Jammu Kashmir Election 2024: उमर अब्दुल्ला के लिए आसान नहीं गांदरबल का रण, पहले भी दो बार हार चुके हैं चुनाव
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Election) में गांदरबल सीट से ताल ठोक रहे नेकां के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के लिए यह लड़ाई आसान नहीं होगी। उन्हें पीडीपी और अपने पुराने साथी इश्फाक जब्बार से कड़ी टक्कर मिल सकती है। बता दें कि उमर अब्दुल्ला पहले भी गांदरबल सीट से दो बार चुनाव हार चुके हैं। गांदरबल सीट अब्दुल्ला परिवार का गढ़ माना जाता है।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अब गांदरबल से चुनाव रण में उतर चुके हैं। उनके दादा और पिता भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, लेकिन बदलते परिवेश और बढ़ती आकांक्षाओं के मद्देनजर उनकी राह आसान नजर नहीं आती।
इश्फात जब्बार बढ़ाएंगे उमर की चुनौती
उमर अब्दुल्ला को न सिर्फ पीडीपी के उम्मीदवार से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ेगा बल्कि अपने पुराने साथी शेख इश्फाक जब्बार भी चुनौती बढ़ाएंगे। उससे भी ज्यादा उन्हें स्थानीय मतदाताओं के सवालों का जवाब देना पड़ेगा।
अब्दुल्ला परिवार का गृह क्षेत्र होने के बावजूद इस क्षेत्र के लोगों को आज भी बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी मौलिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। बता दें कि हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में उमर बारामुला संसदीय सीट से निर्दलीय प्रत्याशी इंजीनियर रशीद से हार गए थे।
उमर के लिए आसान नहीं रहा गांदरबल का रण
गांदरबल करीब 16 वर्ष पहले तक श्रीनगर जिले का हिस्सा था और नेकां का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। इस क्षेत्र ने तीन-तीन मुख्यमंत्री प्रदेश को दिए। नेकां के संस्थापक और उमर अब्दुल्ला के दादा शेख मोहम्मद 1977 मे यहां से चुनाव लड़े और जीते थे।
उमर के पिता डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने 1983, 1987 और 1996 में इसी क्षेत्र से विजयी होकर विधानसभा पहुंचे लेकिन उमर के लिए यह रण कभी इतना आसान नहीं रहा। उन्होंने पहला चुनाव वर्ष 2002 में यहां से लड़ा और पीडीपी की लहर में हार गए। पीडीपी के काजी अफजल ने उमर को हराकर सबको चौंका दिया ।
वर्ष 2008 में फिर यहीं से उतरे और जीत दर्ज करने के बाद मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2014 में शेख इश्फाक की जिद के कारण उमर गांदरबल छोड़ सोनवार और बीरवार में चुनाव लड़े। इश्फाक ने नेकां के टिकट पर 2014 का चुनाव लड़ा और जीता था। उमर अब फिर गांदरबल से चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
युवाओं की सोच कुछ अलग
राजनीतिक मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि गांदरबल विधानसभा क्षेत्र मे कुल 1.30 लाख मतदाताओं में 90 प्रतिशत ग्रामीण है। इस इलाके में गुज्जर-बक्करवाल समुदाय भी हैं।
शेख अब्दुल्ला और उसके बाद फारूक से जुड़े रहे उम्रदराज मतदाताओं का अभी भी पार्टी से जुड़ाव हो सकता है पर युवाओं की सोच अलग है। वे अन्य दलों में भी रुचि लेते हैं। पांच अगस्त 2019 के बाद स्थिति काफी बदल चुकी है।
यह भी है चुनौती
बिलाल बशीर ने कहा कि इस बार उमर को पीडीपी के बशीर मीर का सामना करना पड़ेगा। पहले वह कंगन में चुनाव लड़ते थे, जहां गुज्जर-बक्करवाल समुदाय का दबदबा है। बशीर मीर ने वर्ष 2014 में मियां अल्ताफ को कड़ी टक्कर दी थी।
कंगन अब अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और बशीर मीर को कंगन छोड़ गांदरबल आना पड़ा। गांदरबल में पीडीपी का अपना खासा वोट बैंक है। उमर के पुराने साथाी शेख इश्फाक जब्बार जम्मू कश्मीर यूनाइटेड मूवमेंट संगठन बनाकर मैदान में हैं। वह गांदरबल के हैं और उमर के लिए ही परेशानी पैदा करेंगे।
लोग अनुच्छेद 370 और आटोनामी के भावनात्मक मुद्दों पर पर वोट नहीं देंगे। अगर नेकां रोजगार और विकास का मुद्दा उठाती है तो मतदाता उनसे ही सवाल करेंगे। उमर के विरोधी भी इसे उछालेंगे।
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यह हैं स्थानीय लोगों के मुद्दे
मोहम्मद राजा नामक एक युवक ने कहा कि उमर यहीं से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन वह यहां 93 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना को पूरा नहीं करा सके। 26 वर्ष पहले शुरू हुई यह परियोजना आज भी अधर में है। वह छह वर्ष तक मुख्यमंत्री थे, चाहते तो पूरे इलाके का कायाकल्प कर सकते थे। गांदरबल में पुरातत्व महत्व के कई स्थान हैं, मंदिर हैं, इस पूरे इलाके में पर्यटन की अपार संभावना है,लेकिन उन्होंने क्या किया?
एक अन्य युवा हारुन कहते हैं कि गांदरबल श्रीनगर से सटा है, लेकिन आज भी यहां सड़कों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। बिजली,पानी और स्वास्थ्य सेवा जैसी मौलिक सुविधाओं का अभाव है। बीते पांच वर्ष में भी यहां सिर्फ कास्मेटिक काम हुए हैं। हमें यहां वह विधायक चाहिए जो हमें सुलभ हो।