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    जम्मू-कश्मीर: अलगाववाद को बढ़ावा देने वाली 25 किताबों की 3000 प्रतियां जब्त, लेखकों का आया रिएक्शन

    Updated: Fri, 08 Aug 2025 11:01 AM (IST)

    कश्मीर में आतंकी हिंसा और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाली 25 किताबों पर प्रतिबंध के बाद पुलिस ने सख्ती बढ़ा दी है। श्रीनगर समेत कई शहरों में इन किताबों को जब्त करने के लिए अभियान चलाया गया जिसमें लगभग तीन हजार प्रतियां जब्त की गईं। प्रशासन ने आतंकी मानसिकता को बढ़ावा देने वाली किताबों को प्रतिबंधित किया है जिनमें ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया था।

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    श्रीनगर में एक बुक स्टोर में प्रतिबंधित किताबों की जांच करते पुलिसकर्मी l जागरण

    राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। कश्मीर में आतंकी हिंसा, अलगाववाद और कट्टरपंथी मानसिकता को बढ़ावा देने वाली 25 किताबों पर पाबंदी लगाने के बाद पुलिस ने सख्ती बढ़ा दी है। श्रीनगर समेत कश्मीर के प्रमुख शहरों व कस्बों में इन किताबों को जब्त करने के लिए विक्रेताओं और प्रशासकों के ठिकानों में अभियान चलाया गया।

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    जब्त किताबों की संख्या को लेकर स्पष्ट आकंड़ा जारी नहीं किया गया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार प्रतिबंधित किताबों की लगभग तीन हजार प्रतियां जब्त की गई हैं।

    पुलिस ने स्पष्ट किया कि अभियान आगे भी जारी रहेगा। बता दें कि प्रदेश प्रशासन ने आतंकी व अलगाववादी मानसिकता को बढ़ावा देने वाली, जम्मू-कश्मीर से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों को गलत तरीके से पेश व प्रचारित करने और कश्मीर में आतंक व अलगाववाद को सही ठहराने वाली 25 किताबों को चिह्नित कर प्रतिबंधित किया है।

    ये किताबें की गई बैन

    इनमें इस्लामिक विद्वान और जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी की ‘अल जिहादुल फिल इस्लाम’, आस्ट्रेलियाई लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन की ‘इंडिपेंडेंट कश्मीर’, डेविड देवदास की ‘इन सर्च आफ ए फ्यूचर, ए जी नूरानी की ‘द कश्मीर डिस्प्यूट, और अरुंधति राय द्वारा लिखी आजादी भी शामिल है। पुलिस ने कुलगाम, अनंतनाग, शोपियां, पुलवामा, श्रीनगर, बड़गाम, बारामुला, गांदरबल, कंगन, बांडीपोर व हंदवाड़ा में पुस्तक विक्रेताओं के प्रकाशकों के यहां प्रतिबंधित पुस्तकों की तलाशी और उन्हें जब्त किया।

    सियासत भी हुई शुरू 

    प्रतिबंधित किताबों को लेकर सियासत भी शुरू हो गई है। पीडीपी नेता व पूर्व शिक्षा मंत्री नईम अख्तर और कश्मीर के प्रमुख मजहबी नेता मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने सरकार के फैसले की आलोचना की। नईम अख्तर ने किताबों पर प्रतिबंध लगाने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि इन किताबों में ऐसा क्या है, जो यहां हालात बिगाड़ रहा है।

    वहीं, मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने कहा कि विद्वानों और प्रतिष्ठित इतिहासकारों द्वारा लिखी गई पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने से न तो ऐतिहासिक तथ्यों को मिटाया जा सकता है न कश्मीर के लोगों की स्मृतियों को।

    लेखकों ने क्या कहा?

    इस बीच समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, लेखक बोस ने अपने लेखन पर किसी भी तरह के आरोप को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि शुरू से मेरा मुख्य उद्देश्य शांति के रास्ते तलाशना रहा है।‘उनकी दो पुस्तकों ‘कश्मीर एट द क्रासरोड्स: इनसाइड ए ट्वेंटीफर्स्ट-सेंचुरी कान्फ्लिक्ट’ और ‘कान्टेस्टेड लैंड्स’ पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

    अंगना चटर्जी की पुस्तक ‘कश्मीर: अ केस फार फ्रीडम’, जिसमें तारिक अली, हिलाल भट, हब्बा खातून, पंकज मिश्रा और अरुंधति राय ने सह-लेखन किया है, भी प्रतिबंधित पुस्तकों की सूची में शामिल है। चटर्जी ने ने भी पुस्तकों पर प्रतिबंध को गलत बताया। पत्रकार देवदास ने कहा कि यह प्रतिबंध अफसोसजनक है।