Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Lok Sabha ELection 2024: कभी रिमोट से चलाते थे राजनीति, आज खुद अस्तित्व के लिए जूझ रहे पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद

    Updated: Sun, 07 Apr 2024 01:56 PM (IST)

    समय का चक्र ही है। जो कभी दिल्ली से बैठकर प्रदेश की राजनीति को कंट्रोल करने वाले पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद आज खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। ये लोकसभा चुनाव महज एक चुनाव नहीं है बल्कि प्रदेश के कुछ कद्दावर नेताओं के भविष्य को बताने वाला चुनाव है। जिनमें से एक DPAP के अध्यक्ष आजाद भी हैं।

    Hero Image
    Jammu Kashmir News: आज खुद अस्तित्व के लिए जूझ रहे पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद। फाइल फोटो

    नवीन नवाज, श्रीनगर। समय का फेर है, कभी दिल्ली में बैठ जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir News) की राजनीति और सरकार की दिशा तय करने में भूमिका निभाते थे। आज अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए पहाड़ और मैदान नाप रहे हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यह कोई और नहीं पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad) हैं। जो कांग्रेस के शासनकाल में करीब 20 वर्ष तक केंद्रीय मंत्री रहे हैं। अनंतनाग-राजौरी संसदीय सीट (Anantnag-Rajouri seat) से चुनाव लड़ रहे आजाद के लिए यह चुनाव न सिर्फ जम्मू कश्मीर की राजनीति में बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

    यही कारण है कि वह अदालत द्वारा असंवैधानिक करार दिए रोशनी अधिनियम को फिर से लागू करने और प्रदेश में रोजगार व जमीन पर सिर्फ स्थानीय लोगों के अधिकार सुनिश्चित करने का यकीन दिला रहे हैं।दो वर्ष पहले कांग्रेस से अलग होने के बाद डेमोक्रेटिक प्राग्रेसिव आजाद (डीपीए) पार्टी का गठन करने वाले आजाद के विरोधी उन पर भाजपा का एजेंट होने का आरोप लगा रहे हैं।

    आजाद की पार्टी ने प्रदेश की पांच में से सिर्फ दो सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। ऊधमपुर-डोडा संसदीय सीट (Udhampur-Doda seat) पर उन्होंने अपने विश्वस्त जीएम सरूरी को उम्मीदवार बनाया है। खुद वह अनंतनाग-राजौरी संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। जीवन के 75 वसंत पार कर चुके गुलाम नबी आजाद के लिए यह चुनाव अस्तित्व का सवाल है।

    वह जम्मू कश्मीर में दूसरी बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने पहला संसदीय चुनाव 2014 में कांग्रेस के टिकट पर ऊधमपुर-कठुआ संसदीय सीट (Udhampur-Kathua seat) पर लड़ा। भाजपा के उम्मीदवार डा जितेंद्र सिंह से हार गए थे। अब वह दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। वह भी अनंतनाग-राजौरी सीट से। यह अलग बात है कि वह महाराष्ट्र से दो बार चुनाव जीत चुके हैं।

    वह वोटरों को लुभाने के लिए अदालत द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जा चुके रोशनी अधिनियम को फिर से बहाल करने का यकीन दिला रहे हैं। यह वह कानून है जिसकी आड़ में सरकारी और वनीय जमीनों पर उनके कब्जाधारकों को मालिकाना अधिकार दिया। इसका एक धर्म विशेष और कुछ रसूखदारों में जमकर लाभ उठाया। इनमें खुद आजाद के कई रिश्तेदारों के नाम भी आए। दूसरा मुद्दा वह जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करना और सरकारी रोजगार व जमीनों पर स्थानीय लोगों के अधिकार को सुनिश्चित बनाने की बात कर रहे हैं।

    आजाद के साथ कोई नया प्रभावी चेहरा नहीं

    कांग्रेस (Congress) से अलग होने के बाद डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी बनाकर जम्मू कश्मीर की राजनीति में सक्रिय हुए आजाद के साथ कोई नया प्रभावी चेहरा नहीं है। कांग्रेस के कुछ वही पुराने लोग हैं,जो उनके सिपहसालार थे। उनके इशारे पर प्रदेश कांग्रेस में उनके विरोधियों के लिए मुश्किलें पैदा करते थे।

    यह भी पढ़ें: Jammu Kashmir News: लोगों को नमाज पढ़ने से रोकने के लिए जामा मस्जिद को किया बंद, PDP प्रमुख महबूबा मुफ्ती का दावा

    उनके एक करीबी जिन्हें उनके दबाव में नेकां-कांग्रेस गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री पद और उससे पहले पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार (PDP-Congress Alliance) में स्पीकर का पद मिला था, भी उनका साथ छोड़ कांग्रेस में लौट चुके हैं। आजाद अपने भाषणों में नेशनल कॉन्फ्रेंस,पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस को निशाना बनाते हैं, लेकिन वह भाजपा जिसे वह सांप्रदायिक बताते हैं, की आलोचना नपे तुले शब्दों में ही करते हैं।

    डीपीएपी की घट जाएगी संभावना

    राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि आजाद अगर यह चुनाव हारते हैं तो यह जम्मू-कश्मीर और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी प्रासंगिकता को समाप्त कर देगा। जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव के बाद संभावित विधानसभा चुनाव में भी डीपीएपी की संभावना घट जाएगी। जो लोग आज खड़े नजर आ रहे हैं, उनमें से कई वापस कांग्रेस में या फिर किसी अन्य दल का हिस्सा बनने में देर नहीं लगाएंगे।

    उनके लिए यह चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। यही कारण है कि वह जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, पीपुल्स कान्फ्रेंस के साथ चुनावी तालमेल बनाने का प्रयास कर, उन्हें अनंतनाग-राजौरी सीट पर उम्मीदवार खड़ा न करने के लिए मनाने में जुटे हैं। वह प्रयास कर रहे हैं कि अपनी पार्टी अनंतनाग-राजौरी सीट के लिए घोषित उम्मीदवार जफर इकबाल को खड़ा न करे और नेकां के खिलाफ उनका सहयोग करे।

    कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के साथ तल्खियां

    जम्मू कश्मीर मामलों के जानकार एडवोकेट अजात जम्वाल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस 40-45 वर्ष से दो गुटों में बंटी रही है। प्रदेश कांग्रेस में आजाद गुट अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए सक्रिय रहा है। मुफ्ती मोहम्मद सईद जब कांग्रेस में थे तो आजाद की उनके साथ पटरी नहीं बैठती थी। दिवंगत जीआर कार, मंगत राम शर्मा, मदन लाल शर्मा ( तीनों का निधन हो चुका), प्रो सैफुद्दीन सोज, जीए मीर समेत कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के साथ आजाद की तल्खियां जग जाहिर हैं।

    आजाद ने प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं व कार्यकर्ताओं को नाराज कर दो वर्ष पहले विकार रसूल को प्रदेश कांग्रेस का प्रमुख बनाया था। लाल सिंह ने अगर वर्ष 2014 के संसदीय चुनाव से पूर्व कांग्रेस से अगर किनारा किया था तो बड़ा कारण आजाद थे। वह एक अच्छे प्रबंधक जरूर हैं,लेकिन जनता से जुड़ाव को लेकर सवाल पैदा किए जा सकते हैं। उन्होंने जम्मू कश्मीर में सिर्फ दो बार विधानसभा चुनाव जीता है।

    यह भी पढ़ें: Lok Sabha Election 2024: महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर की इस सीट से ठोकेंगी चुनावी ताल, घोषणा आज संभव

    comedy show banner
    comedy show banner