Jammu Kashmir News: बच्ची भर रही थी हवा, गुब्बारा फट श्वास नली में फंसा; डॉक्टरों ने ऐसे बचाई जान
श्रीनगर में एक आठ साल की बच्ची खेलते समय गुब्बारा निगल गई जिससे उसकी हालत गंभीर हो गई। समय पर जीएमसी अनंतनाग में ले जाने पर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शौकत शफी शायदा ने तुरंत सीपीआर और अन्य आपातकालीन उपचार शुरू किए। डॉक्टरों ने गुब्बारे को सावधानीपूर्वक हटाकर उसकी जान बचाई। अस्पताल की नई सर्जिकल इंटेंसिव केयर यूनिट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जागरण संवाददाता, श्रीनगर। कश्मीर में अपने परिवार के साथ घूमने आई एक आठ साल की बच्ची की गुब्बारा निगलने पर जान पर बन आई। अलबत्ता सही समय पर उपचार मिलने और सूजबूझ के साथ डॉक्टरों द्वारा किए गए उपचार ने उसकी जान बचाई गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार परिवार के पहलगाम घूमने आई 6 वर्षीय बच्ची गत शनिवार शाम गुब्बारे के साथ खेल रही थी कि इसी बीच गुब्बारे में हवा भरने के प्रयास के दौरान गुबारा फट गया और उसका एक टुकड़ा उसके गले में फंस गया था।
वह मौके पर ही बेहोश हो गई। उसके माता-पिता उसे फौरन जीएमसी अनंतनाग ले गए। अस्पताल में तैनात बाल रोग विशेषज्ञ व सहायक प्रोफेसर डॉक्टर शौकत शफी शायदा जो उस समय वहां मौजूद थे, ने उसका उपचार किया। डॉ. शायदा ने कहा, बच्ची के परिजनों ने हमें बताया कि वह सांस नहीं ले रही थी, हिल नहीं रही थी, और वे उसे पहलगाम से जिला अस्पताल लाने के दौरान पूरे रास्ते में उसके दिल की धड़कन महसूस नहीं कर सके।
उनके अनुसार उसकी नब्ज नहीं चल रही थी, न ही जीवन के कोई लक्षण। उसकी त्वचा का रंग काला पड़ने लगा था। 'बच्ची को तुरंत पीडियाट्रिक हाई डिपेंडेंसी यूनिट ले जाया गया। डॉ. शायदा के नेतृत्व वाली टीम ने कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) शुरू किया और आपातकालीन दवा दी। पांच मिनट के अंदर, उसका दिल फिर से धड़कने लगा। लेकिन वह अभी भी ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी।
डॉ. शायदा ने कहा, श्वास नली डालने की प्रक्रिया के दौरान मैंने कुछ असामान्य देखा। मैंने उसकी श्वास नली में एक गुब्बारा फंसा हुआ देखा। मैं इसे बिना जोखिम के नहीं निकाल सकता था, इसलिए मैंने श्वास नली का उपयोग करके इसे सावधानीपूर्वक भोजन नली की ओर धकेला। जब उसकी श्वास नली आंशिक रूप से साफ हो गई, हमने इलाज जारी रखा और उसे वेंटिलेटर सपोर्ट के लिए सर्जिकल इंटेंसिव केयर यूनिट में शिफ्ट किया।
हमारी प्राथमिकता उसे स्थिर करना था। कुछ ही मिनटों में, हमने देखा कि उसकी धड़कनें और सांसे फिर से चलने लगीं । डॉ. शायदा ने कहा, बची की जान बचाने का श्रेय नव-स्थापित सर्जिकल इंटेंसिव केयर यूनिट और प्रशिक्षित बाल चिकित्सा कर्मचारियों को दिया। अगर उसे श्रीनगर रेफर किया गया होता, तो शायद उसकी जान नहीं बच पाती।
इधर जीएमसी अनंतनाग की प्रिंसिपल डा रुखसाना ने कहा, पिछले साल यहां यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी, शुक्र है कि इस साल यह सुविधा हमारे अस्पताल में मौजूद थी और बच्ची की जान बची। वरना उसके लिए यह घटना बड़ी घातक सिद्ध हो सकती थी। डॉक्टर रुखसाना ने आपातकालीन टीम की तेज़ और समन्वित प्रतिक्रिया और बाल चिकित्सा संकटों से निपटने की अस्पताल की बढ़ती क्षमता की प्रशंसा की।
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