जम्मू-कश्मीर में आखिर किस रूट से आते हैं आतंकी, कौन देता है शरण और कैसे चलता है नेटवर्क?
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों की कार्रवाई जारी है। पिछले एक हफ्ते में 16 लोगों को हिरासत में लिया गया है जिनमें से 7 सन्याल ऑपरेशन के बाद 6 सुफैन ऑपरेशन के बाद और अब रूई से एक शख्स को हिरासत में लिया गया है। इनमें से कुछ लोग आतंकियों को शरण देने और उन्हें ठिकाने तक पहुंचाने में मदद कर रहे थे।
जागरण संवाददाता,कठुआ। सात दिन पहले सन्याल में दिखे पांच आतंकी के खिलाफ ऑपरेशन के बाद सुफैन में हुई मुठभेड़ में मारे गए दो आतंकी और फिर दूसरे दिन जुथाना के रूई में तीन आतंकी... साफ है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी जगह-जगह फैले हैं। रूई गांव में आतंकियों का घर में अकेली वृद्ध महिला के घर खाना खाना और फिर भाग जाना। स्थानीय लोगों द्वारा शरण की ओर इशारा करता है।
रात को जारी तलाशी अभियान में ढाई बजे एक बकरवाल को सुरक्षाबलों ने इतनी रात बाहर घूमने का कारण पूछा तो उसने बताया कि पानी लेने गया था। इस बात पर सुरक्षाबलों को शक हुआ और उसे हिरासत में लिया गया।
हिरासत में 16 लोग
बीते एक सप्ताह में 16 लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई, इसमें 7 सन्याल ऑपरेशन के बाद, 6 सुफैन ऑपरेशन के बाद और अब रूई से एक शख्स को हिरासत में लिया गया है। गत वर्ष 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
इसमें एक मोहम्मद लतीफ था, जो वहां का मुख्य ओजीडब्ल्यूजी (ओवर ग्राउंड वर्कर) था, वह पूरे नेटवर्क को सीमा से लेकर कंडी और पहाड़ों तक आतंकियों को पहुंचाने का काम करता था, उसके साथ 11 और लोग पकड़े गए थे।
अभी हाल ही में बिलावर से भी आधा दर्जन से ओजीडब्ल्यू पकड़कर कुछ पर पीएसए लगाया गया है। लेकिन पकड़े गए लोगों के बाद पीछे परिवार के सदस्य उक्त नेटवर्क को चलाने का काम कर रहे हैं।
इसका उदाहरण सुफैन में मिला है, जहां परिवार के छह लोग हिरासत में लिए गए। ये सभी आतंकियों की मदद करने में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।
आवश्यक जरूरतें पूरी करते हैं शरणदाता
आतंकी सन्याल के पांच दिन बाद जहां भी घूम रहे हैं.. वह बिना शरण के संभव नहीं है। आतंकियों को शरण और उन्हें ठिकाने तक पहुंचाने का काम अभी भी कुछ लोगों द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में पुलिस को शरणदाताओं के साथ सख्ती से पेश आने की जरूरत है। दूसरा जहां आतंकी दिखते हैं, वहां जब तक पुलिस पहुंचती, तब तक वे अपना ठिकाना बदल देते।
जम्मू-कश्मीर आने का रूट
- वहीं, दूसरी ओर सीमा पार से घ़ुसपैठ करने के बाद आतंकी सीमांत गांवों के क्षेत्र से करीब 10 से 12 किलोमीटर की दूरी तय करके हाईवे पर पहुंचने के बाद कंडी क्षेत्र में दाखिल होकर बिलावर पहुंच रहे हैं।
- आतंकी कई किलोमीटर चलते हैं, ऐसे में उन्हें कहीं न कहीं ठहराव की आवश्यता होती है, मतलब साफ है कि सीमा पार से घुसपैठ करने के बाद आतंकी सन्याल तक पहुंचने से पहले एक दिन और एक रात उसी क्षेत्र में किसी न किसी ओजीडब्ल्यू के घर रहते हैं।
- उसके बाद वही ओजीडब्ल्यू गाइड बनकर पुराने पारंपरिक सुरक्षित घुसपैठ वाले मार्ग से हाईवे तक उसके बाद बिलावर तक पहुंचाने में मदद करते हैं।
- सुफैन 30 किलोमीटर दूसरी दिशा में पहुंचना भी गाइड के जरिए ही पहुंचा जा सकता है।
कठुआ एनकाउंटर में सिर्फ दो ही आतंकी मारे गए, बाकी तीन कहां भागे और इतनी सख्ती के बाद वे कहां छिपे हैं। यह खुद में सवाल है। मौजूदा वक्त में सुरक्षाबलों से ज्यादा गांववासी अलर्ट पर दिख रहे हैं, जो जरा सी भी संदिग्ध की आहट के बाद इसकी सूचना तुरंत पास वाले पुलिस चौकियों व थानों में पहुंचा रहे हैं। लेकिन उनके वहां पहुंचने के बाद ही आतंकी उक्त स्थान से भाग जाते हैं। जैसा कि रूई और सन्याल में हुआ।
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