बारिश में छत गिरने से बाल बाल बचा तिलक राज का परिवार, अब कहीं भूख से न हार जाए जिंदगी
बिश्नाह में भारी बारिश के कारण तिलक राज के घर की छत गिर गई जिससे उनका परिवार बेघर हो गया। अब वे मुर्गी खाने में रहने को मजबूर हैं। उनके पास खाने और पहनने के लिए कुछ नहीं है और बच्चों की स्कूल की किताबें भी मलबे में दब गई हैं। तिलक राज ने प्रशासन और सामाजिक संगठनों से मदद की गुहार लगाई है।

सतीश शर्मा, जागरण, बिशनाह। पिछले कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश से अभी तक कई लोगों की जान चली गई है। कइयों के मॉल मवेशी मारे जा चुके है, मकान टूट चुके है। कई लोगों पर इस जल प्रलय की मार पड़ी है।
उन्हीं बदनसीबों में से एक हैं तिलक राज पुत्र मिल्खी राम जो बिश्नाह के गांव मखनपुर चाढ़कां में रहते है। तिलक के घर का एकमात्र कमरा बारिश की भेंट चढ़ गया। उसकी छत टूट कर नीचे गिर चुकी है और अब पांच सदस्यों वाला यह परिवार प्रांगण में ही बने मुर्गी खाने में रहने को मजबूर है ।
तिलक राज ने दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि हम पूरा परिवार रात को एक साथ बैठकर खाना खा ही रहे थे कि अचानक तेज बारिश आई और उससे हमारे घर की छत टूटकर नीचे गिर गई। बड़ी मुश्किल से मैंने अपने तीन बच्चों को घर से निकाला।
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एक समय का खाना हो रहा नसीब
घर का सारा सामान मलबे में दब गया है। हालत यह है कि परिवार के पास पहनने तक को कपड़े तक नहीं बचे हैं। राशन भी सारा अंदर रह गया। इधर-उधर से जुटाकर पूरे दिन में कहीं एक समय का खाना नसीब हो रहा है। वह भी हम खुले आसमान तले बैठकर बना रहे हैं और खाना खा रहे हैं। कभी बारिश आई तो चूल्हा ठंडा पड़ जाता है। इसी तरह घर में ही बनाए गए एक मुर्गी खाने में हम 5 सदस्य सर छुपाए हुए हैं।
कभी भूखे भी सोना पड़ता है
तिलक ने कहा कि अगर खाना बन जाए तो खा लेते हैं नहीं तो भूखे ही सो जाते हैं। अब फिक्र यह भी लगी हुई है कि बारिश से गिरी घर की छत से तो परिवार बच गया, कहीं भूख के कारण ना मर जाए। मुझे दिन-रात यही भय सताता रहता है। उन्होंने प्रशासन व अन्य सामाजिक संगठनों से मदद की गुहार लगाते हुए कहा कि किसी तरह हमें इस योग्य बना दें कि मैं एक बार फिर आजीविका कमाने के लायक बन जाऊं।
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सामूहिक आत्महत्या का आता है विचार
अपनी किस्सम से संघर्ष कर रहे तिलक ने दुखभरे लहजे में कहा कि कई बार हिम्मत भी जवाब दे देती है। ऐसा भी मन हुआ कि सामूहिक आत्महत्या कर परेशानियों से छुटकारा पा लूं लेकिन फिर बीवी बच्चों को देखकर हिम्मत जुटाकर जीने की सोचता हूं। कहता हूं कि जिसने हमें उजाड़ा है वह भगवान फिर से बसा भी देगा।
स्कूल की यूनिफार्म-किताबें भी दब गई
तिलक राज की आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी रीतिका व दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले बेटे अंकुश ने बताया कि इसी मकान की छत तले हमारे स्कूल की यूनिफॉर्म किताबें भी दब गई है। जिसकी वजह से हमारी पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। अब ना तो पहनने को कुछ है ना खाने को। हम सब इस मुर्गी खाने में रह रहे हैं। उनके साथ उनका पालतू खरगोश व मुर्गी भी यहीं रह रहे हैं। तिलक के परिवार ने लोगों से अपील की कि उनकी सहायता करें।
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