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    Jammu Kashmir News: 37 साल बाद NC को कश्मीर में विपक्ष से कड़ी चुनौती, अब्दुल्ला के लिए बनी करो या मरो जैसी स्थिति

    Updated: Sun, 05 May 2024 04:00 PM (IST)

    नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के लिए इस करीब 37 साल बाद एक बार फिर जम्मू-कश्मीर की तीनों सीटों पर कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विपक्ष के आगे इस बार नेकां खुद को पीछे मान रहा है। कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार के लिए करो या मरो जैसी स्थिति बनी हुई है। तीनों सीटों पर अलग-अलग चरणों में मतदान है।

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    Jammu Kashmir News: 37 साल बाद NC को कश्मीर में विपक्ष से कड़ी चुनौती। फाइल फोटो

    नवीन नवाज, श्रीनगर। (Jammu Kashmir Lok Sabha 2024 Hindi News) पीरपंजाल और शमसाबारी पर्वत श्रृंखला के बीच कश्मीर में चुनावी दंगल की तैयारी हो चुकी है। सिर्फ चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों और उनके कार्यकर्ताओं में हीं नहीं आम मतदाताओं में जो उत्साह का माहौल है, वह बता रहा है कि यह चुनाव कुछ खास है।

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    37 साल बाद तीनों सीटों पर कड़ी चुनौती

    लगभग 37 वर्ष बाद फिर नेशनल कॉन्फ्रेंस (National Conference) को तीनों सीटों पर कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा। इसका असर जम्मू कश्मीर में निकट भविष्य में होने वाले विधासभा चुनाव पर होगा। नेकां नेतृत्व भी अपनी जीत को लेकर कहीं आश्वस्त नजर नहीं आता।

    एनसी के लिए वर्चस्व की नहीं, अस्तित्व की लड़ाई

    राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि फारूक (Farooq Abdullah) और उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) चुनाव में इस्लाम और मुस्लिम धर्म का कार्ड खेल रहे हैं जो उनकी घबराहट की तरफ संकेत है। यानी आजादी के बाद पहली बार घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस राजनीतिक वर्चस्व की नहीं, अस्तित्व की लड़ाई लड़ती नजर आ रही है।

    पांच अगस्त 2019 के बाद यह जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir Hindi News) में पहला लोकसभा चुनाव है। इसलिए इसका महत्व पहले हुए चुनावों की तुलना में ज्यादा है। प्रदेश की तीन सीटों में से तीन अनंतनाग-राजौरी, श्रीनगर और बारामुला में हैं। अनंतनाग-राजौरी सीट के लिए मतदान 25 मई, श्रीनगर के लिए 13 और बारामुला सीट के लिए 20 मई को होगा।

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    कई दल चुनावी मैदान में

    कांग्रेस (Congress News) के सहारे चुनाव लड़ रही नेकां को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के अलावा पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, जम्मू कश्मीर यूनाइटेड पीपुल्स मूवमेंट और भाजपा से मुकाबला करना पड़ रहा है। पीडीपी उसके सामने अकेले ही है,लेकिन उसके अन्य विरोधी एकजुट हैं।

    उसके खिलाफ साझा उम्मीदवार मैदान में उतारे हुए हैं। श्रीनगर सीट पर पीडीपी (PDP News) के वहीद उर रहमान परा व अपनी पार्टी के अशरफ मीर व बारामुला सीट पर पीपुल्स कान्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन के अलावा निर्दलीय इंजीनियर रशीद व पीडीपी के उम्मीदवार मीर मोहम्मद फैयाज ने नेकां की उम्मीदवारों का रास्ता रोक रखा है।

    गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (DPAP News) भी मैदान में है,लेकिन वह नेकां की सहयोगी कांग्रेस के वोट काटने तक सीमित नजर आती है। नेकां की स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उसे अपने उम्मीदवार तय करने में मेहनत करनी पड़ी है।

    विरोधियों के आगे पस्त है नेशनल कॉन्फ्रेंस

    राजनीतिक कार्यकर्ता सज्जाद सोफी ने कहा कि जो स्थिति आज पूरे देश में कांग्रेस की है, नेकां उससे थोड़ी सी बेहतर ही कश्मीर में नजर आती है। उसके पास कोई नया राजनीतिक नारा या एजेंडा नजर नहीं आ रहा है। वह भाजपा का डर दिखा रही है,लेकिन अपने विरोधियों के इस सवाल का जवाब नहीं दे पाती कि उमर अब्दुल्ला तो भाजपा की सरकार में केंद्र में मंत्री रह चुके हैं।

    कश्मीर में नेकां की करो या मरो जैसी स्थिति बनी हुई

    कश्मीर मामलों के जानकार बिलाल बशीर ने कहा कि कुछ लोग कह सकते हैं कि कश्मीर में नेकां को 1987 के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है,लेकिन मैं कहूंगा कि 1947 के बाद पहली बार नेकां के लिए लोकसभा चुनाव करो या मरो जैसी स्थिति बनी हुई है।

    नेकां को पहली बार तीनों सीटों के लिए उम्मीदवार तय करने में मुश्किल हुई है, खुद उमर को श्रीनगर संसदीय सीट से पीछे हटना पड़ा है। इन चुनावों में नेकां की हार का मतलब अनुच्छेद 370 हो या आटोनामी का उसका एजेंडा, सब कश्मीर की राजनीति में खत्म।

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