भक्त हो तो ऐसा... 17 KG की कांवड़ और सात हजार KM का सफर, रामेश्वरम धाम से अमरनाथ धाम पहुंचा भोले का प्रेमी
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के हरनाम प्रसाद 17 किलोग्राम की कांवड़ लेकर 111 दिन में सात हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा करके अमरनाथ धाम पहुंचे। रामेश्वरम से 27 मार्च को शुरू हुई उनकी यात्रा भौगोलिक दूरी से बढ़कर भावनात्मक और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है जो भारत को कश्मीर से जोड़ती है। मौसम की बाधाओं के बावजूद उन्होंने बाबा बर्फानी के दर्शन किए।

जागरण संवाददाता, श्रीनगर। हरनाम प्रसाद अब एक नाम ही नहीं, एक प्रतीक बन चुके हैं अटूट श्रद्धा के। वह 17 किलोग्राम की कांवड़ कंधे पर उठाकर 111 दिन में सात हजार किलोमीटर का सफर पैदल तय करते हुए हिमालय की गोद में बसे भगवान अमरेश्वर के धाम में पहुंचते हैं।
उनकी आस्था का यह अद्भुत संकल्प उन्हें कहीं थकने नहीं देता और वह आखिर बाबा के धाम में पहुंच जाते हैं। अब उन्होंने बाबा बर्फानी के दर्शन कर लिए हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खिरी चले हरनाम प्रसाद ने 12 ज्योर्तिलिंग में से एक रामेश्वरम धाम पहुंचे और वहां से 27 मार्च को श्रीअमरनाथ धाम के लिए यात्रा की शुरुआत की थी।
रामेश्वर से पहलगाम तक का सफर किया तय
समुद्र तट पर बसे रामेश्वरम से लेकर पहलगाम तक की यह यात्रा केवल एक भौगोलिक दूरी नहीं, बल्कि यह उस भावनात्मक और आध्यात्मिक पुल की पुनःस्थापना है, जो सदियों से भारत के जनमानस को कश्मीर की वादियों से जोड़ता आया है। मौसम की चुनौतियां भी उनकी राह में बाधा नहीं बनी और उन्होंने गुरुवार को बाबा के दर्शन किए।
भगवान शिव की तपोभूमि कश्मीर सदियों से हिंदू आस्था का केंद्र रही है। अमरनाथ यात्रा उस सांस्कृतिक एकता का जीवंत प्रमाण है और इसने विविधताओं से भरे भारत को एक धागे में पिरो रखा है। हरनाम प्रसाद जैसे श्रद्धालु इस पुल को और मजबूत बनाते हैं।
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सावन के पहले सोमवार पहुंचे थे आधार शिविर
वह कहते हैं कि उन्होंने संकल्प लिया और अब पूरा हो रहा है। वह सावन के पहले सोमवार को ही श्रीअमरनाथ यात्रा के आधार शिविर पहुंच गए थे। वह एक संदेश लेकर चले थे कि कि कश्मीर केवल एक भू-भाग नहीं, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आत्मा से जुड़ी भूमि है।
यात्रा से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि उनकी यह यात्रा दर्शाती है कि किस प्रकार से यह भूमि न केवल प्राकृतिक सौंदर्य की प्रतीक है, बल्कि इसमें रचे-बसे हर कण में अध्यात्म, भक्ति और त्याग की भावना समाई हुई है।
'थकान-दर्द बाबा बर्फानी के नाम अर्पण'
पहलगाम, चंदनवाड़ी, और अंततः पवित्र गुफा तक की यात्रा, केवल एक शारीरिक प्रयास नहीं, यह एक आंतरिक शुद्धिकरण है- जहां हर थकान, हर दर्द बाबा बर्फानी के नाम पर अर्पण कर दी जाती है।
हरनाम प्रसाद की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इनके कदमों की धूल में भक्ति का आभास है, जब कश्मीर की धरती पर पड़ती है, तो वह धरती एक बार फिर से उस ऐतिहासिक सांस्कृतिक गौरव को जीवंत कर देती है। हरनाम ने बताया कि पदयात्रा के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे भोले के आशीष से अपने इरादे पर डटे रहे।
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