J&K News: गुलाम नबी आजाद की पार्टी के अस्तित्व पर खतरा, 3 महीने से गतिविधियां ठप; नेताओं का गिरा मनोबल
गुलाम नबी आजाद की पार्टी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी की गतिविधियां ठप हैं। आजाद का कोई बयान नहीं न कोई चिंतन। पार्टी नेताओं का मनोबल गिरा वे अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। कुछ बोलने से भी कतरा रहे हैं। जानिए क्या होगा डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी का भविष्य?
राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद की पार्टी के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो रहा है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी की गतिविधियां बिल्कुल बंद हो गई हैं।
विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद आजाद का कोई बयान नहीं आया, न कोई चिंतन हुआ। उसके बाद आजाद ने मात्र एक बार दौरा किया, जिसमें कुछ नेताओं के निधन पर जम्मू आए थे। उसके बाद अभी तक उनका जम्मू-कश्मीर दौरा नहीं हुआ है। पार्टी नेताओं का मनोबल गिर चुका है। वे अलग-थलग महसूस कर रहे हैं।
2022 में आजाद ने बनाई थी पार्टी
भाजपा, कांग्रेस, नेकां व पीडीपी की तरफ से प्रदेश में नियमित तौर पर बैठकें हो रही हैं। पंचायत व निकाय चुनाव की तैयारियों से लेकर संगठनात्मक गतिविधियों को तेजी देने के लिए काम हो रहा है, मगर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी की न कोई बैठक और न ही पंचायत या निकाय चुनाव की तैयारी को लेकर कार्यक्रम ही हुए हैं।
गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस को छोड़कर 26 सितंबर 2022 को खुद की पार्टी बना ली थी। इसका नाम डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी रखा गया। पार्टी गठन के साथ आजाद ने जम्मू-कश्मीर में लगातार दौरे किए, बहुत अधिक जनसभाएं की।
चुनाव में उम्मीदवारों की हुई थी बुरी हार
प्रत्येक रैली व जनसभा में उनकी मांग जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने की होती थी। कांग्रेस में रहते हुए जम्मू-कश्मीर में अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल के कार्यों को जोर-शोर से गिनाते थे।
चिनाब क्षेत्र के जिलों में उनकी लगातार रैलियां होती रहीं मगर विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद उनकी गतिविधियां कम हो गईं। इससे पहले लोकसभा चुनाव में आजाद ने अपनी पार्टी के तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जो बुरी तरह से हार गए थे।
आजाद पार्टी के नेता कुछ बोलने को तैयार नहीं
इसके बाद विधानसभा चुनाव में 22 प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें सभी हार गए। पार्टी की इस तरह की हार की उम्मीद तो खुद आजाद ने भी नहीं की थी। चुनाव से पहले ही आजाद बीमार हो गए थे। वह प्रचार भी नहीं कर पाए। नेताओं व कार्यकर्ताओं को डीपीएपी का अस्तित्व भी खतरे नजर आ रहा है।
ऐसी परिस्थितियों में भी गुलाम नबी आजाद की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। नई सरकार के गठन पर भी वह चुप ही रहे। अब स्थिति यह है कि डीपीएपी के नेता सार्वजनिक तौर पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। वे फिलहाल किसी पार्टी में भी शामिल नहीं हो रहे है। वे जम्मू कश्मीर की राजनीतिक स्थिति पर नजर रखे हुए हैं।
'चुप रहने में ही हमारे नेता की भलाई'
एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने पर बताया कि इस समय कांग्रेस व अन्य पार्टियां भी कुछ नहीं कर रही हैं। सरकार के पास भी पर्याप्त अधिकार नहीं हैं। भाजपा भी सत्ता में नहीं है। जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा भी बहाल नहीं हुआ है। इसलिए हमारे नेता समय की नजाकत को समझते हुए चुपचाप बैठने में भलाई समझ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कई अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के हाल भी बुरे ही हुए हैं। बता दें कि आजाद के बेहद करीबी जीएम सरूरी और जुगल किशोर तो बीच चुनाव में डीपीएपी छोड़कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए थे, वे भी चुनाव हार गए। अब वे भी स्थिति पर नजर ही रख रहे हैं।
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