Rajouri News: कभी बूंद-बूंद को तरसता था, अब साल भर बरसती हैं खुशियां; जल संरक्षण से बदलाव की मिसाल बन गया है यह गांव
Rajouri News सर्दियों में चोटियां भले ही बर्फ से ढकी रहती पर सालभर ग्रामीण जलसंकट से जूझते रहते थे। आज राजौरी का यह गांव पूरे क्षेत्र और प्रदेश में जल संरक्षण के क्षेत्र में प्रेरणास्रोत बन गया और इस बदलाव की गूंज देशभर में सुनाई दे रही है। वर्षा की बूंद-बूंद सहेजकर आज गांव के जल भंडार भरे हुए हैं और लोगों का जीवन सुगम हो गया।
जागरण संवाददाता, राजौरी। पीर पंजाल की पहाड़ियों के बीच राजौरी का खूबसूरत और छोटा गांव है जमोला। सर्दियों में चोटियां भले ही बर्फ से ढकी रहती पर सालभर ग्रामीण जलसंकट से जूझते रहते थे।
प्राकृतिक जलस्रोत सूख चुके थे और पहाड़ी क्षेत्रों में पाइप से जल पहुंचाना सुगम नहीं था। भूजल स्तर गिरने के कारण बावलियां और हैंडपंप सूख चुके थे। पर थोड़े से प्रशासनिक सहयोग और पंचायत व ग्रामीणों के प्रयास ने कुछ ही वर्षों में पूरी तस्वीर बदल दी।
गांव में आज बरसती हैं खुशियां
कभी बूंद-बूंद के लिए तरसने वाला जमोला गांव में आज वर्ष भर खुशियां बरसती हैं। आज यह गांव पूरे क्षेत्र और प्रदेश में जल संरक्षण के क्षेत्र में प्रेरणास्रोत बन गया और इस बदलाव की गूंज देशभर में सुनाई दे रही है। वर्षा की बूंद-बूंद सहेजकर आज गांव के जल भंडार भरे हुए हैं और लोगों का जीवन सुगम हो गया। ग्रामीण ओमप्रकाश ने बताते हैं कि ग्रामीणों को मीलों सफर तय करके या घोड़ों पर लादकर अपने व मवेशियों के उपयोग के लिए पानी ढोकर लाना पड़ता था।
पहले ग्रामीणों की जिंदगी पानी ढोने में ही बीत जाती थी
ग्रामीणों की आधी जिंदगी पानी ढोने में ही बीत जाती थी। कभी सोचा नहीं था कि इससे निजात मिलेगी क्योंकि कोई नेता-अफसर इसकी सुध लेने कभी नहीं पहुंचा था। वर्षा के समय पानी काफी बरसता था पर वह बह जाता था। ग्रामीण बताते हैं कि समय बदला, सोच बदली और क्षेत्र के युवा सरपंच आकिस निसार ने कारनामा कर दिखाया। दूसरे राज्यों के दौरे के दौरान उन्होंने जल संरक्षण की तकनीक को करीब से समझा और उन्हें लगा कि उनको जादू की छड़ी मिल चुकी है जो उनके गांव की समस्या को दूर कर देगी।
पानी की बूंद-बूंद सहेजने का निर्णय हुआ
प्रशासनिक अधिकारियों चर्चा के बाद इसके लिए फंड जुटाया और वर्षा के पानी की बूंद-बूंद सहेजने का निर्णय हुआ और गांव में छोटे-छोटे तालाब बनाए गए। इससे मवेशियों को जल मिला ही सिंचाई के लिए भी जल मिलने लगा।आज लोगों को आवश्यकता के अनुसार पानी मिल रहा है। खेतों को सींचने के लिए पानी उपलब्ध रहता है। मवेशियों के पानी के लिए छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण करवाया गया, ताकि मवेशी भी पीने के पानी के लिए परेशान न हों। इस कार्य के चलते पंचायत जमोला को पिछले वर्ष तृतीय राष्ट्रीय जल पुरस्कार में दूसरा स्थान मिला।
पुरानी बावलियों को मिला नया जीवन
गांव में पानी के कुछ प्राकृतिक जलस्रोत थे, लेकन देख-रेख के अभाव में सूख जाते थे। तालाब के निर्माण के कारण भूजल स्तर में सुधार आया। पंचायत ने इन बावलियों की सफाई करवाई और आज यह बावलियां फिर से ग्रामीणों के लिए पेयजल का स्रोत बन चुकी हैं। हैंडपंप भी अब चल रहे हैं।
यह हुए कार्य
वर्षा का सारा पानी बह जाता था। इस पानी को जमा करने के लिए गांव में तालाबों के साथ-साथ चैक डेम का निर्माण करवाया, जिसमें बारिश का सारा पानी जमा हो जाता है। गांव में छोटे-छोटे तालाब बनाए गए हैं, इससे मवेशियों को पानी मिलता है। भूजल स्तर और जमीन में नमी का स्तर बनाए रखने के लिए ढलानों पर सोख गड्ढों का निर्माण करवाया गया है। बारिश का पानी इन गड्ढों के माध्यम से जमीन को रिचार्ज करता है।
केरल जाकर देखा और उस पर अमल किया : सरपंच
पंचायत के सरपंच आकिस निसार का कहना है कि राजौरी में स्नातक के बाद गांव गया तो ग्रामीणों ने मुझे सरपंच का चुनाव लड़ने को कहा। ग्रामीणों के सहयोग से सरपंच बना तो सोचा कि उनकी समस्याओं को कैसे दूर करूं। इसी दौरान भ्रमण पर केरल जाने का अवसर मिला।
वहां देखा कि किस तरह किसान वर्षा का जल संचयन कर खेती कर रहे थे। बस यही प्रयास अपने क्षेत्र में किया और अब हमारी पंचायत में पानी की किल्लत लगभग खत्म हो चुकी है। इसी कार्य के लिए जमोला पंचायत को जल संरक्षण के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर तृतीय पुरस्कार मिल चुका है।
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