Jammu News: पीड़िता को 12 साल बाद मिला इंसाफ, छेड़छाड़ मामले में आरोपी को छह माह की हुई सजा
जम्मू में 12 साल पुराने छेड़खानी के मामले में चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट ने आरोपी रंजीत कुमार को छह महीने की सजा और 10 हजार रुपये जुर्माना लगाया। आरोपी ने 2013 में एक महिला का हाथ पकड़ा और उसे परेशान किया था। इसके अतिरिक्त एक अन्य मामले में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपराधिक मामले में हिरासत में रहने पर सरकारी कर्मचारी वेतन का हकदार नहीं है।

जेएनएफ, जम्मू। कानून के घर देर है पर अंधेर नहीं यानी भले ही किसी मामले में तुरंत न्याय न मिले, लेकिन समय आने पर कानून अपना काम करता है और सही को सही और गलत को गलत साबित करता है।
ऐसा ही एक मामला जम्मू में सामने आया, जिसमें चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट जम्मू ने 12 साल पुराने एक छेड़खानी के मामले में आरोपी को न सिर्फ छह महीने की सजा सुनाई बल्कि 10 हजार रुपये जुर्माना भी किया।
यह मामला 21 जून 2013 का है जब रिहाड़ी की रहने वाली पीड़ित महिला ने शिकायत दर्ज करवाई कि आरोपित रंजीत कुमार पुत्र सुदामा भगत निवासी रिहाड़ी कॉलोनी उसे पहले तो फोन पर परेशान करता है। लेकिन 21 जून को उसने बीच रास्ते में उसका हाथ पकड़ा और गले पर चुम्मी की और कहा कि वह उससे प्यार करता है। वह अपने पति को छोड़कर उसके साथ चले।
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महिला ने बीच बचाव किया और इस हाथापाई में उसकी गले की चेन भी टूट गई। पीड़ित के अनुसार आरोपित ने बीच रास्ते उसकी इज्जत को उछाला जिससे उसकी ससुराल में भी बदनामी हुई। पीड़ित की इस शिकायत पर पुलिस ने केस दर्ज कर आरोपित को गिरफ्तार किया और 12 साल तक जांच व केस ट्रायल चलने के बाद आखिरकार पीड़ित महिला को इंसाफ मिला।
चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट जम्मू प्रीत सिमरन कौर ग्रोवर ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला दिया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा है कि आरोपी ने आपराधिक बल के साथ पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाई है।
आरोपी को दोषी मानते हुए धारा 354 आरपीसी के तहत अपराध करने के लिए 10 हजार रुपये के जुर्माने के साथ छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई जाती है।
हिरासत में रहा कर्मचारी वेतन का हकदार नहीं
जेएनएफ, जम्मू। जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी किसी आपराधिक मामले में केस की सुनवाई के दौरान हिरासत में रहा है तो वह उस अवधि के वेतन व अन्य भत्ते का दावा नहीं कर सकता।
हाईकोर्ट ने शेर सिंह की ओर से दायर याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया। शेर सिंह ने मांग की थी कि हिरासत की अवधि को आन ड्यूटी मानते हुए उसे उस अवधि का वेतन व अन्य लाभ दिए जाए। याची के अनुसार वह एनएचपीसी के किश्तवाड़ में जारी पकलदुल हायड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट में बेल्डर के पद पर कार्यरत था और छह अप्रैल 2009 से 13 अप्रैल तक वह अवकाश पर रहा।
इस दौरान उसे लक्शन देवी की हत्या के झूठे केस में फंसाते हुए रियासी पुलिस स्टेशन में एफआइआर दर्ज की गई। बाद में उसे कोर्ट ने 15 अक्टूबर 2010 को आरोपों से बरी कर दिया। उसके बाद उसने 20 अक्टूबर को ड्यूटी ज्वाइन की लेकिन एनएचपीसी ने बीच की अवधि का उसे वेतन व अन्य भत्ते नहीं दिए।
याची शेर सिंह की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह एक आपराधिक मामले में हिरासत के दौरान रहा था और केस ट्रायल अवधि के वेतन व अन्य भत्ते के लिए वह दावा नहीं कर सकता।
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