देखो, खोजो और सफाया... JK में सुरक्षाबलों की नई शीतकालीन रणनीति, आतंकियों को मार गिराने का अभियान शुरू
सर्दियां शुरू होते ही जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों ने आतंकियों के खिलाफ नई रणनीति अपनाई है। इस 'सी-स्वीप' अभियान के तहत, बर्फ से ढके पहाड़ों और जंगलों ...और पढ़ें
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आतंकियों को मार गिराने का अभियान शुरू। फाइल फोटो
नवीन नवाज, श्रीनगर। सर्दियां शुरू हो चुकी हैं, पहाड़ों पर बर्फ गिर चुकी है, लेकिन इस बार सुरक्षाबल आतंकियों का निचली बस्तियों में आने का इंतजार नहीं कर रहे हैं। इस बार उन्होंने सर्दियों में अपनी रणनीति को पूरी तरह बदलते हुए आतंकियों को उनकी मांद में ही मार गिराने के लिए बर्फ से ढके पहाड़ों व जंगलों और उनके साथ सटी बस्तियों में आतंकरोधी अभियान शुरु किया है।
इस अभियान में सेना की विंटर वारफेर में विशेषज्ञ टुकड़ियों को भी शामिल किया गया है। ड्रोन,ग्राउंड सेंसर और सर्विलांस रडार समेत विभिन्न अत्याधुनिक उपकरण भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं, ताकि आतंकियों की हर संभावित गतिविध का तत्काल पता लगा उन्हें मार गिराया जा सके।
यह अभियान सी-स्वीप-सर्विलासं-देखो,सफाया करो और निगरानी रखो के सिद्धांत के आधार पर चलाया जा रहा है। यह सेना व अन्य सुरक्षाबलों द्वारा अपनायी जा रही नयी शीतकालीन डाक्ट्रिन है। इस रणनीति में सेना,जम्मू कश्मीर पुलिस,सीआरपीएफ और विभिन्न् केंद्रीय खु़फिय एजेंसियां, वनरक्षक और ग्राम रक्षा दल व नागरिक प्रशासन की सक्रिय भूमिका देखने को मिल रही है।
इस रणनीति के तहत सुरक्षाबलों का ध्यान चिह्नित इलाकों में बचे खुचे आतंकियों को समाप्त करने के साथ और इस बात को सुनिश्चित बनाने पर है कि वह किसी भी तरह से निचले इलाकों मं बसतियों तक न पहुंचे। इसके साथ ही जिस इलाके से आतंकियों को खदेड़ा गया है या जहां आतंकियों को पूरी तरह समाप्त किया गया है,वहां उनकी दोबारा आमद न हो। इसके अलावा उनके लाजिस्टिक्स और कम्युनिकेशन चैनल को समाप्त किया जाए।
इस रणनीति के तहत सी-स्वीप-सव चलाए रहे अभियान में सुनिश्चित किया जाता है कि जहां भी तलाशी अभियान चलाया गया है,वहां निगरानी समाप्त करने के बजाय लगातार बनायी रखी जाए और नियमित अंतराल पर वहां अभियान चलाया जाए।
यह अभियान दक्षिण कश्मीर के दक्षिण कश्मीर में अनंतनाग, कुलगाम, शोपियां और सेंट्रल कश्मीर के बडगाम के अलावा जम्मू प्रांत में किश्तवाड़-डोडा, उधमपुर-कठुआ और राजौरी-पुंछ के उन पर्वतीय इलाकों में शुरु किया गया है जो आतंकियों के प्रभाव वाले हैं और सर्दियों के दौरान बर्फ के अन्य इलाकों से कटे रहते हैं। आतंकी इन इलाकों की भौगोलिक परिस्थितियों का पूरा लाभ उठाते हैं और सर्दियों में इन इलाकों में सुरक्षाबलों की कम आवाजाही के चलते वह स्थानीय ग्रामीणों के घरों में जबरन डेरा जमा लेते हैं या फिर खानाबदोश गुज्जर समुदाय द्वारा खाली किए गए डेरों को अपना ठिकाना बनाते हैं या उनके आस पास किसी सुरक्षित जगह पर छिपे रहते हैं।
अगर हिमपात ज्यादा हो तो य निकटवर्ती निचली बस्तियों में दाखिल होते हैं। इसे देखते हुए सुरक्षाबलों ने इस बार सर्दियों में अपनी आतंकरोधी रणनीति में व्यापक बदलाव किया है। इस बार वह सर्दियों में पूर्व सक्रियता की रणनीति के तहत अपने अभियान चला रहे हैं। इन अभियानों में सेना की राष्ट्रीय राइफल्स प्रमुख भूमिका निभा रही है। जम्मू कश्मीर पुलिस के विशेष अभियान दल एसओजी और सीआरपीएफ की टुकड़ियां भी इस अभियान का हिस्सा हैं।
यहां यह बताना असंगत नहीं होगा कि प्रदेश में सक्रिय आतंकियों की संख्या को लेकर कोई भी अधिकारी अधिकारिक तौर स्पष्ट दावा नहीं करता,लेकिन विभिन्न खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, जम्मू प्रांत में लगभग 35 विदेशी आतंकी सक्रिय हैं। कश्मीर घाटी में वह इनकी संख्या दुगनी होने का दावा करते हैं।
बीते चार वर्ष से जम्मू प्रांत के पर्वतीय जिले सुरक्षाबलों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। राजौरी-पुंछ-रियासी, रामबन-किश्तवाड़-डोडा-कठुआ में आतंकियों ने एक बार नहीं कई बार सुरक्षाबलों पर सनसनीखेज तरीके से हमला कर उन्हें भारी नुक्सान पहुंचाया है। कश्मीर घाटी में दक्षिण कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में ही आतंकियों की ज्यादा गतिविधियां देखी गई हैं।
आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मेरा 25वर्ष का अनुभव है और पहली बार सदि्रयों में इस तर्ज पर आतंकरोधी अभियान देख रहा हूं। पहले भी सर्दियों में हमारे आतंकरोधी अभियान चलते रहे हैं,लेकिन वह प्रतिक्रियात्मक होते थे, लेकिन इस बार पूर्व सक्रियता के आधार पर चल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सभी जानते हैं कि सर्दियों में विशेषकर दिसंबर के अंतिम सप्ताह से फरवरी के आगमन तक आतंकी गतिविधियों में कमी रहती है, आतंकी यथासंभव अपने ठिकानों में ही छिपे रहते हैं। घुसपैठ भी लगभग बंद हो जाती है और जम्मू कश्मीर में सक्रिय आतंकियों का अपने स्थानीय ओवरग्राउंड वर्कर और सीमा पार बैठे अपने हैंडलरों से संपर्क भी गर्मियों की अपेक्षा बहुत कम होता है।
सेना से संबधित सूत्रों ने बताय कि सर्दियों में इस बार सुरक्षाबलों की आतंकरोधी गतिविधियों को बढ़ाया गया है। आप इसे प्रो-एक्टिव विंटर सट्रेटजी भी कह सकते हैं। उन्होंने बताया बर्फ से ढके इलाकों में अस्थायी शिविर और निगरानी चौकियां बनाई गई हैं।उन जगहों को चिह्नित किया गया ,जहां सर्दियों के दौरान हिमपात की स्थिति मे आतंकियों की गतिविधियां हो सकती हैं। सेना,पुलिस व सीआरपीएफ के दस्ते इन इलाकों में नियमित गश्त करते हुए तलाशी ले रहे हैं। जो इलाके ज्यादा दुर्गम माने जाते हैं, वहां सेना ही अभियान चला रही है। उन्होंने बताया कि यह रणनीति विपरीत मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों के बीच भी आपरेशनल माेेमेंटम बनाए रखने में सहायक साबित हो रही है।
संबधित सैन्याधिकारियों ने बताया कि जम्मू कश्मीर में सक्रिय आतंकी जिनमें से अधिकांश पाकिस्तानी ही हैं, इस समय जबरदस्त दबाव में हैं और वह खुद को बचाने के लिए उच्च पर्वतीय इलाकों और घने जंगलों में ही छिप रहे हैं। वह उन इलाकों में ही ज्यादातर नजर आ रहे हैं जहां आबादी बहुत कम है और ग्रामीणों के घर एक दूसरे से अलग थलग हैं।यह ग्रामीणों और अपने ओवरग्राउंड वर्कर नेटवर्क से भी कम से कम संपर्क में आ रहे हैं।
यह ग्रमीणों के पास तभी जा रहे हैं जब इन्हें अपने लिए काई मदद चाहिए। यह ग्रामीणों को डरा धमका कर, कभी पैसा तो कभी राशन ले रहे हैं। अगर किसी जगह यह ग्रामीणों से संपर्क करते हैं तो तुरंत ग्रामीण सुरक्षाबलों ाके सूचित कर रहे हैं और आतंियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। इसलिए प्रो एक्टिव विंटर स्ट्रेटजी के कारण यह अत्यंत दबाव में है,क्योंकि सेना की विभिन्न टुकड़ियां व अन्य सुरक्षाबलों की आपरेशनल टुकड़ियां इस समय उन इलाकों में डटी हैं, जहां पहले सर्दियों में सुरक्षाबलों की गैरमौजूदगी में आतंकी बेखौफ घूमते थे।
उन्होंने बताया कि इस अभियान में सभी सुरक्षा एजेंसियों के बीच खुफिया सूचनाओं के आदान प्रदान को रियल टाइम बनाते हुए, तत्काल आतंकरोधी अभियान चलाने और उपलब्ध संसाधनों के यथासंभव प्रयोग को सुनिश्चित किया जा जा रहा है। इसके अलावा आतंिकयों की गतिविधियों की, उनके छिपने, किसी ग्रामीण से उनके संपर्क करने के तौर तरीकों का आकलन कर, क्षेत्र विशेष्ज्ञ में अभियान चलाए जा रहे हैं। इसके साथ ही एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आने जाने वाले सभी दर्रे, नालों और जंगलों व घाटियों में विशेष निगरानी चौकियां स्थापित करने के साथ तलाशी अभियान चलाए जा रहे हैं।
रक्षा मंत्रालसय से जुड़े सूत्रों ने बताया कि उच्च पर्वतीय क्षेत्रों की भीषण परिस्थितियों में किसी भी युद्धक परिस्थिति का सामना करने में समर्थ जवानों पर आधारित विंटर वारपेर दस्तों को भी शामिल किया गया है।

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