ISI भेज रही गोरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित आतंकी, पहाड़ों में बना रहे ठिकाने; एकाएक हमला कर हो जाते हैं फरार
Jammu Kashmir News आइएसआइ गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित आतंकी भेज रही है। अनंतनाग के कोकरनाग या राजौरी-पुंछ के जंगलों में हुई मुठभेड़ों से साफ है कि यह आतंकी न केवल पहाड़ों पर गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित हैं बल्कि आधुनिक हथियारों और उपकरणों से भी लैस हैं। इनसे निपटने के लिए सुरक्षाबलों ने भी पहाड़ों और जंगलों में नियमित गश्त लगाना शुरू कर दिया है।

श्रीनगर, नवीन नवाज: कश्मीर घाटी में आतंकियों के ज्यादातर नेटवर्क के सफाए और घटते स्थानीय समर्थन से हताश पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी (आइएसआइ) ने अब गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित विदेशी आतंकियों को घाटी में भेजना शुरू किया है। यह आतंकी स्थानीय कैडर की मदद से पहाड़ों और जंगलों में अपने ठिकाने बना रहे हैं और वहीं से सुरक्षाबलों पर हमले का षड्यंत्र रचते हैं। यह आतंकी स्थानीय आतंकियों को प्रशिक्षित भी करते हैं।
अनंतनाग के कोकरनाग या राजौरी-पुंछ के जंगलों में हुई मुठभेड़ों से साफ है कि यह आतंकी न केवल पहाड़ों पर गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित हैं, बल्कि आधुनिक हथियारों और उपकरणों से भी लैस हैं। इनसे निपटने के लिए सुरक्षाबलों ने भी पहाड़ों और जंगलों में नियमित गश्त व अस्थायी चौकियों की स्थापना के साथ अपनी उपस्थिति को बढ़ाना शुरू कर दिया है।
जंगलों और पहाड़ों पर ही ज्यादातर हमलों को दिया अंजाम
इस षड्यंत्र तहत बीते तीन वर्ष के दौरान आतंकियों ने नियंत्रण रेखा के सटे क्षेत्रों या आबादी से दूर घने जंगलों और पहाड़ों पर ही ज्यादातर हमलों को अंजाम दिया। इस दौरान पीर पंजाल की पहाड़ियों के दोनों तरफ हुए हमलों में 30 से अधिक जवान भी बलिदान हुए। अक्टूबर 2021 में भाटाधुलिया जंगल में नौ सुरक्षाकर्मी बलिदान हुए थे। इसी वर्ष राजौरी में आतंकियों ने छह नागरिकों की हत्या कर दी थी। अप्रैल में पुंछ में सेना के वाहन को निशाना बनाया गया।
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चार जवान वीरगति को हो गए प्राप्त
अब अनंतनाग के कोकरनाग में भी मुठभेड़ में तीन बड़े अधिकारियों समेत चार जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। सुरक्षा एजेंसी के अधिकारी के अनुसार इस वर्ष रियासी, राजौरी व पुंछ में मुठभेड़ों में पांच आतंकी मारे गए हैं और यह सब न केवल विदेशी आतंकी थे बल्कि उनके व्यवहार से साफ है कि यह गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित थे। आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जंगलों में गुफाएं और पेड़ आतंकियों को एक तरह का सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं।
जंगलों और पहाड़ों में खानाबदोश गुज्जर-बक्करवाल समुदाय के बने ढांचे सर्दियों में खाली रहते हैं और आतंकी आसानी से वहां आश्रय पा जाते हैं। निचले क्षेत्रों में सुरक्षाबल की गतिविधियों पर भी आतंकियों की सीधी नजर रहती है। इसके अलावा उनके मुखबिर भी सेना की गतिविधियों के बारे में उन्हें अलर्ट करते रहते हैं।
लोगों का समर्थन न मिलने से बदली रणनीति
पिछले कुछ वर्षों से सुरक्षाबल एक ओर आतंकियों पर करारा प्रहार कर रहे थे। वहीं आम जनता से संवाद लगातार बढ़ा रहे थे। इसका असर रहा कि गांवों और आबादी के क्षेत्र के आसपास पहुंचते ही आतंकियों की सूचना सेना व पुलिस तक पहुंच जाती और उसके बाद आतंकी मारे जाते।
ऐसे में आइएसआइ और पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगनाओं ने आतंकियों को बस्तियों के आसपास जाने से बचने की हिदायत दी। अब आतंकियों को प्रशिक्षित कर भेजा जा रहा है कि वह जंगलों और पहाड़ों में सुरक्षाबल पर हमला करें और वहां से भाग निकलें।
आतंकी गतविधियों में इस्तेमाल संपत्ति हो रही जब्त
प्रदेश प्रशासन ने आतंकियों के अर्थतंत्र पर सख्ती करते हुए आतंकी ठिकाना बने मकानों को जब्त करना शुरू कर दिया है। इस कारण स्थानीय निवासी आतंकियों को आश्रय देने से परहेज करते हैं। वर्ष 2016 के बाद से प्रदेश में हुई मुठभेड़ों के आकलन से साफ है कि 95 प्रतिशत आतंकी तभी मारे गए जब वह किसी मकान में शरण लिए हुए थे या किसी गांव या शहर में अपने किसी संपर्क सूत्र से मिलने वाले थे।
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आतंकियों से तंग आ चुके हैं कश्मीरी
जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक डा. शेषपाल वैद ने कहा कि आपरेशन आलआउट में बड़ी संख्या में आतंकी मारे गए हैं। आतंकी कैडर लगभग नष्ट हो गया है। आम कश्मीरी अब आतंकियों से तंग आ चुका है, वे उनका साथ देने के बजाय उनकी खबर देता है। ऐसे में वह अब जंगल की ओर भाग रहे हैं।
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