आतंकियों ने अब्दुल मजीद का पहले अपहरण किया, फिर बेरहमी से कर दी हत्या, एलजी सिन्हा ने स्वयं साझा की दुखद घटना
जम्मू-कश्मीर में आतंकियों द्वारा मारे गए नागरिकों के परिवारों को आखिरकार न्याय मिला। उपराज्यपाल ने पीड़ितों के परिजनों को नियुक्ति पत्र सौंपे। इनमें अब्दुल मजीद मीर का परिवार भी शामिल था जिनका 2004 में अपहरण करके आतंकियों ने हत्या कर दी थी। इसके अतिरिक्त अब्दुल मजीद वानी और एसपीओ मंज़ूर अहमद राठेर के परिवारों को भी मुआवज़ा मिला। परवेज अहमद डार जिन्होंने अपने पिता और भाई दोनों को खो दिया।

राज्य ब्यूरो, जागरण, जम्मू। नियुक्ति पत्र लेने के लिए आए परिजनों में से हरेक की दास्तां दिल दहला देने वाली थी। आतंकियों ने किसी का अपहरण कर उसे बेरहमी के साथ मारा तो किसी को उनके परिजनों के सामने ही गोलियों से भून डाला।
यही कारण था कि जब वषों बाद इन परिवारों को न्याय मिला तो कोई उपराज्यपाल को चुमता हुआ दिखा तो कोई पांच छुकर उनका आर्शीवाद लेता हुआ।
उपराज्यपाल ने स्वयं भी अब्दुल मजीद मीर के परिवार का दुखद वृत्तांत साझा किया जिनका जीवन 29 जून 2004 को बिखर गया था। उस दिन बारामुला के शेखपुरा के अब्दुल मजीद का आतंकियों ने अपहरण कर लिया था और उनकी बेरहमी से हत्या कर दी थी।
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अब्दुल मजीद के परिवार ने अपने एकमात्र कमाने वाले को खो दिया और सुरक्षा संबंधी व्यय योजना के तहत उन्हें एक लाख रुपये की अनुग्रह राशि मिली। अब्दुल मजीद मीर की शहादत के बावजूद उनके परिवार ने सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए संघर्ष किया।
आज उनके बेटे मुदासिर मजीद को सरकारी नौकरी प्रदान करके प्रशासन ने अपनी लंबे समय से चली आ रही ज़िम्मेदारी पूरी की।
तीन दशकों की कठिनाई के बाद आखिरकार सुहैल मजीद और उनके परिवार को भी न्याय मिला। आज अनंतनाग निवासी सुहैल को सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र मिला। उनके पिता अब्दुल मजीद वानी की 30 अगस्त 1994 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। 31 साल बाद आखिरकार उनके परिवार को न्याय मिला है।
24 फ़रवरी 2000 को बारामुला के वारपोरा निवासी एसपीओ मंज़ूर अहमद राठेर की पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। 25 साल तक उनके परिवार को कोई मुआवज़ा नहीं मिला। आज उनके बेटे खुर्शीद अहमद राठेर को नियुक्ति पत्र मिल गया है। परिवार के लिए यह दर्दनाक दौर आखिरकार खत्म हो गया है।
परवेज अहमद डार के लिए न्याय की राह कष्टदायक थी। 6 जुलाई 1996 को आतंकवादियों ने उनके पिता गुलाम कादिर डार की हत्या कर दी थी। 30 जुलाई 2004 को उनके भाई ऐजाज अहमद डार की भी आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। अपने पिता की मृत्यु के 29 साल बाद परवेज का दुःस्वप्न खत्म हो गया है।
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