श्रद्धा का महासावन : भगवान शिव का प्रखर रूप है रुद्र, हर युग में भक्तों की करते रहे रक्षा
शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। उनमें से एक रूप रुद्र है। भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है। रुद्र का अर्थ है वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो। शिव को सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है

श्रद्धा का महासावन : भक्तों की अराधना से जल्द प्रसन्न होने वाले देवों के देव महादेव भगवान शिव हर युग में अपने भक्तों की रक्षा करते रहे हैं। भगवान शिव ने 12 रुद्र अवतार लिए हैं, जिनमें से हनुमान अवतार एक है। शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। उनमें से एक रूप रुद्र है। भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है। रुद्र का अर्थ है, वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो। शिव को सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है। हम भगवान शिव का एक नाम रूद्र अपने बच्चों का रख लेते हैं, लेकिन हममें से बहुत कम लोग नाम का अर्थ जानते हैं।
जम्मू यात्री भवन के अध्यक्ष पवन शास्त्री ने बताया कि शिव सो रहे हैं और शक्ति उन्हें देखने आती हैं। वह उन्हें जगाने आई हैं क्योंकि वह उनके साथ नृत्य करना चाहती हैं। उनके साथ खेलना चाहती हैं और उन्हें रिझाना चाहती हैं। शुरू में वह नहीं जागते लेकिन थोड़ी देर में उठ जाते हैं। मान लीजिए कि कोई गहरी नींद में है और आप उसे उठाते हैं तो उसे थोड़ा गुस्सा तो आएगा ही, बेशक उठाने वाला कितना ही सुंदर क्यों न हो। अत: शिव भी गुस्से में गरजे और तेजी से उठकर खड़े हो गए। उनके ऐसा करने के कारण ही उनका पहला रूप और पहला नाम रुद्र पड़ गया।
भगवान शिव के इस प्रखर रूप को रुद्र रूप की परिभाषा हमारे शास्त्रों में कई तरह से दी गई है, जिन्हें जानना अपने आपमें काफी रोचक अनुभव है। लिंगपुराण के अनुसार सृष्टि के चक्र को तीव्रता प्रदान करने के लिए भगवान शिव ने ही स्वयं अपने 11 अमर व शक्तिशाली रुद्र रूप की संरचना की थी। कहीं यह रौद्र रूप में दिखते हैं तो कहीं सौम्य रूप में दर्शन देते हैं। यह दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। रुद्र का अर्थ हुआ जो आपके सारी समस्याएं और चिंताओं का नाश कर दे। हमारे शास्त्रों में भगवान रुद्र का बेहद ही सुंदर वर्णन मिलता है, जिसमें उनके पांच सिर और धड़ एकदम पारदर्शी और चमकीला बताया गया है।
शास्त्रों में रामभक्त हनुमान के जन्म की दो तिथि का उल्लेख मिलता है, जिसमें पहला तो उन्हें भगवान शिव का अवतार माना गया है क्योंकि रामभक्त हनुमान की माता अंजनी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और उन्हें पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वर मांगा था। तब भगवान शिव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी।
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