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    आतंकियों के मुंह पर नए कश्मीर का 'तमाचा', त्राल में रचा गया इतिहास; 35 साल में पहली बार फहराया गया तिरंगा

    Updated: Mon, 27 Jan 2025 12:47 PM (IST)

    जिसे कभी कश्मीर की आतंक की नर्सरी कहा जाता था उसी त्राल में इस गणतंत्र दिवस पर एक नया इतिहास रचा गया। स्थानीय लोगों ने मुख्य चौराहे पर सैंकड़ों की तादाद में इकट्ठा होकर राष्ट्रध्वज फहराया और हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए। यह बीते 35 वर्षों में पहली बार हुआ है जब त्राल में तिरंगा फहराया गया और देशभक्ति के नारे गूंजे।

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    आतंक का गढ़ कहे जाने वाले त्राल में फहराया गया तिरंगा। फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

    नवीन नवाज, श्रीनगर। दक्षिण कश्मीर में आतंक की नर्सरी कहलाने वाला त्राल अब पूरी तरह से बदल गया है। गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस समारोह, त्राल में सन्नाटा छाया रहता था, लेकिन इस बार गणतंत्र दिवस के अवसर पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि मुख्य चौराहे पर सैंकड़ों की तादाद में स्थानीय लोगों ने जमा हो राष्ट्रध्वज फहराया। बीते 35 वर्ष में पहली बार त्राल में तिरंगा और हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे गूंज।

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    आतंकियों को गढ़ रहा है त्राल

    जम्मू-कश्मीर विशेषकर कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा और अलगाववाद की राजनीति पर नजर रखने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि त्राल आतंकियों और अलगाववादियों का मजबूत गढ़ रहा है। न्यूटन, बुरहान वानी, आदिल, जाकिर मूसा जैसे कई दुर्दांत आतंकियों का संबंध त्राल से ही रहा है।

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    गत रविवार को जब पूरा देश 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा था, तो त्राल भी उसमें शामिल था। स्थानीय विधायक और पीडीपी के नेता रफीक नाइक के नेतृत्व में एक हजार से ज्यादा लोग गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल हुए।

    स्थानी लोगों में तिरंग फहराने को लेकर जोश देखने लायक था। राष्ट्रध्वज को एक बुजुर्ग, एक युवक और एक बालक, जो कश्मीर की तीन पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने एक साथ फहराते हुए राष्ट्रीय एकता, अखंडता को बनाए रखने की कश्मीरियों की संकल्पबद्धता को दोहराया।

    'यह अमन चैन तरक्की का परचम है'

    इस अवसर पर मौजूद एक सुरक्षाधिकारी ने कहा कि त्राल के मुख्य चौराहे में गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन, ध्वज फहराया जाना और सभी लोगों का इसमें शामिल होना, कश्मीर में समाप्त हुए डर और अलगाववाद के माहौल की पुष्टि करता है। पहले यहां तो गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस समारोह, सिर्फ हड़ताल होती थी। कई बार लोगों के घरों और दुकानों पर काला झंडा देखने को मिलता था।

    मुश्ताक अहमद नाम के एक स्थानीय बुजुर्ग ने कहा कि यहां बहुत सी बाते हो रही हैं, लेकिन सच तो यह है कि हम कश्मीरियों को हमेशा से ही यह तिरंगा प्यारा रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो 1947 में हमारे बुजुर्ग क्यों हिंदुस्तान को अपनाते, क्यों यहां हिंदू-मुसलमान और सिख मिलकर पाकिस्तानी हमलावरों को कहते खबरदार, होशियार हम कश्मीरी हैं तैयार।

    उसने कहा कि यह जो परचम आज यहां लहरा रहा है, यह अमन चैन तरक्की का परचम है, यह हमारी पहचान है इसलिए हम यहां जमा हुए हैं। यह पूछे जाने पर कि त्राल में तो कई आतंकी पैदा हुए हैं, यहां अलगाववादी भी खूब रहे हैं, तो उसने कहा कि कोई भी कभी भी गुमराह हो सकता है, अगर सुबह का भूला शाम को लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते। इसलिए आज यहां सब इस परचम के नीचे खड़े हैं।

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