाबी ही मुख्यतौर पर विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की मातृभाषा है। उर्दू और हिदी को प्रदेश में लोग आपस में एक संपर्क की भाषा के रूप में ही इस्तेमाल करते आए हैं। डोगरा शासक महाराजा प्रताप सिंह ने 1889 में उर्दू को अधिकारिक भाषा का दर्जा दते हुए इसे अदालती कामकाज के लिए अनिवार्य किया था। इससे पूर्व जम्मू कश्मीर में अदालती व राजस्व विभाग से जुड़ा कामकाज फारसी में होता था। महाराजा प्रताप सिंह ने ही फारसी की जगह उर्दू को प्रोत्साहित किया था। फैसले से उर्दू का विकास रुकेगा

उर्दू के अध्यापक नजीर अहमद ने कहा कि यह सरकार का फैसला है, लेकिन इससे जम्मू कश्मीर में उर्दू का विकास रुकेगा। उन्होंने कहा कि पहले ही उर्दू के विकास के लिए प्रदेश में कोई विशेष नीति नहीं थी, अब इस पर और ज्यादा असर होगा। उन्होंने कहा कि यहां पिछले एक साल से चर्चा चल रही थी कि अब उर्दू को समाप्त कर दिया जाएगा। उर्दू समाप्त नहीं होगी, लेकिन उर्दू पढ़ने वालों और सीखने वालों की संख्या लगातार घटेगी और फिर एक दिन यह जुबान खत्म होगी। उर्दू को यहां लोगों ने मजहब से जोड़ा है और इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। पांच राजभाषा वाला पहला प्रदेश बनेगा जम्मू-कश्मीर

जागरण संवाददाता, जम्मू : किसी भी प्रदेश के लिए उसकी मातृभाषा को राजभाषा का दर्जा मिलना गौरव की बात होती है। जम्मू-कश्मीर में डोगरी, हिदी, उर्दू, कश्मीरी और अंग्रेजी को राजभाषा बनाने का विधेयक लाने की बात हुई है। एक राज्य में पांच भाषाओं का राजभाषा का दर्जा मिलना किसी को अटपटा लग सकता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर अगर मिनी भारत जैसा है। ऐसे में यहां कई संस्कृतियों का जन्म हुआ। आज भी जम्मू-कश्मीर ऐसा क्षेत्र है, जहां हर 15 किलोमीटर पर भाषा, बोली बदलती है। यही कारण है कि यहां अनेक भाषाओं को फलने-फूलने का मौका मिला। ऐसे में किसी एक भाषा को ही राजभाषा का दर्जा देना, यहां की विशेष परिस्थितियों में संभव नहीं है। राजभाषा विधेयक में शामिल सभी भाषाएं जम्मू-कश्मीर में एक सी बोली जाती हैं। अभी गोजरी, पंजाबी भी अपने दावेदारी ठोक सकती है।

जम्मू-कश्मीर सदा ही विचारों और भावनाओं से आंदोलित होता रहा है। इन्हीं भावनाओं एवं विचारों के लिए हमें इतनी राजभाषाओं की जरूरत महसूस हुई। डोगरी अगर जम्मू संभाग की भाषा है तो कश्मीर के अधिकतर क्षेत्रों में कश्मीरी बोली, समझी जाती है। यही कारण है कि केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर के इस संबंध में एलान के बाद ही पूरे जम्मू-कश्मीर में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। कश्मीरी, डोगरी, हिदी, उर्दू, अंग्रेजी के संबंध में राजभाषा विधेयक लाने का फैसला हुआ है। यह समाचार सुनते ही साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संगठनों के सदस्यों का एक दूसरे को बधाई देने का सिलसिला शुरू हो गया। लंबे समय की मांग अब हुई पूरी

जागरण संवाददाता, जम्मू : केंद्र सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर के लिए राजभाषा विधेयक लाने का फैसला हुआ है, जिसमें हिदी, उर्दू, डोगरी, कश्मीरी, अंग्रेजी भाषा को शामिल किया गया है। डोगरी, हिदी को राजभाषा बनाने की मांग लंबे समय से थी। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनते ही यह मांग जोर पकड़ने लगी थी। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर के अनुसार मंत्रिमंडल ने जम्मू-कश्मीर में आधिकारिक भाषा विधेयक को मंजूरी दी है। इसके तहत उर्दू, कश्मीरी, डोगरी, हिदी और अंग्रेजी आधिकारिक भाषा होंगी। इस फैसले का क्षेत्रीय संगठनों ने स्वागत किया है।

डोगरी संस्था के अध्यक्ष प्रो. ललित मगोत्रा ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस बात को स्पष्ट किया जाना जरूरी है कि जिन भाषाओं को राजाभाषा विधेयक में लाने का फैसला किया गया है, उससे इन भाषाओं को क्या लाभ होगा। जम्मू-कश्मीर संविधान की छठी अनुसूची में डोगरी पहले से शामिल है। उसमें और इस विधेयक में किस तरह का अंतर होगा। क्या अधिकारिक भाषा होने के नाते यह जम्मू-कश्मीर में शिक्षा प्रणाली का हिस्सा हो जाएगी। क्या सरकारी पत्राचार तथा कोर्ट आदि में डोगरी का प्रयोग हो सकेगा।

टीम जम्मू के अध्यक्ष जोरावर सिंह ने कहा कि इस फैसले का जम्मू के लोगों को लंबे समय से इंतजार था। इस विधेयक के बाद डोगरी को मजबूती मिलेगी। अब अगला कदम यह होना चाहिए कि जिन क्षेत्रों में लोग डोगरी पढ़ना चाहते हैं या कश्मीरी पढ़ना चाहते हैं तो उन्हें प्राइमरी से ही यह भाषाएं पढ़ाई जानी चाहिए।

डुग्गर मंच के प्रधान मोहन सिंह ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में पांच अधिकारिक भाषाओं का होना असमंजस की स्थिति पैदा करता है, लेकिन क्योंकि डोगरी, हिदी को इसमें शामिल किया गया है तो इसका स्वागत है। डोगरी को जिस पहचान का इंतजार था, वह मिल जाएगी। सरकारी भाषा होने के बाद कोर्ट और दूसरे कार्यालयों में भी डोगरी का प्रयोग संभव होगा। यह डोगरों के लिए गर्व की बात है।

जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय भाषा प्रचार समिति के मंत्री प्रो. भारत भूषण शर्मा ने भी केंद्र सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इससे प्रदेश में हिदी के संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। सामान्य जनता भी सरकारी आदेशों को हिंदी में पढ़ सकेगी। अपने आवेदन पत्र भी हिदी में दे सकेगी। सरकारी भाषा उर्दू होने के कारण पहले अधिकतर कार्य उर्दू और अंग्रेजी में ही होते थे। इससे जम्मू-कश्मीर के लोग भी हिंदी भाषा के माध्यम से भारत सरकार के सीधे संपर्क में आ सकेंगे।

वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि यह हर्ष का विषय है कि जम्मू-कश्मीर में हिदी को भी अधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता मिली है। इससे हिन्दी के प्रचार प्रसार में सहायता मिलेगी। यहां के बच्चों के लिए भाषा के आधार पर एक बड़ा हिदी क्षेत्र होगा। यहां पर वे अपनी रोजी रोटी तलाश सकेंगे।

नमीं डोगरी संस्था के अध्यक्ष हरीश कैला ने कहा कि डोगरी को राजभाषा बनाने की मांग नमीं डोगरी संस्था लंबे समय से करती आ रही है। सरकार ने विधेयक लाने का जो फैसला किया है। इससे डोगरी की संभावनाएं और बढ़ेगी। डोगरी पढे़ लिखे युवाओं को रोजगार भी संभव है। साहित्यिक क्षेत्र में भी डोगरी को और अधिक लाभ मिल सकेंगे।


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