Jammu Politics: चुनावी दंगल में NC और PDP देंगे एक-दूसरे को टक्कर, रोचक होगा कश्मीर में सियासी समीकरण
जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव के चलते राजनैतिक समीकरण बेहद ही रोचक बने हुए हैं। जहां कुछ दिन पहले तक जम्मू-कश्मीर के हितों के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी एक साथ खड़े थे। लेकिन अब कश्मीर की तीन सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर दोनों पार्टियों में मतभेद हो गए और अब दोनों अलग-अलग होकर एक दूसरे के सामने खड़े हो गए हैं।

नवीन नवाज, श्रीनगर। राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या स्थायी मित्र नहीं होता, सिर्फ अवसर होता है। यह बात जम्मू-कश्मीर में उभरे राजनीतिक समीकरणों को देखकर बिल्कुल सही साबित होती है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जो कुछ दिन पहले तक जम्मू-कश्मीर के हितों के लिए अपने निजी व दलीय एजेंडे को बलिदान करने का दावा करते हुए साथ-साथ चल रहे थे, आज एक-दूसरे को कश्मीर का दुश्मन बताकर एक दूसरे के खिलाफ तलवारें खींच चुनावी दंगल में उतर चुके हैं।
कश्मीर में चुनाव हुआ रोचक
दोनों का एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ना अप्रत्याशित नहीं है, लेकिन दोनों के मैदान में उतरने से कश्मीर में चुनाव पूरी तरह से रोचक हो गया है। कांग्रेस और माकपा के लिए भी स्थिति दुविधापूर्ण हो चुकी है, उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वह नेकां के साथ जाए या फिर पीडीपी का साथ दे क्योंकि दोनों आईएनडीआई एलांयस में नेकां-पीडीपी के सहयोगी हैं।
तीन सीटों पर नेकां और पीडीपी दोनों लड़ रही चुनाव
नेकां और पीडीपी दोनों ही अनंतनाग-राजौरी, पुलवामा-श्रीनगर, बारामुला-कुपवाड़ा संसदीय सीट पर चुनाव लड़ रही हैं। जम्मू-रियासी और उधमपुर-कठुआ संसदीय सीट पर इन दोनों ने कांग्रेस के समर्थन में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती अनंतनाग-राजौरी में चुनाव लड़ने जा रही हैं, जहां से नेकां ने मियां अल्ताफ अहमद लारवी को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।
इनकी होगी टक्कर
श्रीनगर संसदीय सीट पर पीडीपी की युवा इकाई के प्रधान वहीद उर रहमान पारा का मुख्य मुकाबला नेकां के आगा सैयद रुहुल्ला से होने जा रहा है जबकि बारामुला-कुपवाड़ा में नेकां उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के मुकाबले में पीडीपी ने पृर्व राज्यसभा सदस्य फैयाज मीर को अपना उम्मीदवार बनाया है । इन तीनों सीटों पर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अपनी पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी भी चुनाव लड़ने जा रही हैं और उन्होंने भी अपने प्रत्याशी तय कर लिए हैं।
नेकां और पीडीपी वर्ष 2020 मे पीएजीडी के बैनर तले जमा हुई और उसके बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर में डीडीसी चुनाव मिलकर लड़ा। दोनों ने पीएजीडी का बैनर जम्मू कश्मीर में पांच अगस्त 2019 से पूर्व की संवैधानिक स्थिति की बहाली के लिए तैयार किया है।
एक-दूसरे को मानते कश्मीर का दुश्मन
दोनों भाजपा को जम्मू-कश्मीर का दुश्मन मानते हैं और भाजपा के अलावा पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अपनी पार्टी और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी भी इन दोनों को कश्मीरियों का दुश्मन नंबर एक बताती हैं और इन दोनों के खिलाफ ही अपना अभियान चला रही हैं। इसलिए यह उम्मीद की जा रही थी कि नेकां-पीडीपी अपने राजनीतिक दुश्मनों केा हराने के लिए मिलकर चुनाव लड़ेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालांकि उमर अब्दुल्ला ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह अकेले चुनाव लड़ने को तैयार हैं,इसके बावजूद यह माना जा रहा था कि समझौता हो जाएगा, जो नहीं हुआ।
दोनों दलों की राजनीतिक दुश्मन और कश्मीर में दांव पर लगे दोनों के हितों के साथ साथ, दोनों की संगठनात्मक गतिविधियों का अगर आकलन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि दोनों दलों के नेताओं के दिमाग में कहीं न कहीं अपनी पुरानी शत्रुता की बात बरकरार थी। नेकां किसी भी स्तर पर पीडीपी के लिए सीट छोड़ने को तैयार नजर नहीं आयी और पीडीपी भी नेकां के लिए बिना शर्त समर्थन को राजी नहीं थी। आईएनडीआई एलांयस की प्रमुख घटक कांग्रेस के कुछ नेताओं ने इन दोनों दलों के बीच समझौते का प्रयास किया, लेकिन विफल रही।
अवसरवादी और गठबंधन को तोड़ने को ठहरा रहे दोषी
अब तस्वीर पूरी तरह साफ हो चुकी है और अब दोनों दल खुलकर एक दूसरे को राजनीतिक अवसरवादी और गठबंधन को तोड़ने का दोषी ठहरा रहे हैं। अगर दोनों मिलकर चुनाव लड़ते,सीटों का तालमेल करते तो अनंतनाग-राजौरी से लेकर कुपवाड़ा तक इन दोनों दलों के उम्मीदवारों की जीत को सुनिश्चित माना जाता।
परिसीमन के बाद कश्मीर की तीनों संसदीय सीटों के भौगोलिक-सामाजिक स्वरूप में व्यापक बदलाव आया है। इसलिए नेकां और पीडीपी का मिलकर चुनाव लड़ना बहुत ज्यादा जरूरी थी। अब दोनों एक दूसरे की मुश्किल बढ़ाने का काम करेंगे। अनंतनाग-राजौरी सीट पर दोनों के बीच वोटों का बंटवारा भाजपा को अगर वह अपना उम्मीदवार मैदान में उतारती है, लाभ पहुंचाएगा। गुलाम नबी आजाद भी इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं, अगर भाजपा या जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी उनका समर्थन करती है तो आजाद लाभ की स्थिति में रहेंगे।
नेका और पीडीपी के बीच राजनैतिक समीकरण
पुलवामा-श्रीनगर संसदीय सीट पर भी नेकां-पीडीपी की लड़ाई का लाभ तीसरा लेने की स्थिति में रहेगा, क्योंकि श्रीनगर संसदीय सीट में नेकां के प्रभाव वाले कुछ इलाके अब बारामुला-कुपवाड़ा सीट का हिस्सा हो चुके हैं। इसके अलावा पुलवामा अब श्रीनगर सीट का हिस्सा है और पुलवामा में पीडीपी मजबूत मानी जाती है। बारामुला-कुपवाड़ा में भी यही स्थिति है, वहां नेकां-पीडीपी की लड़ाई का फायदा पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन लेने का पूरा प्रयास करेंगे। वह चाहेंगे कि इन दोनों दलों के खिलाफ जो वोट हैं, वह न बंटे, इसके लिए वह अपनी पार्टी और भाजपा से समर्थन मांग सकते हैं।
नेकां-पीडीपी के बीच समझौता न होने से कांग्रेस व माकपा दोनों के लिए स्थिति दुविधापूर्ण है। कांग्रेस को नेकां-पीडीपी ने जम्मू प्रांत की दोनों सीटों पर समर्थन दिया है इसलिए दोनों का कांग्रेस से समर्थन की उम्मीद करना बेइमानी नहीं है। कांग्रेस किसका साथ देगी और किस तरह से देगी यह तय करना उसके लिए मश्किल होगा। माकपा जो दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में अच्छा खासा प्रभाव रखती है, भी चुनाव नहीं लड़ रही है,लेकिन उसके लिए भी पीडीपी-नेकां देानों मे से किसी एक को चुनना मुश्किल होगा।
नेशनल कॉन्फ्रेंस पर लगाए बीजेपी के लिए काम करने के आरोप
वहीद उर रहमान ने कहा कि हम तो समझौते के लिए पूरी तरह तैयार थे, हम गठबंधन की बेहतरी और जम्मू-कश्मीर के हित में चुनाव में अपना प्रत्याशी भी नहीं उतारते, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस ने हमारे लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं छोडा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह परोक्ष रूप से भाजपा के लिए काम कर रहे हों।
नेकां के प्रमुख प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा कि हमने गठबंधन धर्म को भंग नहीं किया। वर्ष 2019 में जिन सीटों पर हमने जीत दर्ज की थी, उन्हीं सीटों पर हमने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। यही आईएनडीआई एलायंस और पीएजीडी में तय फार्मूला है। पीडीपी को चाहिए था कि वह आईएनडीआई एलांयस को मजबूत बनाती, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। हम किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकते। हम चाहते थे कि भाजपा को यहां किसी भ तरह से मौका न दिया जाए।
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